Skip to main content

दुनिया की  रीत
1

दुनिया की रीत ही निराली है 
किसी को फूलों का हार ,किसी को देती गाली है 
अमीरों को झूक कर सलाम करती है 
भूंखे  गरीब बच्चे की तरबूज चोरी पर जान ले लेती है 
स्वार्थी ,मतलब से परिपूर्ण दुनिया हो रही है 
दुःख-दर्द ,भावनाओं से विहीन,पैसों की गुलाम हो रही है 
गरीबों की कहीं नहीं सुनवाई  ,अमीरों की बेवजह वाहवाही 
गरीब जब सब तरफ से परेशान हो जातें हैं 
तो विद्रोह पर उतर आते हैं

चोरी,डकेती करने,गुंडे,मवाली बनने
 के लिए मजबूर हो जातें हैं
धर्म के नाम पर धर्म के ठेकेदार ,देश के नाम पर देश के कर्णधार 
जब जनता और देश को लूट सकतें हैं 
तो चोरी,डकेती करने पर सिर्फ गरीबों ही को क्यों
सजा देते हैं 
यह दोहरी रीति समझ नहीं आती 
इंसानों में यह भेद की निराली नीति क्यों है निभाई जाती 
गरीबों के जीवन में होतीं खुशियाँ कम हैं 
जमाने द्वारा दिए उनको बहुत से गम हैं 
पैसे को भगवान् मत बनाओ ,इंसानियत को अपनाओ 
मतलब,अहम् ,स्वार्थ को भूलकर ,इंसान को गले लगाओ 
अमीरी,गरीबी किस्मत की बात है ,उसको देखने की एक ही नजर लाओ 
सबके लिए एक ही नियम  कानून हो ,हेंसियत के अनुसार अलग-२ कानून मत बनाओ 
गरीब है तो वो भी इंसान है 
भूंख उसे भी लगती है, दर्द उसे भी होता है 
उसकी मजबूरी और लाचारी का फयदा मत उठाओ 
उसकी भी इज्जत है .उसको दुत्कार कर अपने को 
उसकी नजरों में छोटा मत बनाओ 
इंसान को उसकी हेंसियत से नहीं 
उसके कर्मों से अपनाओ 
सारे भेदभाव को मिटाकर 
इस जहाँ को और सुंदर बनाओ   

Comments

bahut khoob prerna ji .badhai .
DR. ANWER JAMAL said…
इंसान को उसकी हेंसियत से नहीं
उसके कर्मों से अपनाओ
सारे भेदभाव को मिटाकर
इस जहाँ को और सुंदर बनाओ


बहुत ठीक कहा आपने!
शुक्रिया !!
Shalini kaushik said…
sateek v sarthak bat kahi hai aapne .aaj aise hi jagruk lekhkon ki aavshyakta hai .badhai .

Popular posts from this blog

माँ बाप की अहमियत और फ़ज़ीलत

मदर्स डे पर विशेष भेंट  इस्लाम में हुक़ूक़ुल ऐबाद की फ़ज़ीलत व अहमियत इंसानी मुआशरे में सबसे ज़्यादा अहम रुक्न ख़ानदान है और ख़ानदान में सबसे ज़्यादा अहमियत वालदैन की है। वालदैन के बाद उनसे मुताल्लिक़ अइज़्जा वा अक़रबा के हुक़ूक़ का दर्जा आता है डाक्टर मोहम्मद उमर फ़ारूक़ क़ुरैशी 1 जून, 2012 (उर्दू से तर्जुमा- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम) दुनिया के हर मज़हब व मिल्लत की तालीमात का ये मंशा रहा है कि इसके मानने वाले अमन व सलामती के साथ रहें ताकि इंसानी तरक़्क़ी के वसाइल को सही सिम्त में रख कर इंसानों की फ़लाहो बहबूद का काम यकसूई के साथ किया जाय। इस्लाम ने तमाम इंसानों के लिए ऐसे हुक़ूक़ का ताय्युन किया है जिनका अदा करना आसान है लेकिन उनकी अदायगी में ईसार व कुर्बानी ज़रूरी है। ये बात एक तरह का तर्बीयती निज़ाम है जिस पर अमल कर के एक इंसान ना सिर्फ ख़ुद ख़ुश रह सकता है बल्कि दूसरों के लिए भी बाइसे राहत बन सकता है। हुक़ूक़ की दो इक़्साम हैं । हुक़ूक़ुल्लाह और हुक़ूक़ुल ऐबाद। इस्लाम ने जिस क़दर ज़ोर हुक़ूक़ुल ऐबाद पर दिया है इससे ये अमर वाज़ेह हो जाता है कि इन हुक़ूक़ का कितना बुलंद मुक़ाम है और उनकी अ

माँ की ममता

ईरान में सात साल पहले एक लड़ाई में अब्‍दुल्‍ला का हत्यारा बलाल को सरेआम फांसी देने की तैयारी पूरी हो चुकी थी. इस दर्दनाक मंजर का गवाह बनने के लिए सैकड़ों का हुजूम जुट गया था. बलाल की आंखों पर पट्टी बांधी जा चुकी थी. गले में फांसी का फंदा भी  लग चुका था. अब, अब्‍दुल्‍ला के परिवार वालों को दोषी के पैर के नीचे से कुर्सी हटाने का इंतजार था. तभी, अब्‍दुल्‍ला की मां बलाल के करीब गई और उसे एक थप्‍पड़ मारा. इसके साथ ही उन्‍होंने यह भी ऐलान कर दिया कि उन्‍होंने बलाल को माफ कर दिया है. इतना सुनते ही बलाल के घरवालों की आंखों में आंसू आ गए. बलाल और अब्‍दुल्‍ला की मां भी एक साथ फूट-फूटकर रोने लगीं.

माँ को घर से हटाने का अंजाम औलाद की तबाही

मिसालः‘आरूषि-हेमराज मर्डर केस’ आज दिनांक 26 नवंबर 2013 को विशेष सीबीाआई कोर्ट ने ‘आरूषि-हेमराज मर्डर केस’ में आरूषि के मां-बाप को ही उम्रक़ैद की सज़ा सुना दी है। फ़जऱ्ी एफ़आईआर दर्ज कराने के लिए डा. राजेश तलवार को एक साल की सज़ा और भुगतनी होगी। उन पर 17 हज़ार रूपये का और उनकी पत्नी डा. नुपुर तलवार पर 15 हज़ार रूपये का जुर्माना भी लगाया गया है। दोनों को ग़ाजि़याबाद की डासना जेल भेज दिया गया है। डा. नुपुर तलवार इससे पहले सन 2012 में जब इसी डासना जेल में बन्द थीं तो उन्होंने जेल प्रशासन से ‘द स्टोरी आॅफ़ एन अनफ़ार्चुनेट मदर’ शीर्षक से एक नाॅवेल लिखने की इजाज़त मांगी थी, जो उन्हें मिल गई थी। शायद अब वह इस नाॅवेल पर फिर से काम शुरू कर दें। जेल में दाखि़ले के वक्त उनके साथ 3 अंग्रेज़ी नाॅवेल देखे गए हैं।  आरूषि का बाप राकेश तलवार और मां नुपुर तलवार, दोनों ही पेशे से डाॅक्टर हैं। दोनों ने आरूषि और हेमराज के गले को सर्जिकल ब्लेड से काटा और आरूषि के गुप्तांग की सफ़ाई की। क्या डा. राजेश तलवार ने कभी सोचा था कि उन्हें अपनी मेडिकल की पढ़ाई का इस्तेमाल अपनी बेटी का गला काटने में करना पड़ेगा?