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सिजेरियन ऑपरेशन पैसा कमाने का ज़रिया

बसे विज्ञान का विकास एवं आम व्यक्ति की पहुंच तक विस्तार हुआ है तो बजाय आसानी से प्रसव होने के डिलेवरियाँ ऑपरेशन के जरिये हो रही हैं! इसका मतलब यह माना जावे कि अप्रशिक्षित दाईयाँ आज की प्रसूतारोग विशेषज्ञ महिला चिकित्सकों की तुलना में श्रेृष्ठ थी? नहीं उन्हें श्रृेष्ठ तो नहीं माना जा सकता, लेकिन वे आज की पढी-लिखी महिला डाक्टरों की तुलना में अत्यधिक संवेदनशील अवश्य थी। उनके लिये प्रसूता एवं नवजात दोनों का जीवन महत्वपूर्ण होता था। प्रसव होने तक दाई परमात्मा से सामान्य प्रसव के लिये प्रार्थना किया करती थी, जबकि आज की लालची चिकित्सक ऐसे अवसरों की तलाश में रहती हैं कि किसी प्रकार से प्रसव कुछ घण्टों के लिये विलम्बित हो जाये तो प्रसूता के परिजनों को सिजेरियन ऑपरेशन के लिये सहमत करना आसान हो जाये। इस अन्तर को समझने की जरूरत है और ऐसी दुष्ट, लालची एवं अपराधी महिला चिकित्सकों को कानून के शिकंजे में लाकर जेल में डलवाने की जरूरत है।
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नयी दिल्ली। 14 एवं 15 जनवरी, 10 के दैनिक समाचार-पत्रों में उक्त खबर अनेक पाठकों ने पढी होगी। खबर पढकर फेंक देनी की आदत से लाचार हम लोगों ने इस खबर को भी वैसे ही पढकर फेंका होगा, जैसे कि किसी पुत्र के दुर्घटना में मरने की खबर। सेना में आतंकवादियों के मारे गये किसी पिता की खबर और किसी बेटी की आबरू लुटने की खबर को हम हर दिन असंवेदनशील से बनकर फेंक देते हैं। सवाल उठता है कि आखिर एक आम व्यक्ति अकेला कर भी क्या सकता है? हमारी यही सोच हमें लुटने, पिटने और बीच चौराहे पर, सरकारी दफ्तर में तथा समाज के समक्ष अपमानित होते रहने की असली वजह है। सर्व-प्रथम हमें इसी मानसिकता से उबरना होगा। इसलिये अकसर मैं कहता रहता हँू कि बिना जागरूकता के आज के समय में इंसान जानवरों से भी गया-बीता है।
हम रोजाना देखते हैं कि हर छोटे-बडे कस्बे एवं शहर में महिलाओं के प्रसव आसानी से नहीं होकर ऑपरेशन के जरिये हो रहे हैं, जिन्हें सिजेरियन डिलेवरी का नाम दिया जाता है। हम सब कुछ जानते हुए भी भयभीत होने के कारण अनजान बने रहते हैं। डॉक्टर पर विश्वास नहीं करें तो खतरा और विश्वास करें तो सिजेरियन का खतरा। दोनों ही दशाएँ अत्यन्त दुखदायी हैं। ऐसे में प्रसूता के परिजन विवश होकर सिजेरियन डिलेवरी के लिये सहमत हो जाते हैं, जबकि 30 वर्ष पहले तक कोई बिरला केस ही सिजेरियन डिलेवरी का कारण बनता था।माताएँ स्थानीय दाईयों के सहयोग से बच्चों को जन्म देती रही हैं। जबसे विज्ञान का विकास एवं आम व्यक्ति की पहुंच तक विस्तार हुआ है तो बजाय आसानी से प्रसव होने के डिलेवरियाँ ऑपरेशन के जरिये हो रही हैं! इसका मतलब यह माना जावे कि अप्रशिक्षित दाईयाँ आज की प्रसूतारोग विशेषज्ञ महिला चिकित्सकों की तुलना में श्रेृष्ठ थी? नहीं उन्हें श्रृेष्ठ तो नहीं माना जा सकता, लेकिन वे आज की पढी-लिखी महिला डाक्टरों की तुलना में अत्यधिक संवेदनशील अवश्य थी। उनके लिये प्रसूता एवं नवजात दोनों का जीवन महत्वपूर्ण होता था। प्रसव होने तक दाई परमात्मा से सामान्य प्रसव के लिये प्रार्थना किया करती थी, जबकि आज की लालची चिकित्सक ऐसे अवसरों की तलाश में रहती हैं कि किसी प्रकार से प्रसव कुछ घण्टों के लिये विलम्बित हो जाये तो प्रसूता के परिजनों को आसानी से सिजेरियन ऑपरेशन के लिये सहमत करना आसान हो जाये। इस अन्तर को समझने की जरूरत है और ऐसी दुष्ट, लालची एवं अपराधी महिला चिकित्सकों को कानून के शिकंजे में लाकर जेल में डलवाने की जरूरत हैं। यपि यह काम बेहद कठिन है, लेकिन आम व्यक्ति इस बात के लिये अपने आपको तैयार करले तो कुछ भी मुश्किल या असम्भव नहीं है। हर व्यक्ति का यह दायित्व है कि लालची और अपराधी प्रवृत्ति की उन सभी प्रसूता रोग विशेषज्ञ चिकित्सकों को खोज-खोज करके पकडवाया जावे और माताओं एवं बहनों के जीवन को सुरक्षित किया जावे।
क्या विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू एच ओ) की ओर से पिछले दिनों जारी की गयी यह खबर दिल दहला देने वाली नहीं है कि हमारे देश में माताओं के ज्यादातर सिजेरियन ऑपरेशन अस्पतालों द्वारा पैसा कमाने के मकसद से फिजूल में कराए जाते हैं और इस प्रकार के ऑपरेशन यह जानते हुए भी होते हैं कि इनसे माता और शिशु की जान जाने सहित अन्य जोखिम बढ जाते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा माता व नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य को लेकर किए गए वैश्विक सर्वेक्षण में भारत सहित नौ एशियाई देशों में 2007-08 में सिजेरियन ऑपरेशनों में 27 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। देश में 18 फीसदी डिलीवरी सिजेरियन ऑपरेशन से हुई हैं। इसमें सबसे चिंताजनक बात यह है कि दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों के निजी अस्पतालों में इस तरह के मामले पांच प्रतिशत से बढकर 65 फीसदी तक पहुंच गए हैं। डब्लूएचओ की सूची में चीन सबसे ऊपर है, जहां 46 फीसदी डिलीवरी सिजेरियन ऑपरेशन से होती हैं। सबसे दुखद बात तो यह है कि इसका कारण आकस्मिक चिकित्सा जरूरत नहीं बल्कि पैसा कमाने की लालसा है।

 – डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

माता और बच्चे के हित के लिए साभार 

Comments

bahut samasamayik lekh prastut kiya hai . ye bat bilkul sach hai ki khastaur par nursing home men to yah ek aamadani ka badhiya jariya hai . sarakari aspatal men arthk drishti se kamajor log hi jate hain aisa nahin ki vahan par kaabil doctor nahin hai lekin hamari apani manasikata bhi aise ho chuki hai ki ham khud ko bada mahasoos karte hain .
aaj samanya prasav kee bat to kam hi sunane ko milati hai . kuchh to aajkal kee mahilaayen prasav peeda ko sahan na karne ke liye bhi operation karvana pasand karne lagi hain. lekin isamen doctor kee aamadani ka jariya sabse bada hai . lekin ho kya sakata hai ?
Shikha Kaushik said…
SACH AAJ YE EK PAISA KAMANE KA DHANDHA BAN GAYA HAI .

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