बूढ़े माँ बाप और लाचार इंसान हिंदी ब्लॉग जगत की चिंता का विषय हमेशा से हैं। 'प्यारी माँ' ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला सामूहिक प्रयास है । इसके बाद दो चार और ब्लॉग भी इसी चिंता को लेकर खड़े हुए हैं और अब यह चिंता उन ब्लॉग्स पर भी देखी जा रही है , जो कि अब तक इस तरह के मुददों से कोई सरोकार ही नहीं रखते थे या फिर कम रखते थे।
यह एक अच्छा लक्षण है लेकिन संकीर्णता और पक्षपात का आलम यह है कि किसी ने भी 'प्यारी माँ' ब्लॉग के रचनात्मक आंदोलन का जिक्र तक अपनी पोस्ट में न किया । हरेक अपने आप को ऐसे जाहिर कर रहा है जैसे कि इस मुददे को चर्चा मात्र उसके लेखन के कारण मिल रही है । यह एक ग़लत ट्रेंड है ।
वृद्धों के प्रति उपेक्षा एक गंभीर सामाजिक समस्या है। इसे महज़ क़ानून और क़ानूचियों के बल पर हल नहीं किया जा सकता । ब्लॉग पर विचार विमर्श किया जा सकता है लेकिन इसे हल करने के लिए हमें हक़ीक़त की दुनिया में काम करना होगा और सबको मिलकर करना होगा।
जो लोग सबके साथ मिलकर सोचने तक के लिए तैयार नहीं हैं , वे इस समस्या पर लिख कर ख़ुद को मानवीयता के गुण के आवरण में लिपटा हुआ सा तो दिखा सकते हैं लेकिन इस समस्या को वास्तव में हल नहीं कर सकते ।
यह एक अच्छा लक्षण है लेकिन संकीर्णता और पक्षपात का आलम यह है कि किसी ने भी 'प्यारी माँ' ब्लॉग के रचनात्मक आंदोलन का जिक्र तक अपनी पोस्ट में न किया । हरेक अपने आप को ऐसे जाहिर कर रहा है जैसे कि इस मुददे को चर्चा मात्र उसके लेखन के कारण मिल रही है । यह एक ग़लत ट्रेंड है ।
वृद्धों के प्रति उपेक्षा एक गंभीर सामाजिक समस्या है। इसे महज़ क़ानून और क़ानूचियों के बल पर हल नहीं किया जा सकता । ब्लॉग पर विचार विमर्श किया जा सकता है लेकिन इसे हल करने के लिए हमें हक़ीक़त की दुनिया में काम करना होगा और सबको मिलकर करना होगा।
जो लोग सबके साथ मिलकर सोचने तक के लिए तैयार नहीं हैं , वे इस समस्या पर लिख कर ख़ुद को मानवीयता के गुण के आवरण में लिपटा हुआ सा तो दिखा सकते हैं लेकिन इस समस्या को वास्तव में हल नहीं कर सकते ।
Comments
chinta karne vale hain
main bhi aaya aapke sath
:)
आपसे सहमत !
आपने अपने लेख का लिंक दिया होता तो हम उसे भी जरूर पढ़ते और उस पर अपनी राय भी देते । इसके बावजूद हमें आशा है कि आपने लिखा है तो अच्छा ही लिखा होगा ।
धन्यवाद !