Skip to main content

बूढ़े लोगों की समस्याएं बन गई हैं अब नाम चमकाने का ज़रिया

बूढ़े माँ बाप और लाचार इंसान हिंदी ब्लॉग जगत की चिंता का विषय हमेशा से हैं। 'प्यारी माँ' ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला सामूहिक प्रयास है । इसके बाद दो चार और ब्लॉग भी इसी चिंता को लेकर खड़े हुए हैं और अब यह चिंता उन ब्लॉग्स पर भी देखी जा रही है , जो कि अब तक इस तरह के मुददों से कोई सरोकार ही नहीं रखते थे या फिर कम रखते थे।
यह एक अच्छा लक्षण है लेकिन संकीर्णता और पक्षपात का आलम यह है कि किसी ने भी 'प्यारी माँ' ब्लॉग के रचनात्मक आंदोलन का जिक्र तक अपनी पोस्ट में न किया । हरेक अपने आप को ऐसे जाहिर कर रहा है जैसे कि इस मुददे को चर्चा मात्र उसके लेखन के कारण मिल रही है । यह एक ग़लत ट्रेंड है ।
वृद्धों के प्रति उपेक्षा एक गंभीर सामाजिक समस्या है। इसे महज़ क़ानून और क़ानूचियों के बल पर हल नहीं किया जा सकता । ब्लॉग पर विचार विमर्श किया जा सकता है लेकिन इसे हल करने के लिए हमें हक़ीक़त की दुनिया में काम करना होगा और सबको मिलकर करना होगा।
जो लोग सबके साथ मिलकर सोचने तक के लिए तैयार नहीं हैं , वे इस समस्या पर लिख कर ख़ुद को मानवीयता के गुण के आवरण में लिपटा हुआ सा तो दिखा सकते हैं लेकिन इस समस्या को वास्तव में हल नहीं कर सकते ।

Comments

aabhaar
chinta karne vale hain
main bhi aaya aapke sath
अब तो लोग चोरी करके अपनी पोस्ट बना लेते है और सीनाजोरी भी करते हैं :)
समाज के हर तबके को जागरूक करना होगा!
DR. ANWER JAMAL said…
@ रविकर जी ! साथ आने के लिए आपका शुक्रिया ।
DR. ANWER JAMAL said…
@ आदरणीय चंद्रमौलेश्वर जी ! आप सही कह रहे हैं । अभी हमने हिंदी ब्लॉगिंग गाइड की तैयारी में लोगों से जुड़ने के लिए कहा तो बजाय साथ आने ख़ुद वैसी ही लिखनी शुरू कर दी है।
:)
DR. ANWER JAMAL said…
@ आदरणीय रूपचंद जी ! सभी लोग जागरूक हों और पक्षपात से त्याग कर मिलकर काम करें तो कोई समस्या बाक़ी बचने वाली नहीं है ।
आपसे सहमत !
हम तो आँखों देखी ही लिखते हैं ...इधर बार -बार यही दृश्य देखने को मिले तो लिख दिया !
DR. ANWER JAMAL said…
@ वाणी जी ! आप प्यारी माँ ब्लॉग की नियमित पाठिका भी हैं और आपसे वैचारिक समर्थन सदा ही मिला है । शिकायत उनसे है जो हरेक सकारात्मक आंदोलन को अपनी गुटबाज़ी के कारण पहले तो नज़रअंदाज़ कर देते हैं और जब वह सफल हो जाता है तब भी वे उससे अन्जान से होने का दिखावा किया करते हैं ।
आपने अपने लेख का लिंक दिया होता तो हम उसे भी जरूर पढ़ते और उस पर अपनी राय भी देते । इसके बावजूद हमें आशा है कि आपने लिखा है तो अच्छा ही लिखा होगा ।

धन्यवाद !

Popular posts from this blog

माँ बाप की अहमियत और फ़ज़ीलत

मदर्स डे पर विशेष भेंट  इस्लाम में हुक़ूक़ुल ऐबाद की फ़ज़ीलत व अहमियत इंसानी मुआशरे में सबसे ज़्यादा अहम रुक्न ख़ानदान है और ख़ानदान में सबसे ज़्यादा अहमियत वालदैन की है। वालदैन के बाद उनसे मुताल्लिक़ अइज़्जा वा अक़रबा के हुक़ूक़ का दर्जा आता है डाक्टर मोहम्मद उमर फ़ारूक़ क़ुरैशी 1 जून, 2012 (उर्दू से तर्जुमा- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम) दुनिया के हर मज़हब व मिल्लत की तालीमात का ये मंशा रहा है कि इसके मानने वाले अमन व सलामती के साथ रहें ताकि इंसानी तरक़्क़ी के वसाइल को सही सिम्त में रख कर इंसानों की फ़लाहो बहबूद का काम यकसूई के साथ किया जाय। इस्लाम ने तमाम इंसानों के लिए ऐसे हुक़ूक़ का ताय्युन किया है जिनका अदा करना आसान है लेकिन उनकी अदायगी में ईसार व कुर्बानी ज़रूरी है। ये बात एक तरह का तर्बीयती निज़ाम है जिस पर अमल कर के एक इंसान ना सिर्फ ख़ुद ख़ुश रह सकता है बल्कि दूसरों के लिए भी बाइसे राहत बन सकता है। हुक़ूक़ की दो इक़्साम हैं । हुक़ूक़ुल्लाह और हुक़ूक़ुल ऐबाद। इस्लाम ने जिस क़दर ज़ोर हुक़ूक़ुल ऐबाद पर दिया है इससे ये अमर वाज़ेह हो जाता है कि इन हुक़ूक़ का कितना बुलंद मुक़ाम है और उनकी अ

माँ तो माँ है...

कितना सुन्दर नाम है इस ब्लॉग का प्यारी माँ .हालाँकि प्यारी जोड़ने की कोई ज़रुरत ही नहीं है क्योंकि माँ शब्द में संसार का सारा प्यार भरा है.वह प्यार जिस के लिए संसार का हर प्राणी भूखा है .हर माँ की तरह मेरी माँ भी प्यार से भरी हैं,त्याग की मूर्ति हैं,हमारे लिए उन्होंने अपने सभी कार्य छोड़े और अपना सारा जीवन हमीं पर लगा दिया. शायद सभी माँ ऐसा करती हैं किन्तु शायद अपने प्यार के बदले में सम्मान को तरसती रह जाती हैं.हम अपने बारे में भी नहीं कह सकते कि हम अपनी माँ के प्यार,त्याग का कोई बदला चुका सकते है.शायद माँ बदला चाहती भी नहीं किन्तु ये तो हर माँ की इच्छा होती है कि उसके बच्चे उसे महत्व दें उसका सम्मान करें किन्तु अफ़सोस बच्चे अपनी आगे की सोचते हैं और अपना बचपन बिसार देते हैं.हर बच्चा बड़ा होकर अपने बच्चों को उतना ही या कहें खुद को मिले प्यार से कुछ ज्यादा ही देने की कोशिश करता है किन्तु भूल जाता है की उसका अपने माता-पिता की तरफ भी कोई फ़र्ज़ है.माँ का बच्चे के जीवन में सर्वाधिक महत्व है क्योंकि माँ की तो सारी ज़िन्दगी ही बच्चे के चारो ओर ही सिमटी होती है.माँ के लिए कितना भी हम करें वह माँ

माँ की ममता

ईरान में सात साल पहले एक लड़ाई में अब्‍दुल्‍ला का हत्यारा बलाल को सरेआम फांसी देने की तैयारी पूरी हो चुकी थी. इस दर्दनाक मंजर का गवाह बनने के लिए सैकड़ों का हुजूम जुट गया था. बलाल की आंखों पर पट्टी बांधी जा चुकी थी. गले में फांसी का फंदा भी  लग चुका था. अब, अब्‍दुल्‍ला के परिवार वालों को दोषी के पैर के नीचे से कुर्सी हटाने का इंतजार था. तभी, अब्‍दुल्‍ला की मां बलाल के करीब गई और उसे एक थप्‍पड़ मारा. इसके साथ ही उन्‍होंने यह भी ऐलान कर दिया कि उन्‍होंने बलाल को माफ कर दिया है. इतना सुनते ही बलाल के घरवालों की आंखों में आंसू आ गए. बलाल और अब्‍दुल्‍ला की मां भी एक साथ फूट-फूटकर रोने लगीं.