मेरी ख़ामोशीओं की गुंज सदा देती है।
तू सुने या ना सुने तुझको दुआ देती है।
मैंने पलकों में छुपा रख्खे थे आँसू अपने।(2)
रोकना चाहा मगर फ़िर भी बहा देती है।
मैंने पाला था बड़े नाज़-मुहब्बत से तुझे(2)
क्या ख़बर जिंदगी ये उसकी सज़ा देती है।
तूँ ज़माने की फ़िज़ाओं में कहीं गुम हो चला(2)
तेरे अहसास की खुशबू ये हवा देती है।
तूँ कहीं भी रहे”अय लाल मेरे” दूरी पर(2)
दिल की आहट ही मुझे तेरा पता देती है।
Comments
बहुत खूब ये दुआओं की सदा ...।
दिल की आहट ही मुझे तेरा पता देती है।
Bahut Khoob.
bahut sunder
दिल की आहट ही मुझे तेरा पता देती है।
बेहतरीन शेर के लिए रज़िया जी को बधाई.
पढ़ते समय मुझे किसी का एक बड़ा मौजूं शेर याद आ गया:-
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है.
माँ दुआ करते हुए ख़्वाब में आ जाती है.
वाक़ई माँ से बढ़के कोई नहीं.