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वो जाने किस पल सोती है ? No Sleep

एक माँ अपने बच्चे के लिए क्या कुछ और कैसे करती है  ? यही सब जानिये दिगंबर नासवा जी के शब्दों में  माँ .....    मैने तो जब देखा अम्मा आँखें खोले होती है जाने किस पल जगती है वो जाने किस पल सोती है बँटवारे की खट्टी मीठी कड़वी सी कुछ यादें हैं छूटा था जो घर आँगन उस पर बस अटकी साँसें हैं आँखों में मोती है उतरा पर चुपके से रोती है जाने किस पल जगती है वो जाने किस पल सोती है मंदिर वो ना जाती फिर भी घर मंदिर सा लगता है घर का कोना कोना माँ से महका महका रहता है बच्चों के मन में आशा के दीप नये संजोती है जाने किस पल जगती है वो जाने किस पल सोती है चेहरे की झुर्री में अनुभव साफ दिखाई देता है श्वेत धवल केशों में युग संदेश सुनाई देता है इन सब से अंजान वो अब तक ऊन पुरानी धोती है जाने किस पल जगती है वो जाने किस पल सोती है मूल स्रोत : स्वप्न मेरे 

मेरे पास माँ है - M. Afsar Khan

माँ   एक   कोमल   एहसास ,  माँ   ज़िन्दगी   की   ख्वाब ,  माँ   दुनिया   की सबसे   बड़ी   नेमत । इन   मुर्गी   के   बच्चों   को   जरा   गौर   से   देखिये ... अपनी   माँ   से   कैसे   लिपटे   हुए   हैं ।  और   इस   माँ   ने   अपने   बच्चों   को   कैसे अपने   ऊपर , अपने  परों   में   छिपा   रक्खा   है । यही   है   माँ   का   अनूठा   प्यार । सरे जहाँ की नेमतों में सबसे बड़ी नेमत है माँ का प्यार, इसी लिए लोग कहते हैं कि  मेरे   पास   माँ   है ,  माँ ...  मुनव्वर   राना   के   शब्दों   में ... जब   भी   कश्ती   मेरी   सैलाब   में   आ   जाती   है , माँ   दुआ   करती   हुई    ख्वाब   में   आ जाती   है । मुसीबत   के   दिनों ...

मां का क्या होगा ? -राजकुमार सकोलिया

ज़माने के हालात देखकर  मरने को मन तो करता है मेरा मगर उस दुआ का क्या होगा जो किसी ने मांगी थी मेरी सलामती के लिए उन आंखों का क्या होगा जो आते-जाते देखती हैं  मेरा रास्ता उस दिल का क्या होगा जो धड़कता है मेरा नाम लेकर और उन सांसों का क्या होगा जो चलती हैं मेरी सांसों के साथ मेरी उस बूढ़ी मां का क्या होगा  जो बसती है मेरी धड़कन में और मुझे इंसान बनाया। --------------------------- २९/11- भार्गव नगर, जालंधर, 144003 (पंजाब)

माँ

रात की अलस उनींदी आँखों में एक स्वप्न सा चुभ गया है , कहीं कोई बेहद नर्म बेहद नाज़ुक ख़याल चीख कर रोया होगा । सुबह के निष्कलुष ज्योतिर्मय आलोक में अचानक कालिमा घिर आयी है , कहीं कोई चहचहाता कुलाँचे भरता मन सहम कर अवसाद के अँधेरे में घिर गया होगा । दिन के प्रखर प्रकाश को परास्त कर मटियाली धूसर आँधी घिर आई है , कहीं किसी उत्साह से छलछलाते हृदय पर कुण्ठा और हताशा का क़हर बरपा होगा । शिथिल शाम की अवश छलकती आँखों में आँसू का सैलाब उमड़ता जाता है , कहीं किसी बेहाल भटकते बालक को माँ के आँचल की छाँव अवश्य मिली होगी । साधना वैद

Mother ख़ाक जन्नत है इसके क़दमों की सोच फिर कितनी क़ीमती है मां ?

मां एक किरदारे-बेकसी है मां ज़िन्दगी भर मगर हंसी है मां दिल है ख़ुश्बू है रौशनी है मां                               अपने बच्चों की ज़िन्दगी है मां ख़ाक जन्नत है इसके क़दमों की सोच फिर कितनी क़ीमती है मां इसकी क़ीमत वही बताएगा दोस्तो ! जिसकी मर गई है मां रात आए तो ऐसा लगता है चांद से जैसे झांकती है मां सारे बच्चों से मां नहीं पलती सारे बच्चों को पालती है मां कौन अहसां तेरा उतारेगा एक दिन तेरा एक सदी है मां आओ ‘क़ासिम‘ मेरा क़लम चूमो इन दिनों मेरी शायरी है मां कलाम : जनाब क़ासिम नक़वी साहब http://vedquran.blogspot.com/2010/05/mother.html