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तेरा "वजुद" मुझ में है "माँ"


मैं चुराकर लाई हुं तेरी वो तस्वीर जो हमारे साथ तूने खींचवाई थी मेरे परदेस जाने पर।


में चुराकर लाई हुं तेरे हाथों के वो रुमाल जिससे तूं अपना चहेरा पोंछा करती थी।


मैं चुराकर लाई हुं वो तेरे कपडे जो तुं पहना करती थी।


मैं चुराकर लाई हुं पानी का वो प्याला, जो तु हम सब से अलग छूपाए रख़ती थी।


मैं चुराकर लाई हुं वो बिस्तर, जिस पर तूं सोया करती थी।


मैं चुराकर लाई हुं कुछ रुपये जिस पर तेरे पान ख़ाई उँगलीयों के नशाँ हैं।


मैं चुराकर लाई हुं तेरे सुफ़ेद बाल, जिससे मैं तेरी चोटी बनाया करती थी।


जी चाहता है उन सब चीज़ों को चुरा लाउं जिस जिस को तेरी उँगलीयों ने छुआ है।


हर दिवार, तेरे बोये हुए पौधे,तेरी तसबीह , तेरे सज़द,तेरे ख़्वाब,तेरी दवाई, तेरी रज़ाई।


यहां तक की तेरी कलाई से उतारी गई वो, सुहागन चुडीयाँ, चुरा लाई हुं “माँ”।


घर आकर आईने के सामने अपने को तेरे कपडों में देख़ा तो,


मानों आईने के उस पार से तूं बोली, “बेटी कितनी यादोँ को समेटती रहोगी?


मैं तुझ ही में तो समाई हुई हुं।


“तुं ही तो मेरा वजुद है बेटी”

Comments

बेहतरीन भाव लिए रचना।
शब्‍द नहीं सूझ रहे... क्‍या लिखूं इस पर।
आपने तो रूला ही दिया।
एक बार फिर बेहतरीन।
DR. ANWER JAMAL said…
मैं तुझ में ही तो समाई हुई हूँ
यह बिलकुल सच है.
और यह भी सच है कि आँखें भर आईं. इन खूबसूरत अशआर के साथ हम आपका और आपकी इस बेहतरीन रचना का इस्तक़बाल करते हैं.

उम्र भर रखे रही सर पर ज़रूरतों का पहाड़
थक गई साँसें तो अब आराम फरमाते है माँ

जो जुबां पर भी न आये , दिल में घुट कर रह गए
ऐसे कुछ अरमान अपने साथ ले जाती है माँ

आपकी आमद ने आज हमारी देरीना इंतज़ार को बिल-आख़िर ख़तम कर दिया.
जजाकल्लाह .
bhtrin rchnaa mubark ho . akhtar khan akela kota rajsthan
vandana gupta said…
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (28-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/
DR. ANWER JAMAL said…
यह ब्लॉग अब आपको एक और एग्रीगेटर 'अपना ब्लॉग' पर भी दिखाई देगा.
इसी के साथ आज मैंने अपने कई और ब्लॉग्स भी इस एग्रीगेटर पर जोड़ दिया है.
रास्ते अभी और भी हैं ट्रैफिक बढाने के लिए. जैसे जैसे मेरा इल्म बढ़ता जायेगा और मुझे वक़्त मिलता जायेगा , मैं आपकी आवाज़ को ज्यादा से ज़्यादा फैलाता चला जाऊंगा.
आप लिखते रहें और हम पढ़ते रहें ऐसी हमारी इच्छा है.
शुक्रिया.
http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/03/good-news.html
Vivek Jain said…
मानों आईने के उस पार से तूं बोली, “बेटी कितनी यादोँ को समेटती रहोगी?
मैं तुझ ही में तो समाई हुई हुं।

सुन्दर, बेहतरीन

Vivek Jain (vivj2000.blogspot.com)
Shah Nawaz said…
बहुत ही बेहतरीन भाव... बेहद खूबसूरत रचना...
यह वाकई एक अच्छी खबर है कि प्यारी माँ ब्लॉग पर साधना वैद जी और जानी मानी शायरा रज़िया मिर्ज़ा साहेबा भी आ चुकी हैं और आते ही दोनों ने प्यारी माँ की ख़िदमत में काव्य रचना की शक्ल में अपना नजराना ए अक़ीदत भी पेश किया है . दोनों कलाम अपने आप में खूब से खूबतर हैं. हम इस्तकबाल करते हैं.
इस खुशखबरी का चर्चा आप यहाँ भी देख सकते हैं

http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/03/blog-post_27.html
S.M.Masoom said…
रज़िया जी एक बेहतरीन पेश्लाश ले लिए बहुत बहुत शुक्रिया. जिसकी मान जिंदा है और वो अपनी मां के करीब नहीं ,या उसका ख्याल नहीं रखता, बदकिस्मत है क्यों कि जिस दिनं मां इस दुनिया से चली जाएगी बहुत पछताएगा, लेकिन मां को नहीं पाएगा.
डो.जमाल साहब,अतुलजी,शाहनवाज़साहब,संगिताजी,विवेक्जी,वन्दनाजी,मासूम साहब और अख़्तर साहब।

आप सभी का बहोत बहोत शुक्रिया। मेरी रचना को सराहने के लिये। ये रचना ही सिर्फ़ नहिं है ये हक़ीकत बयाँ की है मैने।

डो.जमाल साहब की तहे दिल से शुक्रगुज़ार हुं जिन्होंने मुझे प्यारी माँ ब्लोग पर लिखने को कहा।
हकीम युनुसख़ान साहब । आपका शुक्रिया अदा करती हुं जो आपने हमें इतनी इज़्ज़त बक्षी है अपने अलफ़ाज से।
सदा said…
बहुत खूब ...भावमय करते शब्‍द ।
Sadhana Vaid said…
वास्तविकता के बहुत करीब बेहद पनी सी रचना ! हर बेटी के मन के जज्बातों को बहुत ही खूबसूरत अलफ़ाज़ दे दिए आपने ! मेरी बधाई क़ुबूल करें !
Unknown said…
आंखें नम हो गईं। गहरे भाव खुद में समेटे ये पंक्तियां बेहतरीन हैं।
Minakshi Pant said…
मैं तुझ ही में तो समाई हुई हुं।

“तुं ही तो मेरा वजुद है बेटी
khubsurat ahsason se sazi rachna
POOJA... said…
very beautiful... har baat, har yaad samet li...

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