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मां के गर्भ में बच्चियों का क़त्ल शिक्षित घरानों में कहीं ज़्यादा


पानीपत (एसएनबी)। जनगणन 2011 ने साबित कर दिया है कि लड़कियों के प्रति हमारा समाज कितना बेरहम है ? तक़रीबन 110 बरस पहले 1901 की जनगणना में भारतीय समाज में लड़कियों जो तादाद थी। उससे बेहतर अभी भी नहीं हुई है। साईंस और तकनीक की तरक्क़ी ने बेरहम मां-बाप के हौसलों को इतना बढ़ा दिया है कि अब वे अपनी बच्चियों को दुनिया में आने से पहले ही मां के पेट में क़त्ल कर देते हैं।
ये बातें हाली पानीपती ट्रस्ट के सेक्रेटरी एडवोकेट राम मोहन राय ने पानीपत में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि मां के गर्भ में बच्चियों का क़त्ल शिक्षित घरानों में हो रहा है। उन्होंने मेवात की मिसाल देते हुए कहा कि दक्षिणी हरियाणा के इस मुस्लिम बहुल ज़िले में स्त्री-पुरूष के अनुपात में बहुत कम अंतर पाया गया है। इससे साबित होता कि इस पिछड़े ज़िले के लोग बच्चियों का क़त्ल नहीं करते। उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों और शेड्यूल्ड कास्ट्स में बच्चियों को मां के गर्भ में मारने का रिवाज नहीं है। ऐसा सिर्फ़ आधुनिकता के प्रभाव में जीने वाले बहुसंख्यक समाज में हो रहा है। उन्होंने संवाददाताओं ने को जानकारी देते हुए बताया कि 25 अप्रैल को शहर के विभिन्न संगठन संयुक्त रूप से राष्ट्रीय बेटी बचाओ सम्मेलन करने जा रहे हैं। इस सम्मेलन का उद्घाटन 10 बजे होटल वेस्ट में होगा। कार्यक्रम के अतिथि कांग्रेस के नेशनल जनरल सेक्रेटरी चैधरी बीरेन्द्र सिंह, नेशनल प्लानिंग कमीशन की मेंबर और मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी हैदराबाद की चांसलर डाक्टर सईदा रहमान, भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री राधाकृष्ण मालवीय और मुख्य वक्ता राष्ट्रीय महिला आयोग की भूतपूर्व चेयरमैन डाक्टर गिरिजा व्यास होंगी। जबकि इस कार्यक्रम के सभापति नगर मेंबर असेंबली बलबीर पाल शाह करेंगे।
उन्होंने बताया कि दोपहर बाद 3 बजे श्री कृष्ण क्रिया मंदिर में एक धार्मिक चर्चा का आयोजन भी किया जाएगा। इस चर्चा में हिन्दू मत की तरफ़ से स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज , स्वामी आर्यवेश , सिख मत की तरफ़ से सरदार ओम आचार सिंह, ईसाई मत की तरफ़ से फ़ादर राजीव और इस्लाम की तरफ़ से मुफ़्ती मुहम्मद शराफ़त प्रवचन करेंगे। शाम 8 बजे होटल वेस्ट में मुशायरा भी आयोजित किया जाएगा। जिसमें स्थानीय और बाहरी शायर अपना अपना कलाम  सुनाएंगे।
राष्ट्रीय सहारा उर्दू दिनांक 25 अप्रैल 2011 पृष्ठ 8
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1. सन् 1901 में भी लड़कियों का हाल बदतर था और आज भी है जबकि उस समय शिक्षा का प्रसार इतना नहीं था और न ही तब लोग आज की तरह आधुनिक थे।
2. आधुनिक तकनीक ने लड़कियों को मां के गर्भ में ही मारने की सुविधा आम कर दी है और इसका लाभ पैसे वाले लोग उठा रहे हैं जो कि शिक्षित भी होते हैं और बहुसंख्यक भी।
3. वह कौन सी सोच है, वे कौन कौन सी परंपराएं हैं जिनके दबाव में एक मां को भी अपनी बेटी के क़त्ल में शरीक होना पड़ता है ?
4. जब तक उस सोच को नहीं बदला जाएगा, तब तक हालात भी नहीं बदलेंगे। इसलिए हमें उस सोच का और उन बुरी परंपराओं का खुलासा करना निहायत ज़रूरी है।
५- और यह सोचना भी ज़रूरी है कि आखिर क्या फायदा है ऐसी शिक्षा का जो माँ बाप को उसकी औलाद के क़त्ल से भी न रोक सके ?

Comments

Sunil Kumar said…
एक जरुरी पोस्ट हमारी ऑंखें खोलने में सक्षम आभार
Rajeev Bharol said…
जो लोग ये हत्याएं कर रहे हैं वे महा पाप कर रहे हैं...बहुत ही शर्मनाक है की खुद को पढ़ा लिखा कहलाने वाले लोगों की सोच इतनी संकीर्ण है.
हर प्रकार का आतंकवाद शिक्षितों में ही ज्यादा पाया जाता है ...कभी कभी लगता है यह किस प्रकार की शिक्षा मिल रही है समाजों को !

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