Skip to main content

रोजाना सिर्फ ये दो काम कर लेंगे तो बीमार नहीं पड़ेगे

आजकल बदलते मौसम के साथ तबीयत बिगड़ जाना एक आम समस्या है। सर्दी, खांसी, पेट व बुखार जैसी समस्याएं कमजोर इम्युनिटी पॉवर के कारण बदलते मौसम के साथ शरीर पर तुरंत हावी हो जाती हैं। अगर आपके साथ भी यही परेशानी है। बदलते मौसम के साथ आपकी तबीयत भी नासाज हो जाती है तो आप रोज नीचे बताएं दो काम करें, बीमारियां आसपास भी नहीं फटकेंगी।

एक रिसर्च के नतीजे कहते हैं यदि कोई भी व्यक्ति जीवन भर सिर्फ इन दो उपायों को करता रहे तो उसके शारीरिक और मानसिक रूप से बीमार या कमजोर पडंने की संभावना लगभग न के बराबर रह जाती है ये सूर्य से जुड़े ये उपाय हमारे इम्यून सिस्टम को बेहद मजबूत बना देते हैं…

- उगते हुए सूरज की किरणों का शरीर से ज्यादा से ज्यादा स्पर्श होने दें। ऐसा करते हुए मार्निग वॉक, आसन, ध्यान या प्राणायाम करने से लाभ और भी अधिक बढ़ जाता है।

- सप्ताह में कम से कम 2 दिन धूप स्नान करें यानी सुबह की सूर्य किरणों के साथ नहाएं इससे आपके शरीर और मन की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी।

Source – http://religion.bhaskar.com/article/yoga-do-two-things-daily-will-just-not-sick-2763442.html?HFR-27=

Comments

बहुत अच्छी उपयोगी प्रस्तुति,

MY NEW POST ...सम्बोधन...

Popular posts from this blog

माँ बाप की अहमियत और फ़ज़ीलत

मदर्स डे पर विशेष भेंट  इस्लाम में हुक़ूक़ुल ऐबाद की फ़ज़ीलत व अहमियत इंसानी मुआशरे में सबसे ज़्यादा अहम रुक्न ख़ानदान है और ख़ानदान में सबसे ज़्यादा अहमियत वालदैन की है। वालदैन के बाद उनसे मुताल्लिक़ अइज़्जा वा अक़रबा के हुक़ूक़ का दर्जा आता है डाक्टर मोहम्मद उमर फ़ारूक़ क़ुरैशी 1 जून, 2012 (उर्दू से तर्जुमा- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम) दुनिया के हर मज़हब व मिल्लत की तालीमात का ये मंशा रहा है कि इसके मानने वाले अमन व सलामती के साथ रहें ताकि इंसानी तरक़्क़ी के वसाइल को सही सिम्त में रख कर इंसानों की फ़लाहो बहबूद का काम यकसूई के साथ किया जाय। इस्लाम ने तमाम इंसानों के लिए ऐसे हुक़ूक़ का ताय्युन किया है जिनका अदा करना आसान है लेकिन उनकी अदायगी में ईसार व कुर्बानी ज़रूरी है। ये बात एक तरह का तर्बीयती निज़ाम है जिस पर अमल कर के एक इंसान ना सिर्फ ख़ुद ख़ुश रह सकता है बल्कि दूसरों के लिए भी बाइसे राहत बन सकता है। हुक़ूक़ की दो इक़्साम हैं । हुक़ूक़ुल्लाह और हुक़ूक़ुल ऐबाद। इस्लाम ने जिस क़दर ज़ोर हुक़ूक़ुल ऐबाद पर दिया है इससे ये अमर वाज़ेह हो जाता है कि इन हुक़ूक़ का कितना बुलंद मुक़ाम है और उनकी अ

माँ तो माँ है...

कितना सुन्दर नाम है इस ब्लॉग का प्यारी माँ .हालाँकि प्यारी जोड़ने की कोई ज़रुरत ही नहीं है क्योंकि माँ शब्द में संसार का सारा प्यार भरा है.वह प्यार जिस के लिए संसार का हर प्राणी भूखा है .हर माँ की तरह मेरी माँ भी प्यार से भरी हैं,त्याग की मूर्ति हैं,हमारे लिए उन्होंने अपने सभी कार्य छोड़े और अपना सारा जीवन हमीं पर लगा दिया. शायद सभी माँ ऐसा करती हैं किन्तु शायद अपने प्यार के बदले में सम्मान को तरसती रह जाती हैं.हम अपने बारे में भी नहीं कह सकते कि हम अपनी माँ के प्यार,त्याग का कोई बदला चुका सकते है.शायद माँ बदला चाहती भी नहीं किन्तु ये तो हर माँ की इच्छा होती है कि उसके बच्चे उसे महत्व दें उसका सम्मान करें किन्तु अफ़सोस बच्चे अपनी आगे की सोचते हैं और अपना बचपन बिसार देते हैं.हर बच्चा बड़ा होकर अपने बच्चों को उतना ही या कहें खुद को मिले प्यार से कुछ ज्यादा ही देने की कोशिश करता है किन्तु भूल जाता है की उसका अपने माता-पिता की तरफ भी कोई फ़र्ज़ है.माँ का बच्चे के जीवन में सर्वाधिक महत्व है क्योंकि माँ की तो सारी ज़िन्दगी ही बच्चे के चारो ओर ही सिमटी होती है.माँ के लिए कितना भी हम करें वह माँ

माँ की ममता

ईरान में सात साल पहले एक लड़ाई में अब्‍दुल्‍ला का हत्यारा बलाल को सरेआम फांसी देने की तैयारी पूरी हो चुकी थी. इस दर्दनाक मंजर का गवाह बनने के लिए सैकड़ों का हुजूम जुट गया था. बलाल की आंखों पर पट्टी बांधी जा चुकी थी. गले में फांसी का फंदा भी  लग चुका था. अब, अब्‍दुल्‍ला के परिवार वालों को दोषी के पैर के नीचे से कुर्सी हटाने का इंतजार था. तभी, अब्‍दुल्‍ला की मां बलाल के करीब गई और उसे एक थप्‍पड़ मारा. इसके साथ ही उन्‍होंने यह भी ऐलान कर दिया कि उन्‍होंने बलाल को माफ कर दिया है. इतना सुनते ही बलाल के घरवालों की आंखों में आंसू आ गए. बलाल और अब्‍दुल्‍ला की मां भी एक साथ फूट-फूटकर रोने लगीं.