Skip to main content

नारी को आगे बढ़ने में मदद करते हैं पुरूष भी

जो सच में एक नारी होती है वह कहती है कि उसे आगे बढ ने में उसकी मां ने ही नहीं बल्कि उसके बाप ने भी मदद की है। इक्का दुक्का नासमझ औरत-मर्दों ने कभी कभी इस सच्चाई को झुठलाने की कोशिशें भी की हैं लेकिन सच बहरहाल सच होता है और वह बार बार सामने आता रहता है।
यह स्टोरी पढ़ी तो यही सच एक बार फिर हम सबके सामने आ गया है।
पेरेंट्स का भरोसा बनाता है बेटियों को कामयाब
संदीप द्विवेदी गुड़गांव।

बेटियों की कामयाबी की असल वजह पेरेंट्स का भरोसा होता है। आत्मविश्वास से भरी कनुप्रिया कहती हैं कि पेरेंट्स अगर लड़कियों को प्रोत्साहित करें और उन्हें अपने फैसले लेना सिखाएं तो किसी भी समाज की तकदीर बदल सकती है। कनुप्रिया डिडवानिया (अग्रवाल) देश की पहली टेस्ट टय़ूब बेबी हैं। कलकत्ता में जन्मीं कनुप्रिया ने पुणे से मैनेजमेंट की पढ़ाई की और पिछले दस सालों से साइबर सिटी में रह रही हैं। वो एक नामी कन्फेकशनरी कंपनी में ग्रुप प्रोडक्ट मैनेजर के तौर पर काम कर रही हैं।
बदलते सामाजिक परिदृश्य में बदलती सोच को सही करार देते हुए कनुप्रिया कहती हैं कि अब लड़कियां शादी के बाद पराई नहीं होती। लड़कों की तुलना में लड़कियों का जीवन भी चुनौतीपूर्ण होता है। कनुप्रिया कहती हैं कि नौकरी और ससुराल के बीच सामंजस्य बिठाना लड़कियों के बस की ही बात है। कनुप्रिया कहती हैं कि हरियाणा जैसी जगहों में सेक्स रेशियो के कम होने की वजहों को टटोलना बेहद जरुरी है। आखिर सामाजिक ढांचे में ऐसी क्या कसर है जो बेटियों को बोझ समझा जाता है हालांकि शहरों में और कुछ हद तक गांवों में हालात पूरी तरह बदल चुके हैं। आज से तैंतीस साल पहले जब मेडिकल जगत में संसाधन बेहद कम थे और सामाजिक सोच भी संकीर्ण थी। मेरा जन्म होना एक बड़ी बात थी।कनुप्रिया कहती हैं कि उन्हें कभी लड़की होने की वजह से बंदिशों में नहीं रखा गया। अच्छी पढ़ाई और परवरिश ने ही उनका आत्मविश्वास बढ़ाया है। घर में अब तक पेरेंट्स से एक ही बार डांट पड़ी है जब उन्होंने बचपने में कहा था कि शायद आप लोगों को भी लड़की होने पर दुख हुआ होगा। देश के नामी मैनेजमेंट कॉलेजों में प्रबंधन के गुर सिखाने वाली कनुप्रिया अपनी कामयाबी का श्रेय अपने अभिभावकों और डॉक्टरों को देती हैं। एक पारंपरिक मारवाड़ी परिवार में जन्मीं कनुप्रिया पिता प्रभात अग्रवाल और मां बेला अग्रवाल के साथ ही डॉक्टरों की उस टीम के भी बेहद करीब हैं जो आईवीएफ तकनीक के लिए एडवांस रिसर्च से जुड़ा रहा है।  स्वर्गीय डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय का बेहद सम्मान करने वाली कनुप्रिया कहती हैं कि पेरेंट्स के साथ ही उनके साहस और विश्वास की वजह से ही मेरा अस्तित्व है। डॉक्टर सुनीत मुखर्जी और आनंद कुमार को भी परिवार का हिस्सा बताती हैं।

पूरी तरह सामान्य जीवन जी रही कनुप्रिया कहती हैं कि टेस्ट टय़ूब बेबी भी आम बच्चों की तरह ही होते हैं। तीन अक्टूबर 1978 को जन्मीं कनुप्रिया अब 33 साल की हो चुकी हैं। कनुप्रिया की शादी को भी अब पांच साल हो गए हैं। कनुप्रिया को घर में सब दुर्गा बुलाते हैं। उनका कहना है कि दुर्गा महज देवी नही हैं। बुराई या गलत के खिलाफ आवाज उठाने की प्रवृत्ति भी है जो सभी लड़कियों में छुपी होती है।

Source 
http://www.livehindustan.com/news/desh/deshlocalnews/article1-story-39-0-192473.html&locatiopnvalue=1

Comments

vandana gupta said…
सार्थक सोच ही सार्थक अन्जाम तक पहुँचती है।
Always Unlucky said…
बेहद ही सुन्दर ब्लॉग, उतनी ही सुन्दर सामग्री यहाँ पोस्ट की गयी है मई बहोत दिनों से ऐसे ही किसी ब्लॉग की तलास में था आज मिल ही गया,

मेरे ब्लॉग के लिए क्लिक करे Japan Tsunami
KANTI PRASAD said…
बहुत ही सुन्दर भाव भर दिए हैं पोस्ट में........शानदार| नवरात्रि पर्व की शुभकामनाएं
amrendra "amar" said…
बेहतरीन अभिव्यक्ति....
आपको सपरिवार नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं
Urmi said…
आपका सभी ब्लॉग एक से बढ़कर एक है!
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण पोस्ट! दिल को छू गई!
खूबसूरत और भावमयी अभिव्यक्ति....
आपको सपरिवार नवरात्रि पर्व की शुभकामनाएं
उनका कहना है कि दुर्गा महज देवी नही हैं। बुराई या गलत के खिलाफ आवाज उठाने की प्रवृत्ति भी है जो सभी लड़कियों में छुपी होती है।
bilkul shi.

Popular posts from this blog

माँ बाप की अहमियत और फ़ज़ीलत

मदर्स डे पर विशेष भेंट  इस्लाम में हुक़ूक़ुल ऐबाद की फ़ज़ीलत व अहमियत इंसानी मुआशरे में सबसे ज़्यादा अहम रुक्न ख़ानदान है और ख़ानदान में सबसे ज़्यादा अहमियत वालदैन की है। वालदैन के बाद उनसे मुताल्लिक़ अइज़्जा वा अक़रबा के हुक़ूक़ का दर्जा आता है डाक्टर मोहम्मद उमर फ़ारूक़ क़ुरैशी 1 जून, 2012 (उर्दू से तर्जुमा- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम) दुनिया के हर मज़हब व मिल्लत की तालीमात का ये मंशा रहा है कि इसके मानने वाले अमन व सलामती के साथ रहें ताकि इंसानी तरक़्क़ी के वसाइल को सही सिम्त में रख कर इंसानों की फ़लाहो बहबूद का काम यकसूई के साथ किया जाय। इस्लाम ने तमाम इंसानों के लिए ऐसे हुक़ूक़ का ताय्युन किया है जिनका अदा करना आसान है लेकिन उनकी अदायगी में ईसार व कुर्बानी ज़रूरी है। ये बात एक तरह का तर्बीयती निज़ाम है जिस पर अमल कर के एक इंसान ना सिर्फ ख़ुद ख़ुश रह सकता है बल्कि दूसरों के लिए भी बाइसे राहत बन सकता है। हुक़ूक़ की दो इक़्साम हैं । हुक़ूक़ुल्लाह और हुक़ूक़ुल ऐबाद। इस्लाम ने जिस क़दर ज़ोर हुक़ूक़ुल ऐबाद पर दिया है इससे ये अमर वाज़ेह हो जाता है कि इन हुक़ूक़ का कितना बुलंद मुक़ाम है और उन...

माँ तो माँ है...

कितना सुन्दर नाम है इस ब्लॉग का प्यारी माँ .हालाँकि प्यारी जोड़ने की कोई ज़रुरत ही नहीं है क्योंकि माँ शब्द में संसार का सारा प्यार भरा है.वह प्यार जिस के लिए संसार का हर प्राणी भूखा है .हर माँ की तरह मेरी माँ भी प्यार से भरी हैं,त्याग की मूर्ति हैं,हमारे लिए उन्होंने अपने सभी कार्य छोड़े और अपना सारा जीवन हमीं पर लगा दिया. शायद सभी माँ ऐसा करती हैं किन्तु शायद अपने प्यार के बदले में सम्मान को तरसती रह जाती हैं.हम अपने बारे में भी नहीं कह सकते कि हम अपनी माँ के प्यार,त्याग का कोई बदला चुका सकते है.शायद माँ बदला चाहती भी नहीं किन्तु ये तो हर माँ की इच्छा होती है कि उसके बच्चे उसे महत्व दें उसका सम्मान करें किन्तु अफ़सोस बच्चे अपनी आगे की सोचते हैं और अपना बचपन बिसार देते हैं.हर बच्चा बड़ा होकर अपने बच्चों को उतना ही या कहें खुद को मिले प्यार से कुछ ज्यादा ही देने की कोशिश करता है किन्तु भूल जाता है की उसका अपने माता-पिता की तरफ भी कोई फ़र्ज़ है.माँ का बच्चे के जीवन में सर्वाधिक महत्व है क्योंकि माँ की तो सारी ज़िन्दगी ही बच्चे के चारो ओर ही सिमटी होती है.माँ के लिए कितना भी हम करें वह माँ ...

माँ की ममता

ईरान में सात साल पहले एक लड़ाई में अब्‍दुल्‍ला का हत्यारा बलाल को सरेआम फांसी देने की तैयारी पूरी हो चुकी थी. इस दर्दनाक मंजर का गवाह बनने के लिए सैकड़ों का हुजूम जुट गया था. बलाल की आंखों पर पट्टी बांधी जा चुकी थी. गले में फांसी का फंदा भी  लग चुका था. अब, अब्‍दुल्‍ला के परिवार वालों को दोषी के पैर के नीचे से कुर्सी हटाने का इंतजार था. तभी, अब्‍दुल्‍ला की मां बलाल के करीब गई और उसे एक थप्‍पड़ मारा. इसके साथ ही उन्‍होंने यह भी ऐलान कर दिया कि उन्‍होंने बलाल को माफ कर दिया है. इतना सुनते ही बलाल के घरवालों की आंखों में आंसू आ गए. बलाल और अब्‍दुल्‍ला की मां भी एक साथ फूट-फूटकर रोने लगीं.