शिशु के जन्म के समय बेकार समझ कर फेंक दिए जाने वाले गर्भनाल के जरिए अब कैंसर, ज्यूकेमिया, थैलेसीमिया, शुगर और लीवर सिरोसिस जैसी 130 से अधिक लाइलाज बीमारियों का अचूक इलाज संभव हो गया है।
गर्भनाल के अमूल्य गुण के कारण अब हजारों रुपए खर्च करके शिशु के गर्भनाल को वर्षों तक सहेज कर रखा जाने लगा है ताकि भविष्य में न केवल उस बच्चे को बल्कि उसके सहोदर भाई-बहन, माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी या परिवार के अन्य सदस्यों को होने वाली लाइलाज बीमारियों के चंगुल से छुटकारा दिलाया जा सके।
इसके कारण हमारे देश में दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे बडे़ शहरों में गर्भनाल को सुरक्षित रखने वाले अनेक बैंकों को अर्विभाव हुआ है। इस प्रणाली को गर्भनाल स्टेम कोशिका बैंकिंग कहा जाता है। इन बैंकों में गर्भनाल में मौजूद स्टेम कोशिकाओं को वर्षों तक संरक्षित रखा जाता है।
भारत के प्रमुख गर्भनाल रक्त बैंक बेबीसेल में हर महीने देश भर से कम से कम सौ दम्पत्ति अपने बच्चों के गर्भनाल की स्टेम कोशिकाओं को संरक्षित करवाते हैं। इस बैंक के संचालक मुंबई स्थित रिजेनेरेटिव मेडिकल सर्विसेस 'आरएमएस' के प्रमुख वैज्ञानिक अधिकारी डा. सत्रुन सांघवी ने कहा कि हमारे देश में तेजी से गर्भनाल बैंकिंग के बढो़तरी होने का कारण स्टेम कोशिकाओं में गंभीर से गंभीर बीमारियों का कारगर इलाज करने की क्षमता है। इससे वैसी बीमारियों का भी इलाज किया जा सकता है जिनका पारंपरिक तरीके से इलाज नहीं किया जा सकता है। इस तकनीक ने लाखों लोगों में उम्मीद जगाई है कि वे अपनी संतान को रोगमुक्त जीवन दे सकते हैं।
भारत में ऐसे बैंकों की शुरुआत हुए अभी छह साल भी नहीं हुए हैं लेकिन लोगों में स्टेम कोशिका थैरेपी के प्रति जागरुकता बढ़ने के कारण हमारे यहां तेजी से ऐसे बैंक खुलने लगे हैं। यहां स्थित स्टेम सेल ग्लोबल फाउंडेशन 'एससीजीएफ' के अनुसार भारत में स्टेम कौशिका बैंकिंग का व्यवसाय करीब डेढ सौ करोड़ का हो चुका है और इसमें हर साल 35 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही है।
डा. सांघवी के अनुसार बच्चों के जन्म के बाद गर्भनाल को काटे जाने के बाद प्लासेंटा गर्भनाल के संरक्षण के लिए बैंकों के द्वारा अत्यधिक उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। गर्भनाल से रक्त को निकालने के बाद इस रक्त को बैंक में भेजा जाता है जहां इसे संसाधित किया जाता है और शून्य से 196 डिग्री सेल्सियस नीचे के तापमान पर तरल नाइट्रोजन में इसे फ्रीज करके संरक्षित रखा जाता है। इस प्रक्रिया से रक्त को 600 सालों तक सुरक्षित रूप से भंडारित किया जा सकता है।
गर्भनाल की स्टेम कोशिकाओं को नव प्रसव स्टेम कोशिकाओं के नाम से भी जाना जाता है। स्टेम कोशिकाएं मानव शरीर की मास्टर कोशिकाएं होती हैं जिनमें शरीर के 200 से अधिक प्रकार की कोशिकाओं में से हर कोशिका में विकसित होने की क्षमता होती है। स्टेम कोशिकाओं में जीवन भर विभाजन करने की विशिष्ट क्षमता होती है और मृत हो चुकी कोशिकाओं या क्षतिग्रस्त हो चुकी कोशिकाओं की जगह लेने की क्षमता होती है। इसलिए अब चिकित्सक अस्थि मज्जा जैसे परंपरागत स्रोत की तुलना में गर्भनाल रक्त से स्टेम कोशिकाओं को प्राप्त करने की तरजीह दे रहे हैं।
विश्व भर में स्टेम कोशिकाओं का इस्तेमाल 130 से अधिक बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है और अनुमान है कि स्टेम कोशिकाओं के इस्तेमाल से विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए 500 से अधिक क्लिनिकल परीक्षण किए जा रहे हैं। इस क्षेत्र में काम करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि अंधविश्वास और जागरुकता के अभाव के कारण अभी इस तरह की बैंकिंग का वांछित गति से विस्तार नहीं हो रहा है।
Source : http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/jeevenjizyasa/article1-story-50-51-190538.html
गर्भनाल के अमूल्य गुण के कारण अब हजारों रुपए खर्च करके शिशु के गर्भनाल को वर्षों तक सहेज कर रखा जाने लगा है ताकि भविष्य में न केवल उस बच्चे को बल्कि उसके सहोदर भाई-बहन, माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी या परिवार के अन्य सदस्यों को होने वाली लाइलाज बीमारियों के चंगुल से छुटकारा दिलाया जा सके।
इसके कारण हमारे देश में दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे बडे़ शहरों में गर्भनाल को सुरक्षित रखने वाले अनेक बैंकों को अर्विभाव हुआ है। इस प्रणाली को गर्भनाल स्टेम कोशिका बैंकिंग कहा जाता है। इन बैंकों में गर्भनाल में मौजूद स्टेम कोशिकाओं को वर्षों तक संरक्षित रखा जाता है।
भारत के प्रमुख गर्भनाल रक्त बैंक बेबीसेल में हर महीने देश भर से कम से कम सौ दम्पत्ति अपने बच्चों के गर्भनाल की स्टेम कोशिकाओं को संरक्षित करवाते हैं। इस बैंक के संचालक मुंबई स्थित रिजेनेरेटिव मेडिकल सर्विसेस 'आरएमएस' के प्रमुख वैज्ञानिक अधिकारी डा. सत्रुन सांघवी ने कहा कि हमारे देश में तेजी से गर्भनाल बैंकिंग के बढो़तरी होने का कारण स्टेम कोशिकाओं में गंभीर से गंभीर बीमारियों का कारगर इलाज करने की क्षमता है। इससे वैसी बीमारियों का भी इलाज किया जा सकता है जिनका पारंपरिक तरीके से इलाज नहीं किया जा सकता है। इस तकनीक ने लाखों लोगों में उम्मीद जगाई है कि वे अपनी संतान को रोगमुक्त जीवन दे सकते हैं।
भारत में ऐसे बैंकों की शुरुआत हुए अभी छह साल भी नहीं हुए हैं लेकिन लोगों में स्टेम कोशिका थैरेपी के प्रति जागरुकता बढ़ने के कारण हमारे यहां तेजी से ऐसे बैंक खुलने लगे हैं। यहां स्थित स्टेम सेल ग्लोबल फाउंडेशन 'एससीजीएफ' के अनुसार भारत में स्टेम कौशिका बैंकिंग का व्यवसाय करीब डेढ सौ करोड़ का हो चुका है और इसमें हर साल 35 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही है।
डा. सांघवी के अनुसार बच्चों के जन्म के बाद गर्भनाल को काटे जाने के बाद प्लासेंटा गर्भनाल के संरक्षण के लिए बैंकों के द्वारा अत्यधिक उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। गर्भनाल से रक्त को निकालने के बाद इस रक्त को बैंक में भेजा जाता है जहां इसे संसाधित किया जाता है और शून्य से 196 डिग्री सेल्सियस नीचे के तापमान पर तरल नाइट्रोजन में इसे फ्रीज करके संरक्षित रखा जाता है। इस प्रक्रिया से रक्त को 600 सालों तक सुरक्षित रूप से भंडारित किया जा सकता है।
गर्भनाल की स्टेम कोशिकाओं को नव प्रसव स्टेम कोशिकाओं के नाम से भी जाना जाता है। स्टेम कोशिकाएं मानव शरीर की मास्टर कोशिकाएं होती हैं जिनमें शरीर के 200 से अधिक प्रकार की कोशिकाओं में से हर कोशिका में विकसित होने की क्षमता होती है। स्टेम कोशिकाओं में जीवन भर विभाजन करने की विशिष्ट क्षमता होती है और मृत हो चुकी कोशिकाओं या क्षतिग्रस्त हो चुकी कोशिकाओं की जगह लेने की क्षमता होती है। इसलिए अब चिकित्सक अस्थि मज्जा जैसे परंपरागत स्रोत की तुलना में गर्भनाल रक्त से स्टेम कोशिकाओं को प्राप्त करने की तरजीह दे रहे हैं।
विश्व भर में स्टेम कोशिकाओं का इस्तेमाल 130 से अधिक बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है और अनुमान है कि स्टेम कोशिकाओं के इस्तेमाल से विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए 500 से अधिक क्लिनिकल परीक्षण किए जा रहे हैं। इस क्षेत्र में काम करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि अंधविश्वास और जागरुकता के अभाव के कारण अभी इस तरह की बैंकिंग का वांछित गति से विस्तार नहीं हो रहा है।
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