Skip to main content

माँ

vidya ji has posted this post on her blog ''LOVE EVERYBODY ''.her blog's URL is -''http://sarapyar.blogspot.com''

माँ

माँ शब्द दिल से कहते ही मानों हमारा सारे दुःख दूर हो जाते है |
मानों हमें दुनिया का सुख मिल जाता है !"माँ " हमें सबसे जयादा
प्यार करती है ||
माँ घर मे सबसे पहले उठती है /सबके लिय खाना आदि बनाती है /
सबके जरुरत का ध्यान रखती है/समय समय पर सब का काम करती है
माँ प्यार , दया और ममता की मूर्ति है ! माँ कभी अपने कर्तब्यो
से मुह नाहे मोड़ती |वह घर मे सबको मिलकर रहना है |बच्चो के सुख
को ही अपना सुख मानतीहै |वह कभी किसी से गुस्सा नही करती |
कोई गलत बात बोले तो भी चुप हीरहती है |फिर भी उसका भला हीचाहती है|
हमने भगवान को नही देखा |पर हम अपनी माँ में ही भगवान को देखसकते ह''
shikha kaushik

Comments

Shalini kaushik said…
vidhya ji ki ye post yahin ke liye mahtavapoorn hai aur shikha ji aapne ise yahan lakar bahut sundar karya kiya hai.vidhya ji bahut achchha likha hai aapne maa par .aapko bahut bahut badhai.
रेखा said…
माँ को समर्पित ऐसी अनोखी रचना को पढवाने के लिए धन्यवाद
ma sab jagah par bhali

yaha bhi ma

meri ma
DR. ANWER JAMAL said…
@ शिखा जी ! आपने मां का जो चित्रण किया है। पहले अक्सर घरों में ऐसी ही मांएं हुआ करती थीं। आप और हम ख़ुशनसीब हैं कि हमें ऐसी ही मांएं मिलीं लेकिन आजकल बहुत मांएं अपनी कोख भी किराए पर दे रही हैं और अपने करिअर की ख़ातिर ‘डायन‘ तक बन चुकी हैं।
देखिए मेरा एक लेख
डायना बनने की चाह में औरतें बन गईं डायन Vampire
Anwar ji -this is not my post .this is actually VIDHYA ji 's post .i have posted this here .on the other hand your view is 50% right not 100%.
upendra shukla said…
bahut bahut dhanyawaad
jo aapne hame itni acchi lekhni padne ko di
"samrt bundelkhand"
#vpsinghrajput said…
बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति.

Popular posts from this blog

माँ बाप की अहमियत और फ़ज़ीलत

मदर्स डे पर विशेष भेंट  इस्लाम में हुक़ूक़ुल ऐबाद की फ़ज़ीलत व अहमियत इंसानी मुआशरे में सबसे ज़्यादा अहम रुक्न ख़ानदान है और ख़ानदान में सबसे ज़्यादा अहमियत वालदैन की है। वालदैन के बाद उनसे मुताल्लिक़ अइज़्जा वा अक़रबा के हुक़ूक़ का दर्जा आता है डाक्टर मोहम्मद उमर फ़ारूक़ क़ुरैशी 1 जून, 2012 (उर्दू से तर्जुमा- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम) दुनिया के हर मज़हब व मिल्लत की तालीमात का ये मंशा रहा है कि इसके मानने वाले अमन व सलामती के साथ रहें ताकि इंसानी तरक़्क़ी के वसाइल को सही सिम्त में रख कर इंसानों की फ़लाहो बहबूद का काम यकसूई के साथ किया जाय। इस्लाम ने तमाम इंसानों के लिए ऐसे हुक़ूक़ का ताय्युन किया है जिनका अदा करना आसान है लेकिन उनकी अदायगी में ईसार व कुर्बानी ज़रूरी है। ये बात एक तरह का तर्बीयती निज़ाम है जिस पर अमल कर के एक इंसान ना सिर्फ ख़ुद ख़ुश रह सकता है बल्कि दूसरों के लिए भी बाइसे राहत बन सकता है। हुक़ूक़ की दो इक़्साम हैं । हुक़ूक़ुल्लाह और हुक़ूक़ुल ऐबाद। इस्लाम ने जिस क़दर ज़ोर हुक़ूक़ुल ऐबाद पर दिया है इससे ये अमर वाज़ेह हो जाता है कि इन हुक़ूक़ का कितना बुलंद मुक़ाम है और उनकी अ

माँ तो माँ है...

कितना सुन्दर नाम है इस ब्लॉग का प्यारी माँ .हालाँकि प्यारी जोड़ने की कोई ज़रुरत ही नहीं है क्योंकि माँ शब्द में संसार का सारा प्यार भरा है.वह प्यार जिस के लिए संसार का हर प्राणी भूखा है .हर माँ की तरह मेरी माँ भी प्यार से भरी हैं,त्याग की मूर्ति हैं,हमारे लिए उन्होंने अपने सभी कार्य छोड़े और अपना सारा जीवन हमीं पर लगा दिया. शायद सभी माँ ऐसा करती हैं किन्तु शायद अपने प्यार के बदले में सम्मान को तरसती रह जाती हैं.हम अपने बारे में भी नहीं कह सकते कि हम अपनी माँ के प्यार,त्याग का कोई बदला चुका सकते है.शायद माँ बदला चाहती भी नहीं किन्तु ये तो हर माँ की इच्छा होती है कि उसके बच्चे उसे महत्व दें उसका सम्मान करें किन्तु अफ़सोस बच्चे अपनी आगे की सोचते हैं और अपना बचपन बिसार देते हैं.हर बच्चा बड़ा होकर अपने बच्चों को उतना ही या कहें खुद को मिले प्यार से कुछ ज्यादा ही देने की कोशिश करता है किन्तु भूल जाता है की उसका अपने माता-पिता की तरफ भी कोई फ़र्ज़ है.माँ का बच्चे के जीवन में सर्वाधिक महत्व है क्योंकि माँ की तो सारी ज़िन्दगी ही बच्चे के चारो ओर ही सिमटी होती है.माँ के लिए कितना भी हम करें वह माँ

माँ की ममता

ईरान में सात साल पहले एक लड़ाई में अब्‍दुल्‍ला का हत्यारा बलाल को सरेआम फांसी देने की तैयारी पूरी हो चुकी थी. इस दर्दनाक मंजर का गवाह बनने के लिए सैकड़ों का हुजूम जुट गया था. बलाल की आंखों पर पट्टी बांधी जा चुकी थी. गले में फांसी का फंदा भी  लग चुका था. अब, अब्‍दुल्‍ला के परिवार वालों को दोषी के पैर के नीचे से कुर्सी हटाने का इंतजार था. तभी, अब्‍दुल्‍ला की मां बलाल के करीब गई और उसे एक थप्‍पड़ मारा. इसके साथ ही उन्‍होंने यह भी ऐलान कर दिया कि उन्‍होंने बलाल को माफ कर दिया है. इतना सुनते ही बलाल के घरवालों की आंखों में आंसू आ गए. बलाल और अब्‍दुल्‍ला की मां भी एक साथ फूट-फूटकर रोने लगीं.