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....दुआ एक माँ की....



मेरी ख़ामोशीओं की गुंज सदा देती है।

तू सुने या ना सुने तुझको दुआ देती है।

मैंने पलकों में छुपा रख्खे थे आँसू अपने।(2)

रोकना चाहा मगर फ़िर भी बहा देती है।

मैंने पाला था बड़े नाज़-मुहब्बत से तुझे(2)

क्या ख़बर जिंदगी ये उसकी सज़ा देती है।

तूँ ज़माने की फ़िज़ाओं में कहीं गुम हो चला(2)

तेरे अहसास की खुशबू ये हवा देती है।

तूँ कहीं भी रहेअय लाल मेरे दूरी पर(2)

दिल की आहट ही मुझे तेरा पता देती है।

Comments

सदा said…
दिल की आहट ही मुझे तेरा पता देती है।

बहुत खूब ये दुआओं की सदा ...।
DR. ANWER JAMAL said…
तू कहीं भी रहे”अय लाल मेरे” दूरी पर
दिल की आहट ही मुझे तेरा पता देती है।

Bahut Khoob.
Roshi said…
maa ke liye jitna bhi lika jaye kam hai '''''''
bahut sunder
S.M.Masoom said…
रज़िया जी बेहतरीन ,लाजवाब.
Kunwar Kusumesh said…
तूँ कहीं भी रहे”अय लाल मेरे” दूरी पर,
दिल की आहट ही मुझे तेरा पता देती है।

बेहतरीन शेर के लिए रज़िया जी को बधाई.

पढ़ते समय मुझे किसी का एक बड़ा मौजूं शेर याद आ गया:-
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है.
माँ दुआ करते हुए ख़्वाब में आ जाती है.

वाक़ई माँ से बढ़के कोई नहीं.
DR. ANWER JAMAL said…
@ कुसुमेश जी ! इस संवेदनशील ब्लॉग पर तशरीफ़ आवरी के लिए मैं आपका शुक्रगुजार हूँ.

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