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Showing posts from April, 2011

रिश्तों से रिसता दर्द, रविवार डॉट कॉम में सारदा लहांगीर

प्रतीक हेतु चित्र गूगल से साभार, संपादक   मुझे पता है, मेरे दिन अब गिनती के रह गए हैं, मुझे कुछ नहीं चाहिए, मौत आने से पहले कोई मुझे मेरे बेटे से मिलवा दे। यह व्यथा है, एक बेबस मां की, जिसे कैंसर ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है। सुंदरगढ़ जिले के लाहुनीपाड़ा की 32 बरस की नीता को 2008 में जब कैंसर से पीड़ित पाया गया, तब तक यह नासूर उसके शरीर में काफी फैल चुका था और जब उसके पति धनराज को पता चला कि उसका रोग लाइलाज हो गया है, तो उसने नीता को बेसहारा छोड़ दिया। वह अपने साथ अपने बेटे को तो ले गया, लेकिन बेटी को नीता के भरोसे छोड़ दिया। 2008 से नीता अपने बेटे से नहीं मिल सकी है। 2010 में जब उसकी हालत बिगड़ने लगी, तो उसके माता-पिता को खबर की गई, वे आए भी, लेकिन वे कर भी क्या सकते थे। असल में जब डॉक्टरों ने बताया कि नीता की जिंदगी के कुछ महीने ही रह गए हैं, तभी धनराज ने उसे छोड़ दिया। पता चला है कि वह छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में कहीं रह रहा है। नीता उड़ीसा में कैंसर की अकेली मरीज नहीं, जिसे उसके परिवार ने बेबस छोड़ दिया हो। पुरी की 24 बरस की रस्मिता दास की कहानी भी नीता जैसी ही है...

माँ एक एक श्वास है

कोई मुझसे पूछता -फरिश्ते से मिली हो कभी ? मैं उसे ये बोलती ''मै माँ से मिलकर आई  हूँ ! कोई मुझसे पूछता -तू कैसे खुशमिजाज है ? मै उसे ये बोलती -''ये माँ का आशीर्वाद है . कोई मुझसे पूछता -''क्या नहीं जन्नत की आरजू ? मैं उसे ये बोलती -''मेरे पास माँ की गोद है . कोई मुझसे पूछता -''देखा है खूबसूरत कोई ? मैं उसे ये बोलती ''मेरी माँ से सुन्दर कौन है ! कोई मुझसे पूछता -''क्या है तू दौलतमंद भी ? मैं उसे ये बोलती -''माँ की दुआएं साथ हैं . कोई मुझ से  पूछता -''माँ से अलग क्या कुछ नहीं ? मैं उसे ये बोलती -'' दिल की धड़कन है वही ,माँ एक एक श्वास है !             शिखा कौशिक  http://shikhakaushik666.blogspot.com

हां !ये मेरी माँ है

प्यारी माँ  मोम की तरह पिगलती रहती है  शमां बन जलती रहती है  हमरा हर काम अपनी शक्ति से परे करती है   हमे परेशां देख ,खुद मन ही मन कुढती है  हाँ ,यह मेरी माँ है ! हाँ, यह मेरी माँ है ! रब से भी ज्यादा मुझको इससे प्यार है | कभी खुद को साबित नही किया उसने  हमेशा हमे प्रोत्साहित किया उसने  हमारी हर गलती को माफ़ किया उसने  हममे हर शक्ति का संचार किया उसने  हाँ ,यह मेरी माँ है ! हाँ ,यह मेरी माँ है ! रब से भी ज्यादा मुझको इससे प्यार है | खुदा से ज्यादा हमने उसका मान किया  खुद को खुद से ज्यादा कुर्बान किया  हमेशा उसके आंचल में आराम किया  माँ की क्या शे है इसका हमने ज्ञान किया   हाँ ,यह मेरी माँ है ! हाँ यह मेरी माँ है ! रब से भी ज्यादा मुझको इससे प्यार है | सपनो से परे एक जहां और भी है  एक जमी एक आसमान और भी है  इस पथरीली धरा पे हमे आगे बढना है  होसले बुलंद हो ,सफलता कदम चूमे  हर कठिनाई से आगाज़ किया इसने     हाँ ,यह  मेरी माँ है !    हाँ यह मेरी माँ है   ! रब से भी ज...

मां के गर्भ में बच्चियों का क़त्ल शिक्षित घरानों में कहीं ज़्यादा

पानीपत (एसएनबी)। जनगणन 2011 ने साबित कर दिया है कि लड़कियों के प्रति हमारा समाज कितना बेरहम है ? तक़रीबन 110 बरस पहले 1901 की जनगणना में भारतीय समाज में लड़कियों जो तादाद थी। उससे बेहतर अभी भी नहीं हुई है। साईंस और तकनीक की तरक्क़ी ने बेरहम मां-बाप के हौसलों को इतना बढ़ा दिया है कि अब वे अपनी बच्चियों को दुनिया में आने से पहले ही मां के पेट में क़त्ल कर देते हैं। ये बातें हाली पानीपती ट्रस्ट के सेक्रेटरी एडवोकेट राम मोहन राय ने पानीपत में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि मां के गर्भ में बच्चियों का क़त्ल शिक्षित घरानों में हो रहा है। उन्होंने मेवात की मिसाल देते हुए कहा कि दक्षिणी हरियाणा के इस मुस्लिम बहुल ज़िले में स्त्री-पुरूष के अनुपात में बहुत कम अंतर पाया गया है। इससे साबित होता कि इस पिछड़े ज़िले के लोग बच्चियों का क़त्ल नहीं करते। उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों और शेड्यूल्ड कास्ट्स में बच्चियों को मां के गर्भ में मारने का रिवाज नहीं है। ऐसा सिर्फ़ आधुनिकता के प्रभाव में जीने वाले बहुसंख्यक समाज में हो रहा है। उन्होंने संवाददाताओं ने को जानका...

मां नहीं रहेगी ....

मां को कुछ उलझन है, मेरे आने से पर वह कहती नहीं जमाने से कभी-कभी भर लाती आंखों में आंसू कहती मुझसे मन ही मन यह सच है तू मेरा अंश है पर बेटी यह सब कहते तुझसे चलेगा नहीं मेरा वंश तेरा अंत करना चाहते हैं जन्‍म के पहले मिटा कर तुझे नहीं खत्‍म करना चाहते हैं खुद मेरा वजूद बता मैं कैसे सहयोग करूं इनका नन्‍हीं बता न आज मैं भी शपथ लेती हूं तुझे जन्‍म दूंगी या अपने आपको मिटा दूंगी मैं सोचती मां की यह उलझन खत्‍म हो पाएगी कब मैं खत्‍म हो जाऊंगी या मां नहीं रहेगी तब दुनिया ये कब समझ पाएगी ।

माँ....!!

माँ....!! माँ....!! दिल की गहराईयों से निकला हुआ एक दिव्य शब्द, जैसे ही मैं माँ को पुकारती , वो गहरी निद्रा से भी उठ कर मुझे अपनी बाहों मैं भर लेती, और कहती क्या हुआ मेरी रानी बिटिया को, डर गयी थी क्या! और तब मैं उसे अपने पुरे  दम से भीच लेती अपने में  माँ की बाहों का घेरा मेरे लिए होता एक ठोस सुरक्षा कवच, फिर डर को भूल उसकी गोद मैं आराम से सो जाया करती, तब इस बात से होती अनजान की वो भी तो सोएगी.... और माँ अपनी आँखों की नींद चुपके से मेरी पलकों पर रख कर ममता से भरी नज़रों से निहारा करती और इसी तरह सुबह का सूरज का हो जाता आगाज माँ की देहलीज़ पर, और माँ धीरे से मेरा सर तकिये पर रख कर उठ जाया करती थीं, हम सभी के लिए, तब क्यूँ नहीं सोचा कभी माँ के लिए, आज माँ बन जाने के बाद , माँ का हम सब के प्रति समर्पित होना समझ में आता है , कितनी ख़ुशी मिलती है अपना सर्वस्व अपने बच्चों पर न्योछावर करके, खुद को अपने बच्चो में जीना किता देता है ख़ुशी.... भले वो नींद हो, समय हो, या हो  हंसी , या फिर ... निस्वार्थ ममता.!!!!!

माँ की ममता .....

"कैसी होती है माँ की ममता " प्रश्न है बड़ा कठिन मगर जबाब की लालसा होती है ..... भुला के प्रसव की पीड़ा को जब आँचल में समेटती है वह नवजात शिशु को एक हाथ में थामें शिशु को दूजे हाथ से वह संभाले तन को उस पल का कोई मोल नहीं हाँ - ऐसी होती है माँ की ममता जिसका कोई तोल नहीं ...... बूढी हड्डियों में है ना दम हाथ पैरों में है अब कम्पन फिर भी हर दिन हर पल नातिन को लिए गोद में अस्पतालों के चक्कर लगाती है कोई बोले यहाँ दिखा दो कोई बोले वहाँ दिखा दो भरे दिल में उम्मीद की आस यूँही जीवन जीती जाती है .... उस पल का कोई मोल नहीं हाँ - ऐसी होती है माँ की ममता जिसका कोई तोल नहीं ....... जब नहीं होती है माँ पास में मौसी ही माँ बन जाती है दिल से निकली हर आह पर सीना उसका छलनी होता है तोड़ दुनिया के नियम कानून सब वही ढाल बन जाती है नहीं होती तब परवाह स्वयं की हर आंसू का हिसाब वो  पूरा चुकवाती है ..... उस पल का कोई मोल नहीं हाँ - ऐसी होती है माँ की ममता जिसका कोई तोल नहीं ...... जब कभी बचपन में भूख की आग सताती है पास नहीं जब होता कोई बुआ ही हाथ अपना बढ़ाती ...

मां का क्या होगा ? -राजकुमार सकोलिया

ज़माने के हालात देखकर  मरने को मन तो करता है मेरा मगर उस दुआ का क्या होगा जो किसी ने मांगी थी मेरी सलामती के लिए उन आंखों का क्या होगा जो आते-जाते देखती हैं  मेरा रास्ता उस दिल का क्या होगा जो धड़कता है मेरा नाम लेकर और उन सांसों का क्या होगा जो चलती हैं मेरी सांसों के साथ मेरी उस बूढ़ी मां का क्या होगा  जो बसती है मेरी धड़कन में और मुझे इंसान बनाया। --------------------------- २९/11- भार्गव नगर, जालंधर, 144003 (पंजाब)

आशीर्वचनों का महाग्रंथ

माँ ... हवा , बादल , धूप , छाँव बच्चों के लिए पूरी प्रकृति अपने आँचल में समेट एक धरोहर बन जाती है ... जब सारी दिशाएं प्रतिकूल होती हैं माँ लहरों के विपरीत संभावनाओं के द्वार खोलती है ... माँ शब्द में ही एक अदृश्य शक्ति होती है माँ कहते ही हर विपदा शांत हो जाती है माँ लोरियों का सिंचन करती है एक आँचल में करोड़ों सौगात लिए चलती है आशीर्वचनों का महाग्रंथ होती है

माँ

रात की अलस उनींदी आँखों में एक स्वप्न सा चुभ गया है , कहीं कोई बेहद नर्म बेहद नाज़ुक ख़याल चीख कर रोया होगा । सुबह के निष्कलुष ज्योतिर्मय आलोक में अचानक कालिमा घिर आयी है , कहीं कोई चहचहाता कुलाँचे भरता मन सहम कर अवसाद के अँधेरे में घिर गया होगा । दिन के प्रखर प्रकाश को परास्त कर मटियाली धूसर आँधी घिर आई है , कहीं किसी उत्साह से छलछलाते हृदय पर कुण्ठा और हताशा का क़हर बरपा होगा । शिथिल शाम की अवश छलकती आँखों में आँसू का सैलाब उमड़ता जाता है , कहीं किसी बेहाल भटकते बालक को माँ के आँचल की छाँव अवश्य मिली होगी । साधना वैद

निजी अस्पताल और नर्सिंग होम संचालकों ने धन कमाने के लालच में 226 महिलाओं के यूटेरस निकाले

राजस्थान के एक स्वयंसेवी संगठन का आरोप है कि दौसा जिले के बांदीकुई में संचालित पांच निजी अस्पतालों और नर्सिग होम संचालकों ने 226 महिलाओं की बच्चेदानी निकाल दी, जबकि चिकित्सकों का कहना है कि इसमें सिजेरियन प्रसव, बच्चेदानी सम्बंधी बीमारियों का उपचार भी शामिल है। स्वयंसेवी संगठन के प्रतिनिधि दुर्गा प्रसाद ने सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के हवाले से कहा कि बांदीकुई के पांच में से तीन निजी नर्सिंग होम और अस्पताल के चिकित्सकों ने मार्च 2010 से सितम्बर 2010 तक अस्पताल पहुंचीं 385 महिलाओं में से दो सौ छब्बीस महिलाओं की बच्चेदानी निकाली। जिन महिलाओं की बच्चेदानी निकाली गई है, वे सभी गुर्जर और माली जाति की हैं। दौसा के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ओ पी मीणा ने कहा कि मामले की जांच की जा रही है। बांदीकुई के जिन पांच निजी अस्पताल और नर्सिंग होम की बात की जा रही है, उनके एक साल के रिकार्ड जब्त कर लिये गये है। महिलाओं का ऑपरेशन करने वाले सर्जन, चिकित्सकों, संचालकों एवं महिला रोगियों के बयान लिये जा रहे है। निजी अस्पताल और नर्सिंग होम चिकित्सक डा रमेश धाकड़ और डा सुनिल कट्टा ने एनजीओ...

बेसहारा होते मां-बाप

‘‘दुनिया से मिली न वफाएं तो क्या गम था, हसरतें रही अधूरी तो क्या गम था, रूसवाईयां तो तब हुई जब अपनों ने ही ठुकरा दिया, वरना कभी हम भी खुशनसीब थे, हमें भी क्या गम था।’’ आंखों में आंसू, चेहरे में बेबसी लिये कुछ यूं ही अपने दिल का दर्द बयां कर रहे हैं आज के बुजुर्ग। जिन्हें वक्त की मार ने तो कम बल्कि अपनों के तिरस्कार ने ज़्यादा रूलाया है। ये बूढ़े मां-बाप जिन्होंने कभी अपने बच्चों में बुढ़ापे की लाठी तलाशी थी, आज इन्हीं बच्चों ने उन्हें दर-दर की ठोकरें खाने के लिए बेसहारा छोड़ दिया है। वैसे कहते है माता-पिता का दर्जा भगवान से भी बढ़कर होता हैं। शायद तभी किसी ने कहा भी है,‘‘धरती पर रहने वाले भगवान यानि माता-पिता को खुश कर लिया तो स्वर्ग में बैठे भगवान अपने आप ही खुश हो जायेंगे।’’ जब माता-पिता ईश्वर से भी बढ़कर है फिर क्यों हमें ऐसे असहाय बुजुर्ग देखने को मिलते हैं जिन्हें उनके बच्चों ने ही धुतकार दिया? क्या इन बच्चों को याद नहीं जब वो छोटे थे तो किसने उन्हें उंगली पकड़कर चलना सिखाया था? और किसने उनके मुंह में निवाला डाला था? हां ये वहीं मां-बाप है जिन्होंने तुम्हारी खुशियों के लिए अपने गम ...

Mother ख़ाक जन्नत है इसके क़दमों की सोच फिर कितनी क़ीमती है मां ?

मां एक किरदारे-बेकसी है मां ज़िन्दगी भर मगर हंसी है मां दिल है ख़ुश्बू है रौशनी है मां                               अपने बच्चों की ज़िन्दगी है मां ख़ाक जन्नत है इसके क़दमों की सोच फिर कितनी क़ीमती है मां इसकी क़ीमत वही बताएगा दोस्तो ! जिसकी मर गई है मां रात आए तो ऐसा लगता है चांद से जैसे झांकती है मां सारे बच्चों से मां नहीं पलती सारे बच्चों को पालती है मां कौन अहसां तेरा उतारेगा एक दिन तेरा एक सदी है मां आओ ‘क़ासिम‘ मेरा क़लम चूमो इन दिनों मेरी शायरी है मां कलाम : जनाब क़ासिम नक़वी साहब http://vedquran.blogspot.com/2010/05/mother.html

सत सत नमन

प्यार तो कारण है   उन लम्हों का जो बीतें है साथ बचपन में वो ममता ,वो दुलार और वो गोदी तभी - लम्हों में सिमटा है प्यार जो कारण है अपनेपन का भावों का और अहसासों का .........!! प्रियंका राठौर

एक हत्यारी माँ का बेटी के नाम पत्र

प्रिय बेटी, आज जब से मैंने यह समाचार पढ़ा है कि ‘देश में हर साल सात लाख लड़कियां गर्भ में ही माता-पिता द्वारा मार दी जाती हैं’ ,मेरा मन अत्यधिक व्याकुल है. मैं चाह कर भी अपने आप को रोक नहीं पा रही हूँ इसलिए यह खत लिख रही हूँ ताकि अपने मन की पीड़ा को कुछ हद तक शांत कर सकूँ…..बस मेरी तुमसे एक गुज़ारिश है कि मेरा पत्र पढकर नाराज़ नहीं होना. लगता है कि जैसे मैं बौरा गई हूँ तभी तो यह कह बैठी कि पत्र पढकर मुझसे नाराज़ नहीं होना?हकीकत तो यह है कि मैंने तुमसे इस पत्र को पढ़ने तक का अधिकार छीन लिया है. मैं चाहती तो पत्र की शुरुआत में तुम्हें मुनिया,चंदा,गरिमा या फिर मेरे दिल के टुकड़े के नाम से भी संबोधित कर सकती थी परन्तु मैंने तो नाम रखने का अधिकार तक गवां दिया.बेटा मैं भी उन अभागन माँओं में से एक हूँ जिन्होंने अपनी लाडली को अपने पति और परिवार के ‘पुत्र मोह’ में असमय ही ‘सजा-ए-मौत’ दे दी.तुम्हारे कोख में आते ही मेरा दिल उछाले मारने लगा था और मुझे भी माँ होने पर गर्व का अहसास हुआ था.पहली बार तुमने ही मुझे यह मधुर अहसास और गर्व की अनुभूति कराई थी परन्तु मुझे क्या पता था कि यही गर्व मेरे लिए अभिशाप ...

....दुआ एक माँ की....

मेरी ख़ामोशीओं की गुंज सदा देती है। तू सुने या ना सुने तुझको दुआ देती है। मैंने पलकों में छुपा रख्खे थे आँसू अपने।(2) रोकना चाहा मगर फ़िर भी बहा देती है। मैंने पाला था बड़े नाज़-मुहब्बत से तुझे(2) क्या ख़बर जिंदगी ये उसकी सज़ा देती है। तूँ ज़माने की फ़िज़ाओं में कहीं गुम हो चला(2) तेरे अहसास की खुशबू ये हवा देती है। तूँ कहीं भी रहे ” अय लाल मेरे ” दूरी पर(2) दिल की आहट ही मुझे तेरा पता देती है।

जब भी मां ....

टूटी खाट पर जब भी मां मैं तेरा बिस्‍तर लगाता हूं मेरी पीठ दर्द से दुहरी हो जाती है । मैं समेटता हूं सपनों को बन्‍द करके आंखों को जब भी गरम आंसुओं की कुछ बूंदे तेरा दामन भिगो जाती हैं । एक सिहरन पूरे शरीर में होती है, जब तेरी झुकी कमर टेककर लाठी मेरे लिये खेतों पे रोटी लाती है ।