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Showing posts from August, 2011

बाप अपनी ही बेटियों से बरसों करता रहा बलात्कार ; मां की अहमियत समझाती हुई एक ख़बर

40 साल पिता की कैद में रहीं बेटियां   वियना। आस्ट्रिया के उत्तरी शहर ब्रानो में रहने वाली दो बहनों को 40 वर्ष से भी अधिक समय से बंधक बनाकर रखने, मारपीट करने और उनका यौनशोषण करने का उनके ही पिता पर गंभीर आरोप लगा है। ऊपरी आस्ट्रिया प्रांत के पुलिस विभाग ने गुरूवार को जारी एक बयान में इस सनसनीखेज मामले की जानकारी दी। पुलिस के मुताबिक ब्रानो शहर के नजदीक रहने वाले एक व्यक्ति ने वर्ष 1970 से ही लगातार अपनी दोनों बेटियों को घर में बंधक बनाकर रखा और उन्हें किसी से भी मिलने-जुलने की इजाजत नहीं दी। इतने वर्षो तक वह दोनो बेटियों को मारने-पीटने के अलावा उनका यौनशोषण भी करता रहा। आस्ट्रियाई पुलिस ने बताया कि आरोपी पिता ने अपनी दोनों बेटियों को घर के रसोईघर में वर्षो तक कैद करके रखा। दोनों बहनों को सोने के लिए लकड़ी की एक पतली बेंच भर दी गई थी। लेकिन वर्षो की जलालत झेलने के बाद गत मई में दोनों बहनों का गुस्सा फूट पड़ा जब इस बुजुर्ग ने बड़ी बेटी के साथ बलात्कार करने की कोशिश की। अब 53 साल की हो चुकी बड़ी बेटी ने अपने कुकर्मी पिता को ध

गो माता पर होता अत्याचार

माँ क्या होती है, माँ क्या अर्थ होता है, माँ का अर्थ शायद आज लोग भूल गए हैं। वैसे तो हम भारतीय हमेशा से कहते आए है गाय हमारी माता है ,मगर कल मैंने facebook पर एक वीडियो देखा जिसका शीर्षक था।  "गौ माता पर होता अत्याचार" देखा कर ही मेरा दिल दहल गया। तो जरा सोचिए उन पर क्या बीती होगी। मासूम बेगुना बेज़ुबान जानवार को कितनी बेरहमी से पकड़ कर काट दिया गया। जब हम किसी इंसान का दर्द नहीं देख सकते तो उस बेज़ुबान जानवार का कैसे देख सकते हैं।  जब हम हमारी माँ का किसी भी तरह का कोई अपमान नहीं सह सकते तो फिर उस माँ का अपमान हम खुद कैसे होते हुए देख सकते है।  एक इंसान होने के नाते ममता को जितना अच्छी तरह से हम समझ सकते हैं। शायद कोई जानवन न भी समझे, लकिन फिर भी माँ तो माँ ही होती है चाहे किसी इंसान की हो या जानवर की ममता की परिभाषा न कभी बदली है, न ही कभी बदलेगी।  और इस सब के बवाजूद भी बिना कुछ सोचे समझे उस रख्शसो ने एक नहीं कई सारी गायों के साथ वही किया जो उन्हे नहीं करना चाहिए था। किस बात की सजा दी गई उन मासूमो को क्यूँ किसी ने नहीं सोचा उन को बचाने के बारे में उनके मन से उठती या निकलत

मां का प्यार अनकंडीशनल होता है

विज्ञापन की दुनिया का जाना-माना नाम तो वह हैं ही, प्रसून जोशी की एक पहचान वे फिल्मी गीत भी हैं, जो उन्होंने पिछले कुछ साल में लिखे हैं। वह नई पीढ़ी के गीतकारों की उस पांत का हिस्सा हैं, जिसने हिंदी गीतों को नई ऊंचाई दी। प्रसून ने फिल्मी गीतों में कविता को ठीक उसी तरह प्रतिष्ठित करने का काम किया है, जैसे कभी कवि शैलेंद्र, साहिर लुधियानवी और इंदीवर ने किया था। प्रसून विज्ञापन की दुनिया से फिल्मों में आए हैं, इसलिए बाजार के दबाव और कविता के मर्म, दोनों को बखूबी समझते हैं। पिछले दिनों दीप भट्ट ने उनसे लंबी बात की। प्रस्तुत हैं बातचीत के कुछ अंश : आपने मां पर बहुत गीत लिखे, क्या ये सिर्फ कहानी की मांग पर ही लिखे गए? मेरा मां से बहुत गहरा लगाव है। जब मैंने तारे जमीं पर के लिए मां से जुड़ा गीत लिखा, तो उसमें मां से दूर हॉस्टल में रहने वाले बच्चे के भय और मां से भावनात्मक लगाव को दिखाया। इस पूरे गीत में मेरे भीतर का बच्चा भी मौजूद है। एक दिन जब में मुंबई में ताज होटल से बाहर निकल रहा था, तो एक अस्सी साल का बूढ़ा मुझसे लिपटकर रोने लगा। उसने कहा कि प्रसून मैं अस्सी का हूं और मेरी मा

वो जाने किस पल सोती है ? No Sleep

एक माँ अपने बच्चे के लिए क्या कुछ और कैसे करती है  ? यही सब जानिये दिगंबर नासवा जी के शब्दों में  माँ .....    मैने तो जब देखा अम्मा आँखें खोले होती है जाने किस पल जगती है वो जाने किस पल सोती है बँटवारे की खट्टी मीठी कड़वी सी कुछ यादें हैं छूटा था जो घर आँगन उस पर बस अटकी साँसें हैं आँखों में मोती है उतरा पर चुपके से रोती है जाने किस पल जगती है वो जाने किस पल सोती है मंदिर वो ना जाती फिर भी घर मंदिर सा लगता है घर का कोना कोना माँ से महका महका रहता है बच्चों के मन में आशा के दीप नये संजोती है जाने किस पल जगती है वो जाने किस पल सोती है चेहरे की झुर्री में अनुभव साफ दिखाई देता है श्वेत धवल केशों में युग संदेश सुनाई देता है इन सब से अंजान वो अब तक ऊन पुरानी धोती है जाने किस पल जगती है वो जाने किस पल सोती है मूल स्रोत : स्वप्न मेरे