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Showing posts from September, 2011

नारी को आगे बढ़ने में मदद करते हैं पुरूष भी

जो सच में एक नारी होती है वह कहती है कि उसे आगे बढ ने में उसकी मां ने ही नहीं बल्कि उसके बाप ने भी मदद की है। इक्का दुक्का नासमझ औरत-मर्दों ने कभी कभी इस सच्चाई को झुठलाने की कोशिशें भी की हैं लेकिन सच बहरहाल सच होता है और वह बार बार सामने आता रहता है। यह स्टोरी पढ़ी तो यही सच एक बार फिर हम सबके सामने आ गया है। पेरेंट्स का भरोसा बनाता है बेटियों को कामयाब संदीप द्विवेदी गुड़गांव। बेटियों की कामयाबी की असल वजह पेरेंट्स का भरोसा होता है। आत्मविश्वास से भरी कनुप्रिया कहती हैं कि पेरेंट्स अगर लड़कियों को प्रोत्साहित करें और उन्हें अपने फैसले लेना सिखाएं तो किसी भी समाज की तकदीर बदल सकती है। कनुप्रिया डिडवानिया (अग्रवाल) देश की पहली टेस्ट टय़ूब बेबी हैं। कलकत्ता में जन्मीं कनुप्रिया ने पुणे से मैनेजमेंट की पढ़ाई की और पिछले दस सालों से साइबर सिटी में रह रही हैं। वो एक नामी कन्फेकशनरी कंपनी में ग्रुप प्रोडक्ट मैनेजर के तौर पर काम कर रही हैं। बदलते सामाजिक परिदृश्य में बदलती सोच को सही करार देते हुए कनुप्रिया कहती हैं कि अब लड़कियां शादी के बाद पराई नहीं होती। लड़कों की तुलना में लड़कियों का

खास हैं ये बच्चे

हमारे आसपास ऐसे लोग भी हैं, जो शारीरिक या मानसिक रूप से फिट नहीं। उन्हें हिकारत भरी नजर से देखने या उन पर तरस खाने से बेहतर है, उन्हें सक्षम बनाने की कोशिश करना। मानसिक बीमारियां बचपन में ही साफ नज़र आने लगती हैं। लक्षणों पर गौर कर स्पेशल बच्चों की परेशानियों को कम कर उन्हें काबिल बनाया जा सकता है। कैसे, एक्सपर्ट्स से बात करके बता रही हैं गरिमा ढींगड़ा: सेरेब्रल पाल्सी को दिमागी लकवा भी कहते हैं। सेरेब्रल का मतलब है दिमाग और पाल्सी माने उस हिस्से में कमी आना जिससे बच्चा अपनी बॉडी को हिलाता-डुलाता है। इसे इस तरह भी समझ सकते हैं कि दिमाग का जो हिस्सा बच्चे के पैर और हाथ को कंट्रोल करता है और उन्हें हिलाने-डुलाने में मदद करता है, उस पर लकवे का असर बढ़ जाता है। इसमें बच्चे को हाथ और पैरों में दिक्कत ज्यादा होती है। इसके अलावा बोलने, सुनने, देखने और समझने में

शिशु गर्भनाल से 130 लाइलाज बीमारियां होंगी छूमंतर Good news

शिशु के जन्म के समय बेकार समझ कर फेंक दिए जाने वाले गर्भनाल के जरिए अब कैंसर, ज्यूकेमिया, थैलेसीमिया, शुगर और लीवर सिरोसिस जैसी 130 से अधिक लाइलाज बीमारियों का अचूक इलाज संभव हो गया है। गर्भनाल के अमूल्य गुण के कारण अब हजारों रुपए खर्च करके शिशु के गर्भनाल को वर्षों तक सहेज कर रखा जाने लगा है ताकि भविष्य में न केवल उस बच्चे को बल्कि उसके सहोदर भाई-बहन, माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी या परिवार के अन्य सदस्यों को होने वाली लाइलाज बीमारियों के चंगुल से छुटकारा दिलाया जा सके। इसके कारण हमारे देश में दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे बडे़ शहरों में गर्भनाल को सुरक्षित रखने वाले अनेक बैंकों को अर्विभाव हुआ है। इस प्रणाली को गर्भनाल स्टेम कोशिका बैंकिंग कहा जाता है। इन बैंकों में गर्भनाल में मौजूद स्टेम कोशिकाओं को वर्षों तक संरक्षित रखा जाता है। भारत के प्रमुख गर्भनाल रक्त बैंक बेबीसेल में हर महीने देश भर से कम से कम सौ दम्पत्ति अपने बच्चों के गर्भनाल की स्टेम कोशिकाओं को संरक्षित करवाते हैं। इस बैंक के संचालक मुंबई स्थित रिजेनेरेटिव मेडिकल सर्विसेस 'आरएमएस' के प्रमुख वैज्ञानिक अधिक

कोई अंडाणु कैसे आकर्षित करता है किसी शुक्राणु को ? Ovum & Sperm

प्रेगनेन्‍सी से जुडी़ समस्याओं का हल संभव वैज्ञानिकों ने एक नए शोध में उस खास शर्करा अणु [शुगर सेल] का पता लगाया है, जिससे गर्भधारण की प्रक्रिया के दौरान एक अंडाणु किसी शुक्राणु को अपनी ओर आकिर्षत करता है। इस नई खोज से गर्भधारण से जुडी दिक्कतों का सामना कर रहे दंपतियों को लाभ मिल सकता है। विज्ञान पत्रिका साइंस के ताजा अंक में प्रकाशित इस शोध में वैज्ञानिकों ने दावा किया कि शर्करा का एक खास किस्म के अणु 'एसलेक्स' की वजह से ही अंडाणु किसी भी शुक्राणु को अपनी तरफ आकिर्षत कर पाता है। इस शोध को अंजाम देने वाले वैज्ञानिकों के दल की सदस्य रहीं ब्रिटेन के इंपीरियल कालेज की एन डेल ने कहा कि इस शोध से नपुंसकता के बारे में सीमित हमारे ज्ञान में इजाफा हुआ है। इससे उन बहुत सी महिलाओं को फायदा मिलेगा जो किसी कारण से गर्भधारण करने में असफल रहती हैं। इस शोध से पहले तक वैज्ञानिक बस इतना ही जानते थे कि जब एक शुक्राणु किसी अंडाणु के निकट पंहुचता है तो उसका प्रोटीन अंडाणु की बाहरी सतह पर मौजूद कुछ खास किस्म की शर्कराओं से क्रिया करता है। जब शर्करा और प्रोटीन एक दूसरे से मिल जाते हैं त

तुम्हारी याद में माँ

यह सावन भी बीत गया माँ , ना आम, ना अमलतास, ना गुलमोहर, ना नीम, ना बरगद, ना पीपल किसी पेड़ की डालियों पे झूले नहीं पड़े ! ना चौमासा और बिरहा की तान सुनाई दी ना कजरी, मल्हार के सुरीले बोलों ने कानों में रस घोला ! ना मोहल्ले पड़ोस की लड़कियों के शोर ने झूला झूलते हुए आसमान गुँजाया , ना राखी बाँधने के बाद नेग शगुन को लेकर झूठ-मूठ की रूठा रूठी और मान मनौव्वल ही हुई ! जबसे तुम गयी हो माँ ना किसीने जीवन के विविध रंगों से मेरी लहरिये वाली चुनरी रंगी , ना उसमें हर्ष और उल्लास का सुनहरी, रुपहली गोटा लगाया ! ना मेरी हथेलियों पर मेंहदी से संस्कार और सीख के सुन्दर बूटे काढ़े , ना किसीने मेंहदी रची मेरी लाल लाल हथेलियों को अपने होंठों से लगा बार-बार प्यार से चूमा ! ना किसी मनिहारिन ने कोमलता से मेरी हथेलियों को दबा मेरी कलाइयों पर रंगबिरंगी चूड़ियाँ चढ़ाईं , ना किसीने ढेरों दुआएं देकर आशीष की चमकीली लाल हरी चार चार चूड़ियाँ यूँ ही बिन मोल मेरे हाथों में पहनाईं ! अब तो ना अंदरसे और पूए मन को भाते हैं , ना स

मैंने माँ की दुआओं का असर है देख लिया ;

मैंने माँ की दुआओं का असर है देख लिया ; मौत आकर के मेरे पास आज लौट गयी . माँ ने सिखलाया है तू रहना मोहब्बत से सदा ; याद आते ही सैफ़ नफरतों की टूट गयी . जिसने माँ को नहीं बख्शी कभी इज्जत दिल से ; ऐसी औलाद की खुशियाँ ही उससे रूठ गयी . मिटाया खुद को जिस औलाद की खातिर माँ ने ; बेरूखी देख उसकी माँ भी आज टूट गयी . कैसे रखते हैं कदम ?माँ ने ही सिखाया था ; वो ऐसा दौड़ा की माँ ही पीछे छूट गयी . जो आँखें देखकर शैतानियों पर हँसती थी ; तेरी नादानियों पर रोई और सूज़ गयी . shikha kaushik