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सुपर मॉम

मदर्स डे पर सभी माँओं को मेरा हार्दिक नमन एवं शुभकामनायें ! आज का मेरा यह आलेख आधुनिक युग की सुपर मॉम को समर्पित है !

आदिकाल से सुरलोक से लेकर पृथ्वीलोक तक देवताओं और मनुष्यों की निर्भरता माँ के ऊपर सतत बनी हुई है ! जब असुरों एवं दैत्यों ने भयंकर उत्पात मचा कर देवलोक में देवताओं का जीना दूभर कर दिया तो अपने अस्तित्व की रक्षा के लिये उन्होंने माँ जगदम्बे का ही आह्वान किया था और तब अष्टभुजाधारी माँ उद्धारकर्ता के रूप में अवतरित हुईं और दुष्टों का संहार कर उन्होंने वहाँ शान्ति एवं संतुलन की स्थापना की थी ! कलयुग में भी धरती पर एक माँ ही है जो अपनी अदम्य क्षमताओं और इच्छाशक्ति से घर के सैकड़ों कामों को अंजाम देते हुए पल भर के लिये भी अपने बच्चों की छोटी से छोटी ज़रूरत की कभी उपेक्षा नहीं करती और उसके लिये आधी रात को भी सजग सतर्क रहती है और घर के सभी दायित्वों को अपने मज़बूत कन्धों पर सम्हाले रहती है ! माँ दुर्गा ने अपने हाथों में पारंपरिक अस्त्र शस्त्र ग्रहण कर रखे थे लेकिन आज की सुपर मॉम के हाथों में आधुनिक अस्त्र शस्त्र हैं जिनकी सहायता से वह यह सारे कार्य दक्षता से पूरे कर पाती है !

मैंने अपनी दस वर्ष की पोती वाणी से पूछा कि मदर्स डे आने वाला है और क्या उसे कुछ ऐसा लगता है कि उसे अपनी माँ को किसी बात के लिये थैंक्स देने की ज़रूरत महसूस हो रही हो ! मेरी बात सुन कर उसने जो जवाब दिया उसे सुन कर मन प्रसन्न हो गया ! बोली, दादी, अगर माँ को हर बात के लिये थैंक्स देना शुरू कर दूँगी तो और कुछ बोलने के लिये समय ही कहाँ बचेगा मेरे पास ! क्योंकि सुबह से लेकर रात को सोने तक मेरे सारे काम तो माँ ही करती हैं ! बात तो बिलकुल ठीक है ! मैंने उससे कहा अच्छा एक लिस्ट बना कर लाओ कि माँ क्या क्या करती हैं !

उसकी लिस्ट पर आप भी गौर फरमाइए ! यह काम सिर्फ उसीकी माँ नहीं करतीं शायद आज के युग में हर घर परिवार की माँ इसी दिनचर्या को जीती है ! सुबह सवेरे घर के सभी सदस्यों के उठने से पहले वह उठ जाती है ! पतिदेव व घर के अन्य सदस्यों की चाय के साथ बच्चों को स्कूल के लिये उठाना, नहलाना, तैयार करना, कुछ भी खाने के लिये अनखनाते नखरे दिखाते बच्चों को साम दाम दण्ड भेद से बहला फुसला कर कुछ खिलाने की कोशिश में जुटे रहना, स्कूल के लिये बच्चों की फरमाइश के अनुसार उनका मनपसंद टिफिन तैयार करना, बॉटल में ठंडा पानी भर कर रखना और चलते-चलते भी बच्चों को जूते मोज़े पहनाते हुए टेस्ट में आने वाले प्रश्नों को रिवाइज करवाते रहना आज के युग की माँ की इसी दिनचर्या के साथ गुड मॉर्निंग होती है ! अक्सर जब पापा का बिस्तर से उठने का मूड नहीं होता तो बच्चों को कभी स्वयं ड्राइव करके कार से या बाइक से, कभी ऑटो से या रिक्शे से स्कूल छोड़ने की जिम्मेदारी भी माँ की ही हो जाती है ! घर लौटने पर घर के अन्य सभी सदस्यों की पसंद एवं फरमाइश के अनुसार नाश्ते और खाने की चिंता, घर की साफ़ सफाई एवं साज सज्जा के कार्य, और इन सबके अलावा स्वयं भी नहा धोकर तैयार हो जाना क्योंकि ११.३० बजे छोटी बच्ची को स्कूल से लाना है और १.३० बजे बड़ी बेटी की स्कूल से छुट्टी होती है ! पतिदेव तो अपना लंच बॉक्स लेकर ९.३० बजे ही घर से निकल जाते हैं ! इस बीच अपनी सेहत का ध्यान रखते हुए एक घण्टे के लिये जिम जाने की कवायद भी करनी होती है ! चलते-चलते बिटिया कह गयी थी मम्मा मेरे लिये मोमोज बना कर रखना मैं आज वहीं खाऊँगी ! सो उसकी भी तैयारी करनी होगी वरना बेटी का मूड खराब हो जायेगा और फिर उसे मनाने के लिये आकाश पाताल एक करने पड़ जायेंगे ! दो शिफ्ट में बच्चों को स्कूल से लेकर आना और आने के बाद उन्हें खिलाने पिलाने के बाद उनके होम वर्क के लिये और टेस्ट की तैयारियों के लिये दिन भर जुटे रहना आजकल की माँओं की नियति बन चुका है ! एक्जाम्स के समय बच्चों से अधिक टेंशन में माँ नज़र आती हैं और उनका चेहरा इतना थका और उतरा दिखाई देता है जैसे परीक्षा बच्चे नहीं ये स्वयं दे रही हैं !

खैर दिन भर के होमवर्क से फुर्सत मिली तो बच्चों को फिर स्कूल जाना है अब ईवनिंग गेम्स के लिये ! ज़माना इतना खराब है अकेले भेजना मुनासिब नहीं है तो फिर मम्मी साथ जायेंगी ! जब तक बच्चे खेलेंगे मम्मी की स्कूल में आई अन्य मम्मियों के साथ गपशप चलती रहती है ! घर लौटने पर जल्दी जल्दी शाम के सारे काम करने होते हैं ! अगले दिन के लिये बच्चों की ड्रेस पर प्रेस करनी है, शूज़ पर पॉलिश हो जानी चाहिये, पेंसिल शार्प करके पेन्सिल बॉक्स में रखनी हैं, टाइम टेबिल के अनुसार स्कूल बैग लगाना है ! बच्चों ने लगा भी लिया है तो खुद चेक करना है कि कोई ज़रूरी किताब या कॉपी छूट तो नहीं गयी है कि स्कूल में सज़ा भुगतनी पड़ जाये ! टाइम से बच्चों को सुलाना भी है ! सोते सोते बड़ी बेटी का फरमान आ गया है मम्मा मेरा क्राफ्ट का काम पूरा कर देना सुबह ही ले जाना है ! लीजिए अब रात भी बराबर हो गयी ! पतिदेव तो खाना खाकर कुछ देर टीवी चैनल्स पर अदल बदल कर सारी खबरें देखने के बाद नींद के आगोश में लुढ़क जाते हैं लेकिन माँ रात के एक-एक बजे तक बच्चों के क्राफ्ट के सामानों को सजाने सँवारने में लगी रहती हैं ! बच्चों के लिये कोई प्रोजेक्ट किसी विषय विशेष पर तैयार करना हो तो नेट सर्फिंग कर सारी सामग्री जुटाना, फिर सिलसिलेवार तरीके से उसे संयोजित करना और बच्चों के स्तर के अनुरूप उसे ढाल कर लिखवाना, टीचर्स से बच्चों की प्रगति की रिपोर्ट लेना, बैंक जाकर स्कूल की फीस जमा करवाना, बच्चों की कोचिंग के लिये ट्यूटर्स से मिलना, बच्चों की सांस्कृतिक अभिरुचियों को बढ़ावा देने के लिये उनके साथ स्वयं भी कभी संगीत तो कभी डांस या कभी पेंटिंग तो कभी सितार या बच्चों की रूचि का कोई भी वाद्य सीखने का आग्रह रखना आज की माँ के जीवट का परिचायक है ! यही नहीं बच्चों को उनके दोस्तों की बर्थ डे पार्टी में ले जाना, उनके साथ बच्चा बन कर उनके खेलों में पूरे उत्साह के साथ भाग लेना भी आजकल महानगरों की जीवन शैली का अभिन्न अंग बन चुका है ! इन सारे कामों को सफलतापूर्वक अंजाम देकर सदैव हँसते मुस्कुराते रहना उसके सुपर मॉम होने को स्वयं सिद्ध करता है ! इसीलिये आज सुपर मॉम का परचम सबसे ऊँचा लहराता है !

आदियुग की माँ के हाथों में शंख, पद्म, गदा, चक्र, त्रिशूल, धनुष, खड्ग और आठवें हाथ में देने के लिये आशीर्वाद हुआ करते थे ! आज के युग की माँ के हाथों में कार, बाइक, हवाई जहाज, लैप टॉप, माइक्रो वेव, पुस्तक, सितार और बेलन होते हैं ! इन्हीं अस्त्र शस्त्रों के साथ आज की सुपर मॉम अपने जीवन का युद्ध जीत रही है ! बच्चों के लिये अनंत अथाह प्यार, आशीर्वाद और शुभकामनायें तो उसके हृदय में कभी कम होती ही नहीं हैं ! ऐसी माँ को मेरा भी शतश: नमन ! जय माँ अम्बे भवानी !

साधना वैद


Comments

Shalini kaushik said…
मैंने अपनी दस वर्ष की पोती वाणी से पूछा कि मदर्स डे आने वाला है और क्या उसे कुछ ऐसा लगता है कि उसे अपनी माँ को किसी बात के लिये थैंक्स देने की ज़रूरत महसूस हो रही हो ! मेरी बात सुन कर उसने जो जवाब दिया उसे सुन कर मन प्रसन्न हो गया ! बोली, “दादी, अगर माँ को हर बात के लिये थैंक्स देना शुरू कर दूँगी तो और कुछ बोलने के लिये समय ही कहाँ बचेगा मेरे पास
aapki chhoti see poti hi hame kafi kuchh sikha gayee.sarthak prastuti
vandana gupta said…
सारगर्भित आलेख्।
DR. ANWER JAMAL said…
यहां अम्बे देवी और देवताओं की एक पौराणिक मान्यता का ज़िक्र भी आ गया है। इनके बारे में मैं आपसे सहमत हो नहीं सकता और सच सुनने के लिए कोई तैयार होता है और कोई नहीं। किस का रिएक्शन क्या होगा ?
मैं नहीं जानता लिहाज़ा मैं इनके बारे में टिप्पणी करने से बच रहा हूं ताकि आपकी भावनाएं आहत न हों।
हमें जान लेना चाहिए कि सच के सिवा कुछ भी सच नहीं होता, बस।
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति |लिखने के लिए आसपास ही बहुत कुछ मिल जाता है |यह लेख बहुत अच्छा लगा |बहुत बहुत बधाई |
आशा

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