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माँ बाप की अहमियत और फ़ज़ीलत

मदर्स डे पर विशेष भेंट  इस्लाम में हुक़ूक़ुल ऐबाद की फ़ज़ीलत व अहमियत इंसानी मुआशरे में सबसे ज़्यादा अहम रुक्न ख़ानदान है और ख़ानदान में सबसे ज़्यादा अहमियत वालदैन की है। वालदैन के बाद उनसे मुताल्लिक़ अइज़्जा वा अक़रबा के हुक़ूक़ का दर्जा आता है डाक्टर मोहम्मद उमर फ़ारूक़ क़ुरैशी 1 जून, 2012 (उर्दू से तर्जुमा- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम) दुनिया के हर मज़हब व मिल्लत की तालीमात का ये मंशा रहा है कि इसके मानने वाले अमन व सलामती के साथ रहें ताकि इंसानी तरक़्क़ी के वसाइल को सही सिम्त में रख कर इंसानों की फ़लाहो बहबूद का काम यकसूई के साथ किया जाय। इस्लाम ने तमाम इंसानों के लिए ऐसे हुक़ूक़ का ताय्युन किया है जिनका अदा करना आसान है लेकिन उनकी अदायगी में ईसार व कुर्बानी ज़रूरी है। ये बात एक तरह का तर्बीयती निज़ाम है जिस पर अमल कर के एक इंसान ना सिर्फ ख़ुद ख़ुश रह सकता है बल्कि दूसरों के लिए भी बाइसे राहत बन सकता है। हुक़ूक़ की दो इक़्साम हैं । हुक़ूक़ुल्लाह और हुक़ूक़ुल ऐबाद। इस्लाम ने जिस क़दर ज़ोर हुक़ूक़ुल ऐबाद पर दिया है इससे ये अमर वाज़ेह हो जाता है कि इन हुक़ूक़ का कितना बुलंद मुक़ाम है और उनकी अ
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माँ की ममता

ईरान में सात साल पहले एक लड़ाई में अब्‍दुल्‍ला का हत्यारा बलाल को सरेआम फांसी देने की तैयारी पूरी हो चुकी थी. इस दर्दनाक मंजर का गवाह बनने के लिए सैकड़ों का हुजूम जुट गया था. बलाल की आंखों पर पट्टी बांधी जा चुकी थी. गले में फांसी का फंदा भी  लग चुका था. अब, अब्‍दुल्‍ला के परिवार वालों को दोषी के पैर के नीचे से कुर्सी हटाने का इंतजार था. तभी, अब्‍दुल्‍ला की मां बलाल के करीब गई और उसे एक थप्‍पड़ मारा. इसके साथ ही उन्‍होंने यह भी ऐलान कर दिया कि उन्‍होंने बलाल को माफ कर दिया है. इतना सुनते ही बलाल के घरवालों की आंखों में आंसू आ गए. बलाल और अब्‍दुल्‍ला की मां भी एक साथ फूट-फूटकर रोने लगीं.

सुब्हान-अल्लाह, ज़िन्दगी बनाए बेहतर

ज़िन्दगी बनाए बेहतर Subhanallah आयुर्वेदिक और यूनानी प्रोडक्ट्स के होलसेलर सैयद सलीम अहमद साहब हमारे एक अच्छे दोस्त हैं। उनके इसरार पर उनके घर जाना हुआ तो उनके घर के चार बच्चों पर इज्तेमाई (सामूहिक) हाज़िरात की। कभी कभी हम हरेक पर अलग अलग हाज़िरात करने के बजाय कई पर एक साथ भी कर लेेते हैं। अगले दिन उनकी बेटी ने अपनी टीचर को बताया कि कैसे उसके साथ एक जिन्न (नज़र न आने वाला चेतन जीवधारी) लग गया था, जब वह उनके साथ मन्दिर के गेट तक गई थी! सलीम भाई की बेटी ने हमारी तारीफ़ में दो चार बातें मज़ीद ऐसी कह दीं कि उनकी टीचर ने फ़ोन करके हमसे मुलाक़ात का टाईम मांगा। बालीं-‘मैं किस वक्त और किसके साथ आऊँ? हमने कहा -‘आप अपनी सहूलत के वक्त अपनी मां या अपने दादा दादी वग़ैरह किसी के साथ आ सकती हैं।’ उन्होंने कहा -’अपने दादा से तो मैं बोलती तक नहीं। मैं अपनी मम्मी के साथ आ जाऊँगी।’ दादा से न बोलने की बात उनके जीवन में नकारात्मकता का पता दे रही थी। नकारात्मकता इंसान को कमज़ोर बनाती है और फिर वह कई तरह के हमलों का आसान शिकार बनकर रह जाता है। उससे अगले दिन 21 मार्च 2014 को वह अपनी मां और सलीम भाई की बेटी को स

मनुष्य की प्रजनन क्षमता बढ़ाने में रेड मीट मददगार garbhdharan

लंदन। मांसाहार पसंद करने वालों के लिए यह एक अच्छी ख़बर हो सकती है। आहार विशेषज्ञों का कहना है कि रेड मीट में मिलने वाला पोषक तत्व प्रजनन क्षमता को बढ़ाता है। उनके मुताबिक़ संतान की चाह रखने वाले दंपतियों के स्वास्थ्य के लिए रेड मीट लाभदायक साबित हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि आहार में कुछ चीज़ों की कमी से गर्भधारण करने में समस्या आ सकती है। विटामिन बी 6 ऐसी ही एक चीज़ है। इस विटामिन को प्रजनन और गर्भधारण की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है और रेड मीट में यह पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। इस आधार पर वैज्ञानिकों का मानना है कि रेड मीट का सेवन परिवार बढ़ाने के लिए अहम साबित हो सकता है। रेड मीट मांस का वह प्रकार है जो कच्चे में लाल रंग का दिखाई पड़ता है और पकने पर सफ़ेद नहीं रह जाता। वयस्क स्तनपायियों के मांस को रेड मीट की श्रेणी में रखा जाता है। आहार विशेषज्ञ कैरी रक्सटन ने कहा कि उम्रदराज़ महिलाएं प्रजनन क्षमता को रेड मीट से जोड़कर बताती रही हैं। दैनिक हिन्दुस्तान दिनांक 13 जनवरी 2014 अंतिम पृष्ठ Source:  http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/BUNIYAD/entry/red-meat

माँ को घर से हटाने का अंजाम औलाद की तबाही

मिसालः‘आरूषि-हेमराज मर्डर केस’ आज दिनांक 26 नवंबर 2013 को विशेष सीबीाआई कोर्ट ने ‘आरूषि-हेमराज मर्डर केस’ में आरूषि के मां-बाप को ही उम्रक़ैद की सज़ा सुना दी है। फ़जऱ्ी एफ़आईआर दर्ज कराने के लिए डा. राजेश तलवार को एक साल की सज़ा और भुगतनी होगी। उन पर 17 हज़ार रूपये का और उनकी पत्नी डा. नुपुर तलवार पर 15 हज़ार रूपये का जुर्माना भी लगाया गया है। दोनों को ग़ाजि़याबाद की डासना जेल भेज दिया गया है। डा. नुपुर तलवार इससे पहले सन 2012 में जब इसी डासना जेल में बन्द थीं तो उन्होंने जेल प्रशासन से ‘द स्टोरी आॅफ़ एन अनफ़ार्चुनेट मदर’ शीर्षक से एक नाॅवेल लिखने की इजाज़त मांगी थी, जो उन्हें मिल गई थी। शायद अब वह इस नाॅवेल पर फिर से काम शुरू कर दें। जेल में दाखि़ले के वक्त उनके साथ 3 अंग्रेज़ी नाॅवेल देखे गए हैं।  आरूषि का बाप राकेश तलवार और मां नुपुर तलवार, दोनों ही पेशे से डाॅक्टर हैं। दोनों ने आरूषि और हेमराज के गले को सर्जिकल ब्लेड से काटा और आरूषि के गुप्तांग की सफ़ाई की। क्या डा. राजेश तलवार ने कभी सोचा था कि उन्हें अपनी मेडिकल की पढ़ाई का इस्तेमाल अपनी बेटी का गला काटने में करना पड़ेगा?

छात्रा से किया 75 बार balatkar

आम तौर पर आप जब भी किसी से समाज में गिरते मूल्यों को ऊपर उठाने के बारे विचार विमर्श करेंगे तो यह सुनने को मिलता है कि शिक्षा इन सब समस्याओं का हल है. ...लेकिन क्या सचमुच शिक्षा समाज से बुराईयों को हटा रही है ? ताज़ा खबर यह है कि एक अध्यापक ने चौथी क्लास की अपनी शिष्या से बलात्कार करना शुरू किया तो 75 बार कर डाला। इसलिए सब अपने बच्चे बच्चियों की हिफाज़त के लिये उनके टीचरों पर सतर्क दृष्टि ज़रूर रखे. पूरी ख़बर पढने के लिए अखबार की कटिंग देख लें. एक बार फिर सोचिये कि कौन सी चीज़ हमसे छूट रही है ?  ऐसे बहुत से केस हैं बल्कि ज़ुल्म के शिकार तमाम केस इस बात के गवाह हैं कि उन्हें बरसों भटकने के बाद भी दुनिया में न्याय नहीं मिल पाया. इसीलिये वैदिक धर्म और इसलाम में ही नहीं बल्कि अन्य धर्मों में भी मरने के बाद पीड़ितों को न्याय मिलने और पापियों को नर्क की आग में जलाये जाने का बयान मिलता है. नास्तिकों ने इस बात को मानने से ही इंकार कर दिया है. जीवन और मौत के बारे में सही जानकारी की कमी भी जरायम बहने का एक सबब है. हमें अपने बच्चों को बुरे लोगों की शिनाख्त कराने के साथ यह भी बताना चाह

बेटी को इज़्ज़त दो, इज़्ज़त की ज़िन्दगी जीने के लिए

इस्लाम में औरत का मुकाम: एक झलक इस्लाम   को   लेकर   यह   गलतफहमी   है   और   फैलाई   जाती   है   कि   इस्लाम   में   औरत को   कमतर   समझा   जाता   है।   सच्चाई   इसके   उलट   है।   हम   इस्लाम   का   अध्ययन करें   तो   पता   चलता   है   कि   इस्लाम   ने   महिला   को   चौदह   सौ    साल   पहले   वह मुकाम   दिया   है   जो   आज   के   कानून   दां   भी   उसे   नहीं   दे   पाए। इस्लाम   में   औरत   के   मुकाम   की   एक   झलक   देखिए। जीने   का   अधिकार शायद   आपको   हैरत   हो   कि   इस्लाम   ने   साढ़े   चौदह   सौ   साल पहले   स्त्री   को   दुनिया   में   आने   के   साथ   ही   अधिकारों   की   शुरुआत   कर   दी   और   उसे जीने   का   अधिकार   दिया।   यकीन   ना   हो   तो   देखिए   कुरआन   की   यह   आयत - और   जब   जिन्दा   गाड़ी   गई   लड़की   से   पूछा   जाएगा ,  बता   तू   किस   अपराध   के कारण   मार   दी   गई ?"( कुरआन ,  81:8-9)   ) यही   नहीं   कुरआन   ने   उन   माता - पिता   को   भी   डांटा   जो   बेटी   के   पैदा   होने   पर अप्रसन्नता   व्यक्त   करते   हैं -   &#