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समाज का डर


समाज का डर

Manish Khedawat said…
jindagi ki sachhai ko bakhoobi bayan kiya hai aapne !
Bahut sunder rachna ! badhai !
___________________________________
...दिल में कसक आज़ भी हैं ||
करते रहो प्रहार,
बात बन जायगी जरुर |
आज हम समझे हैं-
कल दुनिया भी समझ जाएगी जरुर ||
तलवार से भी तेज धार वाली ये कलम
चलाते जाओ---
मंजिल आएगी जरुर ||
DR. ANWER JAMAL said…
समाज का डर अच्छा है अगर समाज अच्छा हो क्योंकि अच्छा समाज बुरी बातों से रोकता है जबकि बुरा समाज डराता है अच्छे लोगों को । भटके हुए लोगों के बीमार समाज से डरना बेकार है ।

सहमत ।
Shalini kaushik said…
समाज का डर अच्छा है अगर समाज अच्छा हो क्योंकि अच्छा समाज बुरी बातों से रोकता है जबकि बुरा समाज डराता है अच्छे लोगों को । भटके हुए लोगों के बीमार समाज से डरना बेकार है ।
anwar jamal ji ki ye tippani aapki hi nahi sabhi blogs ki post ke liye mahtvapoorn hai.
nice post.

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मदर्स डे पर विशेष भेंट  इस्लाम में हुक़ूक़ुल ऐबाद की फ़ज़ीलत व अहमियत इंसानी मुआशरे में सबसे ज़्यादा अहम रुक्न ख़ानदान है और ख़ानदान में सबसे ज़्यादा अहमियत वालदैन की है। वालदैन के बाद उनसे मुताल्लिक़ अइज़्जा वा अक़रबा के हुक़ूक़ का दर्जा आता है डाक्टर मोहम्मद उमर फ़ारूक़ क़ुरैशी 1 जून, 2012 (उर्दू से तर्जुमा- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम) दुनिया के हर मज़हब व मिल्लत की तालीमात का ये मंशा रहा है कि इसके मानने वाले अमन व सलामती के साथ रहें ताकि इंसानी तरक़्क़ी के वसाइल को सही सिम्त में रख कर इंसानों की फ़लाहो बहबूद का काम यकसूई के साथ किया जाय। इस्लाम ने तमाम इंसानों के लिए ऐसे हुक़ूक़ का ताय्युन किया है जिनका अदा करना आसान है लेकिन उनकी अदायगी में ईसार व कुर्बानी ज़रूरी है। ये बात एक तरह का तर्बीयती निज़ाम है जिस पर अमल कर के एक इंसान ना सिर्फ ख़ुद ख़ुश रह सकता है बल्कि दूसरों के लिए भी बाइसे राहत बन सकता है। हुक़ूक़ की दो इक़्साम हैं । हुक़ूक़ुल्लाह और हुक़ूक़ुल ऐबाद। इस्लाम ने जिस क़दर ज़ोर हुक़ूक़ुल ऐबाद पर दिया है इससे ये अमर वाज़ेह हो जाता है कि इन हुक़ूक़ का कितना बुलंद मुक़ाम है और उनकी अ

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