है सब नसीब की बातें खता किसी की नहीं
ये जि़दगी है बड़ी बेवफा किसी की नहीं।
तमाम जख्म जो अंदर तो चीखते हैं मगर
हमारे जिस्म से बाहर सदा किसी की नहीं।
वो होंठ सी के मेरे पूछता है चुप क्यों हो
किताबे-ज़ुर्म में ऐसी सज़ा किसी की नहीं।
बड़े-बड़े को उड़ा ले गई है तख्त केसाथ
चरा$ग सबके बुझेंगे हवा किसी की नहीं।
'नज़ीर सबकी दुआएं मिली बहुत लेकिन
हमारी मां की दुआ-सी दुआ किसी की नहीं।
ये जि़दगी है बड़ी बेवफा किसी की नहीं।
तमाम जख्म जो अंदर तो चीखते हैं मगर
हमारे जिस्म से बाहर सदा किसी की नहीं।
वो होंठ सी के मेरे पूछता है चुप क्यों हो
किताबे-ज़ुर्म में ऐसी सज़ा किसी की नहीं।
बड़े-बड़े को उड़ा ले गई है तख्त केसाथ
चरा$ग सबके बुझेंगे हवा किसी की नहीं।
'नज़ीर सबकी दुआएं मिली बहुत लेकिन
हमारी मां की दुआ-सी दुआ किसी की नहीं।
Comments
आशा
हमारी मां की दुआ-सी दुआ किसी की नहीं।..
माँ को समर्पित अति भावपूर्ण रचना....
शुभकामनायें !!