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Showing posts from February, 2011

"माँ ममता और बचपन"

माँ की ममता एक बच्चे के जीवन की अमूल्य धरोहर होती है । माँ की ममता वो नींव का पत्थर होती है जिस पर एक बच्चे के भविष्य की ईमारत खड़ी होती है । बच्चे की ज़िन्दगी का पहला अहसास ही माँ की ममता होती है । उसका माँ से सिर्फ़ जनम का ही नही सांसों का नाता होता है । पहली साँस वो माँ की कोख में जब लेता है तभी से उसके जीवन की डोर माँ से बंध जाती है । माँ बच्चे के जीवन के संपूर्ण वि़कास का केन्द्र बिन्दु होती है । जीजाबाई जैसी माएँ ही देश को शिवाजी जैसे सपूत देती हैं । जैसे बच्चा एक अमूल्य निधि होता है वैसे ही माँ बच्चे के लिए प्यार की , सुख की वो छाँव होती है जिसके तले बच्चा ख़ुद को सुरक्षित महसूस करता है । सारे जहान के दुःख तकलीफ एक पल में काफूर हो जाते हैं जैसे ही बच्चा माँ की गोद में सिर रखता है ।माँ भगवान का बनाया वो तोहफा है जिसे बनाकर वो ख़ुद उस ममत्व को पाने के लिए स्वयं बच्चा बनकर पृथ्वी पर अवतरित होता है । एक बच्चे के लिए माँ और उसकी ममता का उसके जीवन में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान होता है । मगर हर बच्चे को माँ या उसकी ममता नसीब नही हो पाती । कुछ बच्चे जिनके सिर से माँ का

खुदा का नूर ''माँ''

बड़े तूफ़ान में फंसकर भी मैं बच जाती हूँ ; दुआएं माँ की मेरे साथ साथ चलती हैं . ******************************* तमाम जिन्दगी उसकी ही तो अमानत है  ; सुबह होती है उसके साथ ;शाम ढलती है . ******************************* खुदा का नूर है वो रौशनी है आँखों की ; शमां बनकर वो दिल के दिए में जलती है  ************************************ नहीं वजूद किसी का कभी उससे अलग ; उसकी ही कोख में ये कायनात पलती है . *********************************** उसके साये में गम के ओले नहीं आ सकते ; दूर उससे हो तो ये बात बहुत खलती है . ********************************** मेरे लबो पे सदा माँ ही माँ  रहता है ; इसी के  डर से  बला अपने आप टलती है . **********************************   http://shikhakaushik666.blogspot.com/

गुटुक !

ये बनाया मैंने बांहों का घेरा दुआओं का घेरा खिलखिलाती नदियों की कलकल का घेरा मींच ली हैं मैंने अपनी आँखें कुछ नहीं दिख रहा कौन आया कौन आया अले ये तो मेली ज़िन्दगी है ... ये है रोटी , ये है दाल ये है सब्जी और मुर्गे की टांग साथ में मस्त गाजर का हलवा बन गया कौर मींच ली हैं आँखें कौन खाया कौन खाया बोलो बोलो नहीं आई हँसी तो करते हैं अट्टा पट्टा हाथ बढ़ाओ ..... ये रही गुदगुदी कौन हंसा कौन हंसा बोलो बोलो बोलो बोलो जल्दी बोलो मींच ली हैं आँखें मैंने गले लग जाओ मेरे और ये कौर हुआ - गुटुक !

आँचल

प्रेम से युक्त है वह आँचल,  स्नेह से संयुक्त है वह आँचल,    ममता का आगार है वह आँचल,     प्यार का भंडार है वह आँचल,   सुख में प्यार छलकाता है वह आँचल,  दुःख में गले लगाता है वह आँचल, सब पर प्यार लुटाता है वह आँचल,   सबको पास बुलाता है वह आँचल,    शक्ति से परिपूर्ण है वह आँचल,      धेर्य से सम्पूर्ण है वह आँचल,    और नहीं कोई ,वह है  , "माँ का आँचल"

क्या लिखूं?

मम्मी के लिए कुछ मुक्कमल लिखना नामुमकिन है... कहीं न कहीं कोई न कोई कमी रह ही जाएगी... कुछ कहने की कोशिश करूँ भी तो कहाँ से शुरू करूँ और कहाँ ख़त्म, यह नहीं पता... शुरुआत कुछ सवालों से कर रही हूँ.... उसी से पूछ कर... तुम्हारे बारे में क्या लिखूं? तुम्हारी डांट या मोहब्बत लिखूं? वो मार लिखूं जो अब तक राह दिखाती है, या मार के बाद रोते हुए गले लगाने की आदत लिखूं? बच्चों के साथ तुम्हारा प्यार लिखूं, या बुजुर्गों की खिदमत लिखूं? अरहर की दाल हो या पौधीने की चटनी, या फिर ज़िन्दगी में तुमसे बढती लज्ज़त लिखूं? बरकतों की पोटली लिखूं, या कुदरत की इनायत लिखूं? तुम्हारी सादगी लिखूं, या उस सादगी में छिपी तुम्हारी ताकत लिखूं? चालीस साल के हमसफ़र के जाने का ग़म लिखूं या उसके चले जाने के बाद तुम्हारी हिम्मत लिखूं? बेदाग़ आँचल सी उम्र लिखूं, या ज़िन्दगी भर की इबादत लिखूं? आई लिखूं, मम्मी लिखूं, प्यारी माँ लिखूं, या बस खुदा की सूरत लिखूं?  ...............

बोलो माँ,बोलो !!!

माँ,अब क्या करोगी? कैसे लौटाओगी मुझे उन रास्तों पर, जो मेरे नहीं थे........ तुम भ्रम का विश्वास देती रही, जिसे मैं सच्चाई से जीती गई... जब भी ठेस लगी, तुमने कहा-'जाने दो, जो हुआ -यूँ ही हुआ' ये 'यूँ ही' मेरे साथ क्यों होता है! तुमने जिन रिश्तों की अहमियत बताई, उन्होंने मुझे कुछ नहीं माना...... मैं तो एक साधन- मात्र थी माँ कर्तव्यों की रास से छूटकर जब भी अधिकार चाहा खाली हाथ रह गई.... फिर भी, तुम सपने सजाती गई, और मैं खुश होती गई.......... पर झूठे सपने नहीं ठहरते चीख बनकर गले में अवरुद्ध हो जाते हें और कभी बूँद-बूँद आंखों से बह जाते हें! इतनी चीखें अन्दर दबकर रह गईं कि, दिल भर गया इतने आंसू -कि, उसका मूल्य अर्थहीन हो गया........ माँ, ज़माना बदल गया है, जो हँसते थे तुम्हारे सपनों पर वे उन्हीं सपनों को लेकर चलने लगे हें पर कुछ इस तरह, मानों सपने सिर्फ़ उनके लिए बने थे......... माँ, मैंने तुमसे बहुत प्यार किया है, और माँ, मैं इस प्यार में जीती हूँ पर माँ, मैं तुम्हारे झूठे भ्रम को अब अपनी पलकों में नहीं सजा पाउंगी, तुम जो जोड़ने का सूत्र उठाती हो उसे छूने का दिल नहीं होता..

माँ कुछ नहीं होती

माँ कुछ नहीं होती  कहते हैं सब  माँ वो होती है जो बच्चे की  पहली गुरु होती है कौन मानता है  कौन समझता है माँ तो सिर्फ  जरूरत पर  प्रयोग की जाने वाली वस्तु होती है जिसकी भावनाओं से  खेला जा सके अपने आंसुओं से जिसे पिघलाया जा सके जिसे रोज ये पाठ  याद कराया जाए माँ तो त्याग  और स्नेह  की प्रतिमूर्ति होती है और वो इसी भंवरजाल में उम्र भर उलझी रहे कहते हैं सब  माँ वो होती है  जो भगवान से भी बढ़कर होती है मगर कहाँ होती है अभी जाना किसी ने जब माँ को घर से निकाल चौराहे पर खड़ा कर देते हैं  तब भगवान का कौन सा  रूप होती है वो    माँ तो सिर्फ  वक्ती जरूरत होती है जब तक हड्डियाँ  चलती रहती हैं तभी तक कुछ  क़द्र होती है उसके बाद तो  माँ सिर्फ एक  घर के कोने में पड़ा गैर जरूरी सामान होती है  जो जगह घेरे होती है वो कहते हैं  माँ घर की शान होती है कहाँ होती है ? कब होती है ? शायद तभी तक  जब तक समाज से  बच्चे की गलती पर भी  लड़ जाती है पर  उस पर न आंच आने देती है  हर गुनाह हर दोष को  छुपा लेती है जब तक  तभी तक माँ , माँ होती है जिस दिन दोष दिखा दिया उस दिन से माँ की पदवी से गिरा दिया जाता है फिर माँ न

माँ का स्पर्श

मेरी ख्वाइश है की मैं फिर से  फ़रिश्ता हो जाऊ |  माँ से इस तरह लिपटू की... फिर से बच्चा हो जाऊ | माँ से दूर मैं हो जाऊ  ये कैसे हो सकता है | माँ का साया तो हरदम  पास  मेरे ही रहता है | माँ जब कभी भी मुझे  डांट कर  चली जाती है |   मैं  मुहं  चिढाता  हूँ  तो वो हंस के पास आती है | माँ के डांटने मे भी  प्यारा सा एहसास होता है | उसके उस एहसास में भी  प्यारा सा दुलार रहता  है | हर पल वो मेरे दर्द को  साथ ले के चलती है | जब मैं परेशां होता  हूँ तो  वो होंसला सा  देने लगती है | माँ न जाने मेरे हर गम में   कैसे  शरीक  लगती  है | जेसे वो हर पल मेरे ही  इर्द - गिर्द   रहती है | कितना नाजुक और  पाक सा ये रिश्ता है | बिना किसी शर्त के  हर पल  हमारे साथ रहता  है | ओर हमें   प्यारा सा उसका स्पर्श हरदम  मिलता ही रहता है |

'माँ' The mother

मौत की आग़ोश में जब थक के सो जाती है माँ तब कहीं जाकर ‘रज़ा‘ थोड़ा सुकूं पाती है माँ फ़िक्र में बच्चे की कुछ इस तरह घुल जाती है माँ नौजवाँ होते हुए बूढ़ी नज़र आती है माँ रूह के रिश्तों की गहराईयाँ तो देखिए चोट लगती है हमारे और चिल्लाती है माँ ओढ़ती है हसरतों का खुद तो बोसीदा कफ़न चाहतों का पैरहन बच्चे को पहनाती है माँ एक एक हसरत को अपने अज़्मो इस्तक़लाल से आँसुओं से गुस्ल देकर खुद ही दफ़नाती है माँ भूखा रहने ही नहीं देती यतीमों को कभी जाने किस किस से, कहाँ से माँग कर लाती है माँ हड्डियों का रस पिला कर अपने दिल के चैन को कितनी ही रातों में ख़ाली पेट सो जाती है माँ जाने कितनी बर्फ़ सी रातों में ऐसा भी हुआ बच्चा तो छाती पे है गीले में सो जाती है माँ जब खिलौने को मचलता है कोई गुरबत का फूल आँसुओं के साज़ पर बच्चे को बहलाती है माँ फ़िक्र के श्मशान में आखिर चिताओं की तरह जैसे सूखी लकड़ियाँ, इस तरह जल जाती है माँ भूख से मजबूर होकर मेहमाँ के सामने माँगते हैं बच्चे जब रोटी तो शरमाती है माँ ज़िंदगी की सिसकियाँ सुनकर हवस के शहर से भूखे बच्चों को ग़िजा, अपना कफ़न लाती है माँ मुफ़ल

बस सोचती रह जाती हूँ !

वो नानी वो दादी बन गई हैं ... पदवी बढ़ गई , मूल से प्यारा सूद वाली कहावत चरितार्थ हो गई है ... अब सूद के आगे कुछ कैसे लिखा जाये ! कलम हाथ में रहेगी नहीं और छन से गिरते शब्द मटकती आँखों के आगे ठिठक जायेंगे और नानी दादी यही कहेंगी .... शब्द मेरे संग आंखमिचौली मत खेलो वो परदे के पीछे छुपी मेरी गुडिया मेरा गुड्डा कह रहे हैं - 'मुजे धुन्दो , मे तहां हूँ (मुझे ढूंढो , मैं कहाँ हूँ ) .... ढूँढने के इस खेल में दौड़ते दौड़ते मेरी कमर दुःख गई बालों में कंघी करने का वक़्त नहीं और तुम हसरत से मुझे देखे जा रहे हो ! मैं विवश हूँ कलम लिया नहीं कि मेरी गुडिया मेरा गुड्डा छीन लेंगे और फिर कहाँ कहाँ रेखाएं बनेंगी यह तो मत ही पूछो... मैं सफाई में फंस जाऊँगी ! एक नन्हीं कटोरी में चार कौर का खाना दो घंटे में इनको खिलाऊँगी फिर ईश्वर को धन्यवाद देते हुए लोरी गाऊँगी ... गाते गाते मेरी पलकें झपक जाएँगी और धडाम से कुछ गिरने की आवाज़ पर मैं फिर दौड़ने लगूंगी .... कितने किस्से सुनाऊं मेरे प्यारे शब्द मेरा मन करता तो है कि तुम्हें उठाऊं पर कहा न मूल से प्यारे सूद के आगे बस सोचती रह जाती हूँ !

बेटा चाहिए तो नाश्ता करना न भूलें To get a son

गर्भावस्था के शुरू में भरपेट नाश्ता करने पर लड़के के जन्म की संभावना अधिक लंदन। मां बनने की तैयारियों में जुटी महिलाएं ज़रा ग़ौर फ़रमाएं। अगर आप अपनी पहली संतान के रूप में बेटा पाना चाहती हैं, तो पेट भर नाश्ता करना न भूलें। एक नए अध्ययन के मुताबिक़ प्रेग्नेंट महिलाएं गर्भावस्था के शुरूआती दौर में जो चीज़ें खाती हैं, उससे न केवल उनके गर्भ में पल रहे शिशु का स्वास्थ्य बल्कि लिंग भी निर्धारित होता है। उच्च वसायुक्त ब्रेकफ़ास्ट करने से जहां लड़के के जन्म की संभावना बढ़ती है, वहीं हल्के नाश्ते के सेवन से औलाद के रूप में बेटी मिलने की गुंजाइश अधिक रहती है। मिसौरी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता दर्जनों गर्भवती महिलाओं के बच्चों के लिंग पर उनके खानपान का प्रभाव आंकने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं। उन्होंने पाया, गर्भधारण से पहले और उसके बाद नाश्ते से समझौता करने वाली महिलाओं के गर्भ में संभोग के दौरान नर भ्रूण नष्ट हो जाते हैं।                            हिन्दुस्तान, मेरठ संस्करण, दिनांक 30 जनवरी 2011 .................................................................  विज्ञान के अनुसार मनुष्य ज

माँ , तुमने क्या किया !

कदम - कदम पर तुमने अच्छी बातों की गांठ मेरे आँचल से बाँधी ..... 'उसमें और तुममें फर्क क्या रह जायेगा ?' ऐसा कह कर , अच्छे व्यवहार की आदतें डाली . मुझे संतोष है इस बात का कि , मैंने गलत व्यवहार नहीं किया , और अपनी दहलीज़ पर किसी का अपमान नहीं किया , पर गर्व नहीं है .................... गर्व की चर्चा कहाँ ? और किसके आगे ? हर कदम पर मुँह की खाई है ! अपनी दहलीज़ पर तो स्वागत किया ही दूसरे की दहलीज़ पर भी खुद ही मुस्कुराहट बिखेरी है ! मुड़कर देख लिया जो उसने , तो जहे नसीब ....!!! पीछे से तुमने मेरी पीठ सहलाई है . खुद तो जीवन भर नरक भोगा ही मुझे भी खौलते तेल मे डाल दिया माँ , तुमने ये क्या किया ! मेरे बच्चे मेरी इस बात पर मुझे घूरने लगे हैं क्या पाया ?...इसका हिसाब -किताब करने लगे हैं , अच्छी बातों की थाती थमा तुमने मुझे निरुत्तर कर दिया आँय - बाँय - शांय के सिवा कुछ नहीं रहा मेरे पास .................हाय राम ! माँ , तुमने ये क्या किया !...............

अपना बल...

नीड़ के निर्माण में, कभी तूफ़ान में , कभी गर्म थपेडों में... कभी अनजानी राहों से... कभी दहशत ज़दा रास्तों से... माँ से अधिक तिनके उठाए नन्हें चिडों ने... देने का तो नाम था... उस देय को पाने के नाम पे... एक बार नहीं सौ बार शहीद हुए॥ शहादत की भाषा भी नन्हें चिडों ने जाना॥ समय की आंधी में बने सशक्त पंखो को... फैलाया माँ के ऊपर... माँ सा दर्द लेकर सीने में॥ युवा बना नन्हा चिड़ा... झांकता है नीड़ से बाहर, डरता है माँ चिडिया के लिए... "शिकारी के जाल के पास से दाना उठाना, कितना खतरनाक होता है... ऐसे में स्वाभिमान की मंजिल तक पहुँचने में... जो कांटे चुभेंगे उसे कौन निकालेगा?" चिडिया देखती है अपने चिडों को॥ उत्साह से भरती है, ख्वाब सजाती है, चहचहाती है... "कुछ" उडानें और भरनी हैं... यह "कुछ" अपना बल है... फिर तो... हम जाल लेकर उड़ ही जायेंगे...

तू ऐसी तो न थी माँ ---?

तुझे चाह था टूटकर मैने माँ---   हर घड़ी, हर पल,   तुझे महसूस किया था माँ, दिल के पास --बहुत पास माँ,  आज भी हे , दिल में , तेरे प्यार का एहसास , तुझसे यह उम्मीद तो न थी माँ --- की तू मुझे यू अकेला छोड़ जाएगी --- दिल मायूस  मेरा, ज़बा खामोश है , आँखों से बहती आंसू की धारा, हर आंसू का कतरा -- तुझसे शिकायत करता हे माँ --- तू ऐसी तो न थी माँ --- तू ऐसी तो न थी माँ ---? (  माँ की यादे , माँ का प्यार मेरे लिए सिर्फ यादे हे जो मै महसूस करती हु वही लिखती हु -------दर्शन !  )              

Valentine day क्यों मनाया जाता है ? , एक मज़ेदार लतीफ़ा

कल अखबारों में वैलेंटाइन डे का चर्चा था । हमारे बच्चों ने अपनी प्यारी माँ से पूछा कि 'ममा , वैलेंटाइन डे क्यों मनाया जाता है ?' वह बोलीं-'क्योंकि आज के दिन मेरी छोटी बहन पैदा हुई थी' हा , हा , हा यह सुनकर मैं हंसे बिना न रह सका । वाक़ई 14 फ़रवरी को उनकी छोटी बहन पैदा हुई थी, यह सही है।

मिटा दी अपनी काया....

हमने जब जब माँ को देखा    ख्याल ये मन में आया. हमें बनाने को ही माँ ने    मिटा दी अपनी काया. बचपन में माँ हाथ पकड़कर    सही बात समझाती गलत जो करते आँख दिखाकर    अच्छी डांट पिलाती. माँ की बातों पर चलकर ही    जीवन में सब पाया हमें बनाने को ही माँ ने   मिटा दी अपनी काया. समय परीक्षा का जब आता    नींद माँ की उड़ जाती हमें जगाने को रात में    चाय बना कर लाती माँ का संबल पग-पग पर    मेरे काम है आया. हमें बनाने को ही माँ ने   मिटा दी अपनी काया. जीवन में सुख दुःख सहने की   माँ ने बात सिखाई, सबको अपनाने की शिक्षा   माँ ने हमें बताई. कठिनाई से कैसे लड़ना   माँ ने हमें सिखाया. हमें बनाने को ही माँ ने   मिटा दी अपनी काया.                   [http ://shalinikaushik2 .blogspot .com ]

आशीष...

माँ के गर्भ मे अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में जाना सीखा निकलने की कला जाने उससे पहले , निद्रा ने माँ को आगोश में लिया भविष्य निर्धारित किया चक्रव्यूह उसका काल बना ! मेरी आंखें, मेरा मन , मेरा शरीर मंत्रों की प्रत्यंचा पर जागा है तुम्हारे चक्रव्यूह को अर्जुन की तरह भेदा है मेरी आशाओं की ऊँगली थाम कर सो जाओ विश्वास रखो - ईश्वर मार्ग प्रशस्त करेंगे

प्यारे बच्चे

कितने प्यारे कितने न्यारे दिल के सच्चे  होते बच्चे ! प्यारी - प्यारी बातें करके सबके दिल को हरते बच्चे ! नन्हें  - नन्हें पैरों से फिर  हर आँगन मै चलते बच्चे ! हर माँ - बाप के तो ... दिल की धड़कन होते बच्चे ! दादा - दादी की छत्र - छाया मै पल कर बड़े होते हैं बच्चे ! अरे ...नाना - नानी के भी तो दिल से सच्चे  ...होते हैं बच्चे ! उन सबके बुड़ापे के ही तो खेल  - खिलोने होते हैं बच्चे ! सारी अच्छी - अच्छी  बातें भी  उन से ही सीखते बच्चे ! अब मै आगे क्या - क्या बोलूं क्या उनसे जुदा हो सकतें हैं बच्चे ? 

बातचीत

'माँ...हमारा घर कहाँ है' ................ 'मेरी गोद तुम्हारी धरती मेरी बाहों का घेरा कमरा मेरी आँखें खिड़कियाँ मेरी दुआएं आकाश ...' 'माँ माँ ये घर हमेशा होगा न ...' 'हमेशा रहता तो है पर- अदृश्य सा कभी कभी हो जाता है तब इन दीवारों का सामर्थ्य ले एक एक घर तुम बनाना ...' 'माँ , हम कैसे बनायेंगे हमें तो वही रंग अच्छे लगते हैं जो तुम लाती हो हमें तो पता ही नहीं और कुछ ...' 'मुझे कहाँ पता था ! मुझे इन रंगों की भाषा मेरी माँ ने सिखाया ... यही तो क्रम है ............ वरना सच पूछो तो रंग सात हैं आठवां रंग - प्यार का उनको अदभुत बनाता है बिना आठवें रंग के सारे रंग बदरंग हैं दीवारों पे ठहरते नहीं....' ' माँ हम तो इससे अलग होंगे ही नहीं क्योंकि हमें पता है - ये आठवां रंग तुम हो... विश्वास रखो माँ हम भी आठवां रंग बनेंगे बिल्कुल तुम्हारी तरह !'

आज वादा करो माँ...

सबकी चिंता को अपना बना लेती हो अबका दर्द समेट खुद की आँखे भीगा लेती हो पर तुम अपनी चिंता कब करोगी माँ??? बोलो न माँ... हमको दुःख बतलाने को कहती हो खुद अपने आंसू छिपाती हो पर तुम अपना दर्द हमें कब बताओगी माँ??? बोलो न माँ... सबके पसंद का खाना बनाती हो खुद कुछ भी खा लेती हो पर अपनी पसंद का खाना कब बनाओगी माँ??? बोलो न माँ... हमें मजबूत होना सिखाती हो हमारी ज़रा-सी चोट पर खुद सिहर जाती हो दौड़ कर उसमें मलहम लगाती हो उसे फूंक-फूंक सहलाती हो खुद को लग जाये तो यूँही कह टाल जाती हो... पर अपने जख्मों को कब सहलओगी, उनमें मलहम कब लगाओगी माँ??? बोलो न माँ... जब भी बाज़ार जाती हो सबके लिए सामान लाती हो अपना ही कुछ भूल जाती हो पर तुम अपने लिए कब खुद कुछ लोगी माँ??? बोलो न माँ... बचपन से सच बोलना सिखाया हमें खुद कई बार झूठी हंसीं हंस जाती हो पर तुम हमेशा खुल के कब खिल्खिलोगी माँ??? बोलो न माँ... हमें प्यार से रहना सिखाती हो खुद कई बार हमारी खुशियों के लिए लड़ जाती हो पर अपनी खुशियों के लिए हक़ कब जताओगी माँ??? बोलो न माँ... आज वादा करो... अब किसी की चिंता में आंसू नहीं बहाओगी... अपनी पसंद बताओगी... खु

सलाम आखरी !

' कल पेपर में कही पढ़ा की बच्चो ने अपनी बूढी  माँ को धर से निकाल दिया ' --कहा तेरा ख्याल कोन रखेगा ? ऐसा तो अक्सर सुनने को मिलता  ही हे--क्या मन स्थिति होती होगी उस समय उस दयनीय माँ की ---वही चित्रण करने की एक कोशीश ---      एक बूढी माँ की दयनीय पुकार ----- आखरी वक्त हे साँस भी हे आखरी , जिन्दगी की हर बात हे आखरी , तोबा ! करती हु अब ,किसी को नही जनूंगी * न अब किसी के सहारे अपनी जिन्दगी पूरी करुगी , जीते- जी मेरी इज्जत किसी ने नही की , मरकर करेगे ये एतबार नही करुँगी  , मुझ को मेरे अपनो ने नहलाकर कफ़न दे दिया , कुछ धड़ी भी मेरे साथ न बिताई की दफ्न कर दिया , दुनियां वालो ! मुबारक यह एह्साने -जहां तुमको , कर चले हम तो सलाम आखरी-आखरी !!!              * जन्म देना |

माँ ...

आसमान में जब सतरंगी सपने झिलमिलाते हैं तो माँ उनमें से चटक रंग ले आती है अपने आँचल में बांधकर फिर अपने बच्चों की आँखों में बूंद बूंद भर देती है .... चटकीले सपनों को मकसद बना नन्हें कदम डग भरने लगते हैं ! दिन भर फिरकनी की तरह खटती माँ थकती नहीं चटकीले रंग , मोहक सपने लाना कभी भूलती नहीं ... कभी मालिश करते वक़्त कभी जूते पहनाते कभी कौर खिलाते कभी सर सहलाते हुए देती जाती है मोहक रंगों की उड़ान ! हकीकत की धरती को कभी बाँझ नहीं होने देती सपनों के बीज लगाती जाती है आंसुओं से सींचती जाती है ... माँ ... दुआओं के धागे हर पल साथ लिए चलती है जब भी मन अकुलाता है आँचल की गाँठ से जोड़ लेती है माँ ... बड़ी प्यारी होती है !!!

तुम होती तो कहती !

जब-जब आंसू भरे आँखों में | तब-तब कमी तुम्हारी खटकी माँ, काश ! कि तुम  होती तो कहती --- मोती व्यर्थ लुटाओ न ----?                        जब -जब    गायन के सुर साघे |                        जब - जब तन्मय हो तान उठाई |                       तब -तब कमी तुम्हारी खटकी माँ,                        काश ! कि तुम होती तो कहती---                       इक बार फिर से गाओ न ---?                                     जब -जब गीत बनाया कोई--|                             जब-जब सस्वर पाठ किया --|                                 तब-तब कमी तुम्हारी खटकी माँ,                                  काश ! कि तुम होती तो कहती ---                             बेटा ,फिर से दोहराओ  न ---?

माँ ...

एक माँ मन्नतों की सीढियां तय करती है एक माँ दुआओं के दीप जलाती है एक माँ अपनी सांस सांस में मन्त्रों का जाप करती है एक माँ एक एक निवाले में आशीष भरती है एक माँ जितनी कमज़ोर दिखती है उससे कहीं ज्यादा शक्ति स्तम्भ बनती है एक एक हवाओं को उसे पार करना होता है जब बात उसके जायों की होती है एक माँ प्रकृति के कण कण से उभरती है निर्जीव भी सजीव हो जाये जब माँ उसे छू जाती है .............. मैं माँ हूँ वह सुरक्षा कवच जिसे तुम्हारे शरीर से कोई अलग नहीं कर सकता .... हार भी जीत में बदल जाये माँ वो स्पर्श होती है तो फिर माथे पर बल क्यूँ डर क्यूँ आंसू क्यूँ ऊँगली पकड़े रहो विपदाओं की आग ठंडी हो जाएगी

चिंपाजी मांएं भी करती हैं विलाप

लंदन। वैज्ञानिकों ने पहली बार इस बात की पुष्टि की है कि अपने मृत शिशु को देखकर चिंपाजी मांएं भी विलाप करती हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक़ चिंपाजी मांओं का अपने बच्चों से बहुत गहरा लगाव होता है और वे दो वर्ष के होने तक उन्हें अपने से चिपकाए रखती हैं। एक वीडियो में देखा गया है कि चिंपाजी मां अपने 16 माह के बच्चे की मौत के बाद विलाप कर रही है व उसे छाती से लगाए रहती है। अमर उजाला, नई दिल्ली, 2 फ़रवरी 2011, P. 14

माँ की ममता |

अपने बच्चे को बचाती एक माँ !   अपने बच्चे को खूंखार शेर से बचाती एक माँ --माँ सिर्फ माँ हे चाहे इन्सान की माँ हो चाहे जानवर की --माँ की कोई परिभाष नही  ---!  (इस वीडियो को जरुर देखे --दर्शन ) 

क्या होती है माँ

माँ की महिमा अनंत है कितना ही कह लो हमेशा अधूरी ही रहेगी ...........क्या माँ के प्यार को शब्दों में बांधा जा सकता है ? उसके समर्पण का मोल चुकाया जा सकता है ? जैसे ईश्वर को पाना आसान नहीं उसी तरह माँ के प्यार की थाह पाना आसान नहीं क्यूँकि माँ इश्वर का ही तो प्रतिरूप है फिर कैसे थाह पाओगे? कैसे उसका क़र्ज़ चुकाओगे?  माँ के प्रति सिर्फ फ़र्ज़ निभाए जाते हैं , क़र्ज़ नहीं चुकाए जा सकते . माँ के भावों को समझा जाता है उसके त्याग का मोल नहीं लगाया जा सकता ...........उसको उसी तरह उम्र के एक पड़ाव पर सहेजा जाता है जैसे वो तुम्हें संभालती थी जब तुम कुछ नहीं कर सकते थे ...........जानते हो जैसे एक बच्चा अपनी उपस्थिति का अहसास कराता है .........कभी हँसकर , कभी रोकर , कभी चिल्ला कर , कभी किलकारी मारकर......... उसी तरह उम्र के एक पड़ाव पर माँ भी आ जाती है जब वो अकेले कमरे में गुमसुम पड़ी रहती है और कभी -कभी अपने से बातें करते हुए तो कभी हूँ , हाँ करते हुए तो कभी हिचकी लेते तो कभी खांसते हुए अपने होने का अहसास कराती है और चाहती है उस वक्त तुम रुक कर उससे उसका हाल पूछो , दो शब्द उससे बोलो कुछ पल उसके साथ गुजा

अद्भुत शिक्षा !

सब पूछते हैं-आपका शुभ नाम? शिक्षा?= ....... क्या लिखती हैं?= ..... हमने सोचा - आप स्नातक की छात्रा हैं... !!! मैं उत्तर देती तो हूँ, परन्तु ज्ञात नहीं, वे मस्तिष्क के किस कोने से उभरते हैं! मैं? मैं वह तो हूँ ही नहीं। मैं तो बहुत पहले अपने तथाकथित पति द्वारा मार दी गई फिर भी, मेरी भटकती रूह ने तीन जीवन स्थापित किये! फिर अपने ही हाथों अपना अग्नि संस्कार किया मुंह में डाले गंगा जल और राम के नाम का चमत्कार हुआ ............अपनी ही माँ के गर्भ से पुनः जन्म लेकर मैं दौड़ने लगी- अपने द्वारा लगाये पौधों को वृक्ष बनाने के लिए ......मैं तो मात्र एक वर्ष की हूँ, अपने सुकोमल पौधों से भी छोटी! शुभनाम तो मेरा वही है परन्तु शिक्षा? -मेरी शिक्षा अद्भुत है, नरक के जघन्य द्वार से निकलकर बाहर आये स्वर्ग की तरह अनुपम, अपूर्व,प्रोज्जवल!!

प्यारा सा संवाद

हर दम तो साथ - साथ रहता है ! जेसे हमसे  ही वो कुच्छ कहता है ! माँ भी तो हर दम जान जाती है ! इशारों - इशारों मै सब कुछ  बताती है ! जब वो थोडा और बड़ा होता है ! घुटनों के बल इधर - उधर डोलता है ! माँ का दम ही निकल जाता है , जब वो थोडा सा भी रोता है ! जब वो स्कूल को निकलता है ! माँ के पल्लू  से हरदम लिपटता है ! लगता है जेसे माँ से बिछड़ने का ........ हरदम उसे खोफ सा ही रहता है ! जब जवानी मै पांव वो रखता है ! यारों दोस्तों से जब वो मिलता है ! तब माँ के उस एहसास को............... थोडा - थोडा सा अब वो खोने  लगता है ! अब माँ का आशीर्वाद फिर वो पाता है ! घर मै प्यारी दुल्हन ले के आता है ! उसके साथ रंग - बिरंगे सपने देख कर फिर वो एक नया संसार बसाता  है !

औरत महज़ एक शरीर नहीं होती -Rashmi prabha

'औरत महज़ एक शरीर ही नहीं होती । आदमी शरीर के साथ सो तो सकता है लेकिन जाग नहीं सकता । अगर कलाकारों ने औरत को सचमुच जाना होता तो आज उनकी कला कुछ और ही होती ।' मैंने आज रश्मि प्रभा जी की एक रचना में यह अद्भुत विचार पढ़ा और मेरे दिल पर फ़ौरन इसका असर हुआ क्योंकि मैं खुद भी यही विचार रखता हूँ और मैंने अपने लेख 'मर्द के लिए ईनामे ख़ुदा है औरत' में भी यही कहा है । मैंने अपनी टिप्पणी में कहा कि 'एक फ़नकार जाग रहा है इधर !' एक अच्छी पोस्ट ! और फिर मैंने उन्हें आमंत्रित करते हुए कहा - आदरणीया रश्मि जी ! यदि आप 'प्यारी मां' ब्लॉग के लेखिका मंडल की सम्मानित सदस्य बनना चाहती हैं तो कृपया अपनी ईमेल आई डी भेज दीजिये और फिर आपको निमंत्रण भेजा जाएगा । जिसे स्वीकार करने के बाद आप इस ब्लाग के लिए लिखना शुरू कर सकती हैं. यह एक अभियान है मां के गौरव की रक्षा का . मां बचाओ , मानवता बचाओ . http://pyarimaan.blogspot.com/2011/02/blog-post_03.html उनकी इस शानदार पोस्ट को पढ़ने के लिए देखें - नज़्मों की सौगात...: पेंटिंग औरत एक शरीर से ज़्यादा क्या है ? उसकी फ़ितरत

ओ माँ sss प्यारी माँ---

बचपन में,  मै अपनी माँ को खो चुकी हु-- अब तो मात्र स्मृतियाँ ही रह गई हे--  अपनी  स्वर्गीय माँ के नाम एक प्यार भरी चिठ्ठी ---- ओsssमाँ --प्यारी माँ --- ओ माँ --मै धरती वासी -- तू परलोक  निवासी -- तू प्यार की मूरत -- मै प्यार की प्यासी -- कहाँ से लाऊ वो स्नेह -- किससे मांगू ममता उधार -- ओsss माँ -प्यारी माँ --- काश ,के तू होती माँ -- मेरे संग हंसती -खेलती-बोलती  माँ -- मेंरे नैनो के नीर अपने पल्ले से पोछती माँ-- मै जब -जब गिरती -- तू तब-तब सम्भालती माँ -- रातो को जागकर मुझे लोरी सुनाती माँ  -- कभी सहलाती ,कभी सीने से लगाती माँ -- माँ sss  प्यारी माँ --- तुझे याद कर के मेरा  चुप -चुप के रोना -- तकिए  में सिर छुपाए तुझे महसूस करना -- अपनी  किसी गलती पर तेरा मुस्कुराना -- अपनी नादानियो पर तेरा मुंह फिराना -- फिर ,अपनी बेबसी पर तेरा खिलखिलाना -- मुझे याद हे वो नकली गुस्सा दिखाना -- माँ sss प्यारी माँ --- अब तो आजा --यह विरह जीवन मुझे काटता हे -- इस  धधकती मरु भूमि में,मै भटक रही हु -- तेरे  प्यार की एक - एक बूंद को तरस  रही हु -- तू  मृग-तृष्णा न बन -- मेरे   म

माँ एक सेतु

 माँ ,  वह सेतु है, जिस पर चढ़ कर बच्चे  विपत्तियों के सागर पार कर जाते हैं औ' माँ उनकी सलामती के लिए ईश्वर से दुआ और सिर्फ दुआ माँगा करती है. माँ वह सीढ़ी है, जिस पर चढ़ कर उसके बच्चे  जमीन से आसमां तक  चलते चले जाते हैं. ऊपर पहुँच कर  उस सीढ़ी को  पैर से धकेल कर  आगे और आगे बढ़ जाते हैं. नीचे आने की सोचते भी नहीं है. वो तो नीचे ही रहती है क्योंकि अब उसकी जरूरत  किसी बच्चे को नहीं है. अपने पैरों पर खड़े हो कर वे औरों के लिए सीढ़ी बनने को तैयार हैं. उन्हें नहीं मालूम  या फिर याद नहीं  कि वे भी कभी किसी को सीढ़ी बनाकर  आसमां छूने निकले थे  औ' आसमां छूते ही  वे चाँद पर पहुँच गए  जमीन से नाता तोड़ कर फिर जमीन पर नहीं आ सकते  क्योंकि वो जमीन  अब उनको स्वीकार नहीं करेगी. माँ के तिरस्कार की कीमत  आज नहीं तो कल हर औलाद भुगतती है. और माँ वो दरिया है जिसके प्यार में ऐसी बातें  टिकती ही नहीं है. बेटे की सूरत जब भी देखी आंसुओं से भरी आँखें  गले लगाने को आतुर रहती हैं. कहती है -- सुबह का भूला  शाम को घर लौटा है, ऐसे ही माँ का दिल होता है. 
''माँ! तेरे जैसा कोई नहीं ..'' माँ! तेरे जैसा कोई नहीं! हम सब गलत बस तुम ही सही. तुम्हरे आँचल की छाया में; सब कुछ हमने पाया. तुम्हारा स्नेह पाकर ही हमने पाई है ये काया. ''तुम हो तो हम है तुम नहीं तो हम नहीं''. माँ! तेरे जैसा कोई नहीं!