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माँ....!!

माँ....!! माँ....!!
दिल की गहराईयों से निकला हुआ एक दिव्य शब्द,
जैसे ही मैं माँ को पुकारती ,
वो गहरी निद्रा से भी उठ कर मुझे अपनी बाहों मैं भर लेती,
और कहती क्या हुआ मेरी रानी बिटिया को,
डर गयी थी क्या!
और तब मैं उसे अपने पुरे  दम से भीच लेती अपने में 

माँ की बाहों का घेरा
मेरे लिए होता एक ठोस सुरक्षा कवच,
फिर डर को भूल उसकी गोद मैं आराम से सो जाया करती,
तब इस बात से होती अनजान की वो भी तो सोएगी....
और माँ अपनी आँखों की नींद चुपके से मेरी पलकों पर
रख कर ममता से भरी नज़रों से निहारा करती

और इसी तरह सुबह का सूरज का हो जाता आगाज
माँ की देहलीज़ पर,
और माँ धीरे से मेरा सर तकिये पर रख कर उठ जाया करती थीं,
हम सभी के लिए,
तब क्यूँ नहीं सोचा कभी माँ के लिए,

आज माँ बन जाने के बाद ,
माँ का हम सब के प्रति समर्पित होना समझ में आता है ,
कितनी ख़ुशी मिलती है अपना सर्वस्व अपने बच्चों पर न्योछावर करके,
खुद को अपने बच्चो में जीना किता देता है ख़ुशी....
भले वो नींद हो, समय हो, या हो  हंसी ,
या फिर ...
निस्वार्थ ममता.!!!!!

Comments

DR. ANWER JAMAL said…
आज माँ बन जाने के बाद ,
माँ का हम सब के प्रति समर्पित होना समझ में आता है,

Right you are.
Nice poem.
माँ तो बस माँ ही है| माँ की जगह दुनियां में कोई नहीं ले सकता है| धन्यवाद|
सदा said…
खुद को अपने बच्चो में जीना किता देता है ख़ुशी....
भले वो नींद हो, समय हो, या हो हंसी ,
या फिर ...
निस्वार्थ ममता.!!

दिल की गहराईयों से निकला हर शब्‍द मां के लिये मां को समर्पित ... ।
Minakshi Pant said…
हाँ दोस्त आप बिल्कुल सही कहती हैं की माँ बनने के बाद ये एहसास अच्छे से समझ आता है |
सुन्दर रचना |
माँ शब्द में ही सम्पूर्ण स्रष्टि समाई हुई है
Kunal Verma said…
माँ...वो माँ ही तो है जो आपके सारे गम अपने मेँ समेट लेती है।

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