माँ ... कितना एहसास है इसमें ,
नाम से ही सिरहन हो जाती है |
कैसे भूले हम उस माँ को
जिसने हमें बनाया है |
अपना लहू पिला - पिला कर ...
ये मानुष तन दिलवाया है |
उसके प्यारे से स्पंदन ने
हमको जीना सिखलाया है |
धुप - छाँव के एहसासों से
हमको अवगत करवाया है |
हम थककर जब रुक जाते हैं |
वो बढकर राह दिखाती है |
दुनियां के सारे रिश्तों से
हमको परिचित करवाती है |
जब कोई साथ न रहता है |
वो साया बन साथ निभाती है |
खुद सारे दुख अपने संग ले जाकर
हमें सुखी कर जाती है |
बच्चों की खातिर वो...
दुर्गा - काली भी बन जाती है |
दुर्गा - काली भी बन जाती है |
बच्चों के चेहरे में ख़ुशी देख ,
अपना जीवन सफल बनाती है |
उसके जैसा रिश्ता अब तक
दुनियां में न बन पाया है |
कितना भी कोई जतन करले
उसके एहसानों से उपर न उठ पाया है |
ऊपर वाले ने भी सोच - समझ कर
हमको प्यारी माँ का उपहार दिलाया है |
Comments
दुनियां में न बन पाया है |
sach kaha .