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आशीर्वचनों का महाग्रंथ



माँ ...
हवा , बादल , धूप , छाँव
बच्चों के लिए पूरी प्रकृति
अपने आँचल में समेट
एक धरोहर बन जाती है ...
जब सारी दिशाएं प्रतिकूल होती हैं
माँ लहरों के विपरीत
संभावनाओं के द्वार खोलती है
... माँ शब्द में ही
एक अदृश्य शक्ति होती है
माँ कहते ही
हर विपदा शांत हो जाती है
माँ लोरियों का सिंचन करती है
एक आँचल में
करोड़ों सौगात लिए चलती है
आशीर्वचनों का महाग्रंथ होती है

Comments

Sadhana Vaid said…
माँ तो माँ होती है ! अपने बच्चों के लिये उसका कोष कभी खाली नहीं होता ! चाहे आशीर्वाद हों, लोरियाँ हों या फिर प्यार हो ! उसका अक्षय पात्र सदा भरा होता है !
बहुत खूबसूरती से माँ को परिभाषित किया है ...
सदा said…
मां तो बच्‍चे के लिए पूरी दुनिया होती है ...।
vandana gupta said…
माँ की महिमा का सुन्दर चित्रण्।
जब सारी दिशाएं प्रतिकूल होती हैं
माँ लहरों के विपरीत
संभावनाओं के द्वार खोलती है

बिलकुल सही बात है ... बहुत सुन्दर रचना !
माँ अनुपम होती है, हर हाल में वह अपने बच्चे के लिए एक छायादार वृक्ष की तरह उस पर छाया किये रहती है. वह जीती भी उसी के लिए है और मरते मरते बच्चों के लिए ही सोचती है.
Minakshi Pant said…
माँ तो माँ है माँ से प्यारा दूजा कोई नहीं |
बहुत खुबसूरत रचना |
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 19 - 04 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

http://charchamanch.blogspot.com/
DR. ANWER JAMAL said…
माँ लोरियों का सिंचन करती है
एक आँचल में
करोड़ों सौगात लिए चलती है

.सही कहा आपने .
माँ ...
हवा , बादल , धूप , छाँव
बच्चों के लिए पूरी प्रकृति
अपने आँचल में समेट
एक धरोहर बन जाती है ...
जब सारी दिशाएं प्रतिकूल होती हैं
माँ लहरों के विपरीत
संभावनाओं के द्वार खोलती है
... माँ शब्द में ही
एक अदृश्य शक्ति होती है
माँ कहते ही
हर विपदा शांत हो जाती है
माँ लोरियों का सिंचन करती है
एक आँचल में
करोड़ों सौगात लिए चलती है
आशीर्वचनों का महाग्रंथ होती है
रश्मि जी इस कविता में एक भी पंक्ति निरर्थक नहीं है यही इसकी सबसे बड़ी सार्थकता है माँ दुनियां की सबसे अनुपम कृति है विधाता का साकार रूप है बधाई |
रूक क्यों गईं, और लिखिए, बहुत सुंदर बन पड़ा है।
बेहतरीन प्रस्तुति भावों का अद्भुत संगम. माँ को परिभाषित करना एक बहुत ही मुशिकल काम आज आपने किया है
माँ से बढ़कर कोई नहीं ...

बहुत ही भावपूर्ण, हृदयस्पर्शी रचना
Asha Joglekar said…
माँ का अक्षय पात्र तो सदा भरा ही होता है ।
सच मां जैसा कोई दूसरा हो ही नही सकता !
ये तो मां ही है जिनका अक्षय पात्र कभी रिक्त नहीं होता ......
पहली गुरु है अपनी माता ...
प्रथम ज्ञान शिशु माँ से पाता ....
जीवन की निर्मात्री है माँ .....

सुकोमल भावों से सजी सुंदर रचना ....!!
maa ke liye jitna likha jaye kam hai.
pyari rachna.
"बहता ज्यों एक दरिया माँ
जीवन का इक जरिया माँ
बोलें तो इक लफ्ज़ फ़क़त
समझें तो सारी दुनिया माँ"

इस बेहद खुबसूरत रचना के लिए नमन...
सादर...
माँ का आँचल कितना विस्तृत होता है , आसमान जैसा ही ...सब समेत लेती है इसमें मगर हम ??
DR. ANWER JAMAL said…
आप सभी साहिबान से चाहा जा रहा है कि आप मुशायरा ब्लॉग पर भी तशरीफ़ लाये.
मेहरबानी होगी.
शुक्रिया .
माँ जैसा कोई कहाँ है ..बहुत सुन्दर लिखा है माँ के लिए
कैसी है आरजू ये, मेरी
कैसी है प्यासे मन की तमन्ना ,

आज फिर से आँचल में उसकी
छिप जाने का मन करता है
माँ के आँचल के लिए आज
फिर मन ललचा है.....(anju...anu )

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