एसपी रावत।। कुरुक्षेत्र।। आज के युग में बेटे-बेटियां अपने बूढे मां बाप को सहारा देने से कतराते हैं, लेकिन एक ऐसी बेसहारा मां भी है जो अपने अपाहिज बेटे का पिछले 45 साल से लालन पालन करने में लगी है। मगर अब खुद उसे अपनी जिंदगी पर भरोसा नहीं रहा तो वह उसके लिए अपने से पहले मौत मांग रही है। इस मार्मिक मामले में एक पहलू यह भी है कि इतने वर्षों के अंतराल में रेडक्रॉस विभाग, किसी मंत्री, किसी सांसद, किसी विधायक, किसी अधिकारी तक ने इस मां बेटे की मदद नहीं की।
यमुनानगर जिला की रादौर उपतहसील के गांव सढूरा में 45 सालों से चारपाई पर जिंदगी बिता रहे एक अपाहिज बेटे को उसकी विधवा मां पाल रही है। अपाहिज बेटे को खाना खिलाने, नहलाने और शौच करवाने तक का कार्य करते हुए विधवा मां को 45 साल बीत चुके है। इस दौरान उसके बेटे का शिशुकाल, बचपन और जवानी चारपाई पर ही गुजरी है। अब विधवा मां 65 साल से अधिक की हो चुकी है। उसे लगता है कि उसके मरने के बाद उसके चारपाई पर पड़े अपाहिज बेटे को कौन सहारा देगा। इस बात को सोच कर एक विधवा मां अपनी मौत से पहले भगवान से अपने बेटे की मौत मांगने लगी है।
गांव सढूरा निवासी रचनी देवी की शादी गांव सढूरा निवासी रामजीलाल धीमान से हुई थी। शादी के 6 वर्ष बाद बड़ी मन्नतों से उसके घर बेटा पैदा हुआ। जो कि जन्म से ही अपाहिज था। इसके अलावा रचनी देवी ने दो बेटों और एक बेटी को जन्म दिया। उसका सबसे बड़ा बेटा सुनील कुमार बचपन से चलने फिरनें में लाचार था। यहां तक की सुनील कुमार बोलने में भी असमर्थ है। सुनील अब 45 वर्ष का हो चुका है। जिसकी जन्म से ही उसकी मां रचनी देवी सेवा करती आ रही है।
रचनी देवी ने बताया कि उसने अपने अपाहिज बेटे सुनील का लगभग दस वर्ष तक इलाज करवाया। लेकिन फिर भी कोई आराम नहीं हुआ। पैदा होने से आज तक वह चारपाई पर ही लेटा हुआ है। बैठ भी नहीं सकता। उसे खाना खिलाने और शौच करवाने का कार्य भी चारपाई पर ही करवाना पड़ता है। उसके पति रामजीलाल की 14 अगस्त 2009 को मौत हो चुकी है। लेकिन बेटे के अपाहिज होने के कारण उनके सारे अरमान धूमिल हो गए। अब उसके जीवन के साल कम बचे हैं। यदि उसके बेटे से पहले उसकी मौत हो गई तो उसके अपाहिज बेटे की देखभाल करने वाला कौन होगा ? यह सोचकर उसको चिंता सताने लगी है।
उसे विधवा पेंशन तथा उसके बेटे को विकलांग पेंशन मिलती है। जिससे दवाई से लेकर पेट की भूख तक गुजारा करते है। कई बार उन्हें देरी से पेंशन मिलने पर अपना गुजारा करने में और भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। रचनी देवी ने बताया कि वह अपने अपाहिज बेटे को अकेला छोड़कर कहीं नहीं जा सकती। उसके कहीं जाने से उसके बेटे की देखभाल भी अच्छी प्रकार से नहीं हो सकती। उसके परिवार में दो बेटों की बहुएं जब सुनील कुमार की देखभाल करने जाती हैं तो सुनील उनमें अपनापन महसूस नहीं करता। केवल मां ही जानती है कि उसे किस प्रकार खाना खिलाया जा सकता है। शायद देश में एक ही मामला ऐसा है जिसमें किसी शख्स ने जन्म से अपनी जिंदगी के 45 साल केवल चारपाई पर ही बिताए हों।
यमुनानगर जिला की रादौर उपतहसील के गांव सढूरा में 45 सालों से चारपाई पर जिंदगी बिता रहे एक अपाहिज बेटे को उसकी विधवा मां पाल रही है। अपाहिज बेटे को खाना खिलाने, नहलाने और शौच करवाने तक का कार्य करते हुए विधवा मां को 45 साल बीत चुके है। इस दौरान उसके बेटे का शिशुकाल, बचपन और जवानी चारपाई पर ही गुजरी है। अब विधवा मां 65 साल से अधिक की हो चुकी है। उसे लगता है कि उसके मरने के बाद उसके चारपाई पर पड़े अपाहिज बेटे को कौन सहारा देगा। इस बात को सोच कर एक विधवा मां अपनी मौत से पहले भगवान से अपने बेटे की मौत मांगने लगी है।
गांव सढूरा निवासी रचनी देवी की शादी गांव सढूरा निवासी रामजीलाल धीमान से हुई थी। शादी के 6 वर्ष बाद बड़ी मन्नतों से उसके घर बेटा पैदा हुआ। जो कि जन्म से ही अपाहिज था। इसके अलावा रचनी देवी ने दो बेटों और एक बेटी को जन्म दिया। उसका सबसे बड़ा बेटा सुनील कुमार बचपन से चलने फिरनें में लाचार था। यहां तक की सुनील कुमार बोलने में भी असमर्थ है। सुनील अब 45 वर्ष का हो चुका है। जिसकी जन्म से ही उसकी मां रचनी देवी सेवा करती आ रही है।
रचनी देवी ने बताया कि उसने अपने अपाहिज बेटे सुनील का लगभग दस वर्ष तक इलाज करवाया। लेकिन फिर भी कोई आराम नहीं हुआ। पैदा होने से आज तक वह चारपाई पर ही लेटा हुआ है। बैठ भी नहीं सकता। उसे खाना खिलाने और शौच करवाने का कार्य भी चारपाई पर ही करवाना पड़ता है। उसके पति रामजीलाल की 14 अगस्त 2009 को मौत हो चुकी है। लेकिन बेटे के अपाहिज होने के कारण उनके सारे अरमान धूमिल हो गए। अब उसके जीवन के साल कम बचे हैं। यदि उसके बेटे से पहले उसकी मौत हो गई तो उसके अपाहिज बेटे की देखभाल करने वाला कौन होगा ? यह सोचकर उसको चिंता सताने लगी है।
उसे विधवा पेंशन तथा उसके बेटे को विकलांग पेंशन मिलती है। जिससे दवाई से लेकर पेट की भूख तक गुजारा करते है। कई बार उन्हें देरी से पेंशन मिलने पर अपना गुजारा करने में और भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। रचनी देवी ने बताया कि वह अपने अपाहिज बेटे को अकेला छोड़कर कहीं नहीं जा सकती। उसके कहीं जाने से उसके बेटे की देखभाल भी अच्छी प्रकार से नहीं हो सकती। उसके परिवार में दो बेटों की बहुएं जब सुनील कुमार की देखभाल करने जाती हैं तो सुनील उनमें अपनापन महसूस नहीं करता। केवल मां ही जानती है कि उसे किस प्रकार खाना खिलाया जा सकता है। शायद देश में एक ही मामला ऐसा है जिसमें किसी शख्स ने जन्म से अपनी जिंदगी के 45 साल केवल चारपाई पर ही बिताए हों।
Source : http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/12368471.cms
Comments
आँख भर आई ..सोचकर भी डर लगता है...
उस माँ बाप पर क्या बीती होगी..