Skip to main content

डॉ.भावना श्रीवास्तव की एक यादगार भेंट Wife

डॉ.भावना श्रीवास्तव  की एक यादगार भेंट , जो औरत की हक़ीक़त को और उसके मुक़द्दस जज़्बात को सामने लाती है-


पत्नी  माँ भी   है. 


       माँ , पुत्री, बहिन, पत्नी, गुरु, मित्र,देवी अदि अनेक रूपों में नारी की पूजा करने वाले संस्कार भारत में ही हैं भारत के आलावा किसी और देश में नहीं . पाश्चात्य संस्कृति के अनुसार - विवाह के उपरांत बच्चा हो या नहीं ये आवश्यक नहीं. वहां विवाह एक एक से ज्यादा बार भी किये जा सकते हैं. तलाक लेकर विवाह तोड़ कर किसी अन्य से विवाह कर लिया या विधवा होने पर विवाह कर लिया. यद्यपि भारत में भी यह संस्कृति आ गयी है. पर भारत में मूल रूप से नारी को पुरुष की 'संगिनी' और अर्धांगिनी के रूप में ही स्वीकार किया जाता रहा है है. दोनों का रिश्ता एक दुसरे का सहयोगी और एक दुसरे के कार्यों की प्रशंसा , सराहना करने वाला माना गया है.
      भारत के महानगरों में रहने वाले और माँ का समर्थन जीतने अपने को चरित्रवान बताने वाले ऊपर से बाह्य दिखावा मात्र करने वाले पति यह कहते पाए जाते हैं-- "हम पत्नियां तो कई पा सकते हैं परन्तु माँ एक ही होती है" बिना ये सोचे कि उसकी पत्नी क़ी भी तो कोई माँ है जिसने उसे जन्म दिया है . आखिर वो क्यों नहीं कहती क़ी मुझे पति तो कई मिल सकते हैं पर पिता तो एक ही होता है.

        हर शब्द तोल मोल के बोलना चाहिए . हर कथन को अपने ऊपर लागु करके देखने से पहले जो भी शब्द मुंह में आये बोल देना वेसा ही है जेसे अँधेरे में बिना निशाना लगाये तीर छोड़ देना. अगर ऐसे पतियों को जिनको विवाह का मतलब नहीं मालूम है उन्हें सामाजिक रूप से विवाह करने कि अनुमति ही नहीं देना चाहिए. ऐसे लोग तो चोरी छुपे काम वासना पूरी कहीं भी करते रहते हैं. उनके लिए पत्नी सिर्फ भोग क़ी वास्तु रहती है.जो अपनी जिंदगी अकेलेपन और अपमान की आग में असमय ख़त्म कर देती है . 
        जब तक सच्चा प्रेम नहीं हो विवाह बंधन में नहीं बंधना चाहिए. पढाई लिखाई का महत्व प्रेम से कम होता है. संत कबीर दस जी भी कह गए हैं- पोथी पढ़ पढ़ जड़ मुआ पंडित भय न कोई , ढाई अक्षर 'प्रेम' का पढ़े सो पंडित होय .. जो तथाकथित किताबों के अध्ययन में मग्न अपने अंदर के प्रेम को प्रकट करने में असमर्थ हैं वो विद्वान नहीं कहला सकते.
        सच्ची चाहत ये नहीं देखती कि पत्नी मोटी है या दुबली? काली है या गोरी? अमीर घर से है या गरीब? ज्यादा पढ़ी लिखी है या कम ? चाहत सिर्फ दिल से होती है. पाश्चात्य सभ्यता का अनुसरण करने वालियों का साथ तभी तक लोग पसंद करते हैं जब तक वे जवान हो . जवानी ढलते ही उनका शारीरिक आकर्षण समाप्त हो जाता है .पत्नी से आकर्षण नहीं सच्चा प्रेम होता है यह शाश्वत आत्मिक प्रेम, स्नेह का बंधन है जो तो सभी को चाहिए इस बंधन मे तो स्वयं भगवान् भी बंधना चाहते हैं. बिना स्नेह के बंधन में बंधे जिंदगी कभी सफल नहीं हो सकती.
 जो पति ये कहते है माँ एक बार मिलती है पत्नियां कई बार वो ये क्यों नहीं सोचते कि उनकी पत्नी सिर्फ उनकी पत्नी ही नहीं है उनके बच्चे क़ी माँ भी है. उनके बच्चों का भविष्य है, उनकी पहली पाठशाला हैं. उसे पुत्री, बहिन, मित्र, प्रेमिका , पत्नी आदि के पात्र निभाने के साथ साथ माँ भी समझना चाहिए.
        बंगाल में तो हर रिश्ते के साथ 'माँ' शब्द का जोड़ते हैं जेसे- भाभी माँ, पीसी माँ, माशी माँ, बेटी माँ, बहु माँ, ..ऐसे कितने ही उदहारण हैं जिसमे पति अपनी पत्नी को ही माँ बुलाते थे. भगवान् राम कृष्ण परमहंस अपनी पत्नी में माँ शारदा को देवी माँ , जगद जननी शारदा कहकर उन पर फूल पुष्प चढाते थे.
मराठी में कहावत भी है --- क्षण मात्रे पत्नी जीवन पर्यन्ते माँ. किसी भी नारी के लिए पत्नी का पात्र कुछ समय के लिए होताहै बाकि समय तो वह माँ क़ी ममता और करुना से ही ओतप्रोत होकर पति और परिवार क़ी सेवा करती है. इसलिए उसे क्षण मात्र की पत्नी और जीवन भर के लिए माँ भी कहा जाता है.
Source : http://shribhav.blogspot.in/2012/08/blog-post_11.html

Comments

इस प्रस्तुत आख्यान में, बड़े सटीक प्रहार |
पुरुष अहम् को लग रही, यथा उचित फटकार |
यथा उचित फटकार, फर्क कथनी करनी में |
भारत नारी श्रेष्ठ, नहीं ऐसी धरनी में |
पति पत्नी में प्यार, वर्ष चाहे हों तीखे |
बीस वर्ष के बाद, एक सा मुखड़ा दीखे ||

Popular posts from this blog

माँ बाप की अहमियत और फ़ज़ीलत

मदर्स डे पर विशेष भेंट  इस्लाम में हुक़ूक़ुल ऐबाद की फ़ज़ीलत व अहमियत इंसानी मुआशरे में सबसे ज़्यादा अहम रुक्न ख़ानदान है और ख़ानदान में सबसे ज़्यादा अहमियत वालदैन की है। वालदैन के बाद उनसे मुताल्लिक़ अइज़्जा वा अक़रबा के हुक़ूक़ का दर्जा आता है डाक्टर मोहम्मद उमर फ़ारूक़ क़ुरैशी 1 जून, 2012 (उर्दू से तर्जुमा- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम) दुनिया के हर मज़हब व मिल्लत की तालीमात का ये मंशा रहा है कि इसके मानने वाले अमन व सलामती के साथ रहें ताकि इंसानी तरक़्क़ी के वसाइल को सही सिम्त में रख कर इंसानों की फ़लाहो बहबूद का काम यकसूई के साथ किया जाय। इस्लाम ने तमाम इंसानों के लिए ऐसे हुक़ूक़ का ताय्युन किया है जिनका अदा करना आसान है लेकिन उनकी अदायगी में ईसार व कुर्बानी ज़रूरी है। ये बात एक तरह का तर्बीयती निज़ाम है जिस पर अमल कर के एक इंसान ना सिर्फ ख़ुद ख़ुश रह सकता है बल्कि दूसरों के लिए भी बाइसे राहत बन सकता है। हुक़ूक़ की दो इक़्साम हैं । हुक़ूक़ुल्लाह और हुक़ूक़ुल ऐबाद। इस्लाम ने जिस क़दर ज़ोर हुक़ूक़ुल ऐबाद पर दिया है इससे ये अमर वाज़ेह हो जाता है कि इन हुक़ूक़ का कितना बुलंद मुक़ाम है और उनकी अ

माँ तो माँ है...

कितना सुन्दर नाम है इस ब्लॉग का प्यारी माँ .हालाँकि प्यारी जोड़ने की कोई ज़रुरत ही नहीं है क्योंकि माँ शब्द में संसार का सारा प्यार भरा है.वह प्यार जिस के लिए संसार का हर प्राणी भूखा है .हर माँ की तरह मेरी माँ भी प्यार से भरी हैं,त्याग की मूर्ति हैं,हमारे लिए उन्होंने अपने सभी कार्य छोड़े और अपना सारा जीवन हमीं पर लगा दिया. शायद सभी माँ ऐसा करती हैं किन्तु शायद अपने प्यार के बदले में सम्मान को तरसती रह जाती हैं.हम अपने बारे में भी नहीं कह सकते कि हम अपनी माँ के प्यार,त्याग का कोई बदला चुका सकते है.शायद माँ बदला चाहती भी नहीं किन्तु ये तो हर माँ की इच्छा होती है कि उसके बच्चे उसे महत्व दें उसका सम्मान करें किन्तु अफ़सोस बच्चे अपनी आगे की सोचते हैं और अपना बचपन बिसार देते हैं.हर बच्चा बड़ा होकर अपने बच्चों को उतना ही या कहें खुद को मिले प्यार से कुछ ज्यादा ही देने की कोशिश करता है किन्तु भूल जाता है की उसका अपने माता-पिता की तरफ भी कोई फ़र्ज़ है.माँ का बच्चे के जीवन में सर्वाधिक महत्व है क्योंकि माँ की तो सारी ज़िन्दगी ही बच्चे के चारो ओर ही सिमटी होती है.माँ के लिए कितना भी हम करें वह माँ

माँ की ममता

ईरान में सात साल पहले एक लड़ाई में अब्‍दुल्‍ला का हत्यारा बलाल को सरेआम फांसी देने की तैयारी पूरी हो चुकी थी. इस दर्दनाक मंजर का गवाह बनने के लिए सैकड़ों का हुजूम जुट गया था. बलाल की आंखों पर पट्टी बांधी जा चुकी थी. गले में फांसी का फंदा भी  लग चुका था. अब, अब्‍दुल्‍ला के परिवार वालों को दोषी के पैर के नीचे से कुर्सी हटाने का इंतजार था. तभी, अब्‍दुल्‍ला की मां बलाल के करीब गई और उसे एक थप्‍पड़ मारा. इसके साथ ही उन्‍होंने यह भी ऐलान कर दिया कि उन्‍होंने बलाल को माफ कर दिया है. इतना सुनते ही बलाल के घरवालों की आंखों में आंसू आ गए. बलाल और अब्‍दुल्‍ला की मां भी एक साथ फूट-फूटकर रोने लगीं.