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Showing posts from June, 2012

अपने बच्चो को आत्महत्या से कैसे बचाएं ?

इंसान के लिए अच्छा क्या है और बुरा क्या है ? इसे इंसान खुद नहीं जानता . जब तक इंसान अपने पैदा करने वाले के हुक्म को नहीं मानता तब तक वह अच्छा इंसान नहीं बन सकता. पैदा करने वाला क्या चाहता है ? आज इसकी परवाह कम लोगों को है. इस धरती पर ज़िंदा रहने का हक़ ऐसे ही लोगों का है. धरती पर जीवन और नैतिकता इन से ही है. दूसरे लोग तो जब तक ज़िंदा रहते हैं अनैतिकता और अनाचार करते हैं और उनमें से बहुत से आत्महत्या करके मर जाते हैं. आज भारत में हर चौथे मिनट पर एक नागरिक आत्महत्या कर रहा है. अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका लांसेट का सर्वे कहता है कि भारत में युवाओं की मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है आत्महत्या। जीवन का अंत करने वाले इन युवाओं की उम्र है 15 से 29 वर्ष है। आमतौर पर माना जाता है कि गरीबी, अशिक्षा और असफलता से जूझने वाले युवा ऐसे कदम उठाते हैं। ऐसे में इस सर्वे के परिणाम थोड़ा हैरान करने वाले हैं। इस शोध के मुताबिक उत्तर भारत के बजाय दक्षिण भारत में आत्महत्या करने वाले युवाओं की संख्या अधिक है। इतना ही नहीं देशभर में आत्महत्या से होने वाली कुल मौतों में से चालीस प्रतिशत केवल चार बड़े दक्षिणी राज्य

सेक्स और क्राइम की दलदल से अपनी नस्ल को कैसे बचाएं ?

पल्लवी सक्सेना जी बता रही हैं एक सच्ची घटना  करे कोई भरे कोई ...  कल की ही बात है मेरे शहर भोपाल में मेरे घर के पास एक दवाई की दुकान है जिसे एक पिता पुत्र  मिलकर चलाते थे ,उन अंकल से अर्थात दुकान के मालिक की मेरे पापा के साथ बहुत अच्छी दोस्ती हो गयी थी। कल अचानक पता चला कि उनके 22 साल के लड़के ने आत्महत्या कर ली। जानकार बेहद अफसोस हुआ। इस सारे मामले के पीछे की जो कहानी मेरे पापा को उन्होंने जो सुनाई और मेरे पापा ने जो मुझे बताया वही आपके सामने रख रही हूँ। हुआ यूं कि उनका बेटा न जाने कैसे एक-के बाद एक कुछ स्त्रियों के चक्कर में फंस गया उसकी ज़िंदगी में आने वाली तीनों लड़कियों में से दो ने उसे प्यार में धोखा दिया तीसरी बार एक महिला जो खुद 2 बच्चों की माँ थी उसने उसके साथ सहानभूति रखते हुए संबंध बनाए और एक दिन हद पार हो जाने के बाद उसका वीडियो बना कर उस लड़के को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया। बदले में मांगी 5 लाख रुपये की धनराशि, एक दिन पुत्र ने पिता के पास आकर कहा पापा मुझे 5 लाख रूपय चाहिए पिता ने कहा 5 क्या तुम 7 लाख ले लेना, मगर पहले कारण तो बताओ कि आ

'सत्यमेव जयते' में पतियों के जुल्म की कहानी 'satymev-jayate'

नई दिल्‍ली।।   'सत्‍यमेव जयते' में आमिर ने इस हफ्ते उठाया महिलाओं की सुरक्षा और घरेलू हिंसा का मुद्दा। शो की शुरुआत में दर्शकों की लाइन में बैठे सभी पुरुषों से आमिर ने पूछा कि ऐसी कौन सी जगहे हैं, जहां महिलाएं असुरक्षित हैं? दर्शकों ने लोकल ट्रेन, सबवे से रात को अकेले गुजरना, कॉल सेंटर्स को महिलाओं के लिए सबसे ज्यादा असुरक्षित बताया। लेकिन आमिर ने बताया कि महिलाएं पब्लिक प्लेसों मे नहीं बल्कि घर में असुरक्षित हैं। आमिर ने शो में मुंबई निवासी स्‍नेहलता को बुलाया और दर्शकों को उनकी कहानी उन्हीं की जुबानी सुनवाई कि कैसे उनके पति उनके साथ मारपीट करते थे और बात-बात पर गंदी गालियां देते थे, हाथ उठाते थे। स्नेहलता ने बताया कि एक बार पति की पसंद के चावल नहीं बने तो उन्होंने उसे जोर से थप्‍पड़ मार दिया। थप्पड़ मारते वक्त पति ने यह तक नहीं देखा कि स्नेहलता की गोद में उनकी छोटी सी छोटी बच्‍ची भी थी। थप्पड़ इतनी जोर से मारा गया कि गोद से बच्ची जमीन पर गिर गई। यही नहीं, एक बार वह अपने भाई से मिलने गईं तो पति ने यहाँ तक भला-बुरा कहा कि अपने यार से मिलकर आई है। जब उन्होंने

आमिर की अम्मी की कहानी

इस आमिर का दर्द न पूछो प्रतिरोध में सैयद फहद दिल्ली के आमिर अब आजाद हैं। 14 साल जेल में बिताने के बाद उनको अपनी जिंदगी पटरी पर लाने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है, लेकिन वह घबराए नहीं हैं। हालांकि अपनी अम्मी की हालत उन्हें मायूसी की तरफ ले जाती है। वह कहते हैं कि मेरा केस अब्बू ही देखते थे। वह जल्द से जल्द मुझे रिहा करवाना चाहते थे, लेकिन मेरे केस के दौरान ही उनका इंतकाल हो गया। उसके बाद सारी जिम्मेदारी मेरी अम्मी ने ले ली। मुझे रिहा कराने के लिए उन्हें दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं। शायद यह सब बर्दाश्त नहीं कर पाईं वह, उन्हें ब्रेन हैमरेज हो गया, जिसके बाद उनकी जान तो बच गई, पर चेतना और आवाज, दोनों चली गई। आज वह इस हालत में भी नहीं कि मेरी रिहाई की खुशियां मना सकें। लोग कहते हैं कि इनका इलाज मुमकिन है। पर मेरे घर की सारी जमा-पूंजी मेरी रिहाई में ही खर्च हो गई। यकीकन यह एक आमिर की कहानी नहीं है। देश के हजारों नौजवान जेलों में सड़ रहे हैं। हमारी जेलें ऐसे लोगों से भरी पड़ी हैं, जिन पर कभी मुकदमा नहीं चलाया गया। हमारी अदालतों के गलियारे ऐसे लोगों से अटे पड़े हैं, जिन्हें अपनी

यादें :चर्चित लेखिका-कमल कुमार

मैं मां की पसंद नहीं थी। एक तो मेरे रूप-रंग को लेकर मां की चिंता फिर मैं दूसरों जैसी उठ जाओ उठ गई। बैठ जाओ बैठ गई। घूम जाओ, घूम गई वाली लड़कियों में से नहीं थी। मां चाहती थी कि मैं अच्छी लड़कियों की तरह बनूं। खाना बनान सीखूं , सिलाई-बुनाई करूं, घर के कामों में हाथ बंटाऊं और जो कोई जैसा कहे वैसा करूं। मुझे इन कामों का कतई शौक नहीं था। घर में बहुत सारे नौकर-चाकर तो थे पर तो भी मां मुझे कामों में लगाना चाहती थी। मां को मेरा भागना-दौडऩा, कूदना-फांदना, हंसना-खेलना या किसी कोने में किनारे बैठ कर दिन भर कहानियों की किताबें पढऩा अखरता था। मां किसी ने किसी बात को लेकर डांटती-फटकारती इसलिए मैं अपने पिता के अधिक नजदीक थी। शाम को उनके साथ क्लब जाना बैडमिंटन खेलना। सबके साथ बोलना-हंसना और मौज-मस्ती करना। मां इससे चिढ़ती थी। पिताजी से कहती आप इस लडक़ी को बिगाड़ रहे हो। आगे जाके इसका क्या होगा। पिता हंस कर कहते- पढ़-लिख जाएगी सब ठीक हो जाएगा। पिताजी का ट्रांसफर अलवर में हो गया था। मेरा दाखिला स्कूल में नहीं हो सका। मुझे पांच-छह महीने घर में ही रहना पड़ा था। नीचे बैंक का दफ