मां को कुछ उलझन है,
मेरे आने से
पर वह कहती नहीं जमाने से
कभी-कभी भर लाती
आंखों में आंसू
कहती मुझसे मन ही मन
यह सच है
तू मेरा अंश है
पर बेटी
यह सब कहते
तुझसे चलेगा नहीं
मेरा वंश
तेरा अंत करना चाहते हैं
जन्म के पहले
मिटा कर
तुझे नहीं
खत्म करना चाहते हैं
खुद मेरा वजूद
बता मैं कैसे
सहयोग करूं
इनका नन्हीं बता न
आज मैं भी शपथ लेती हूं
तुझे जन्म दूंगी
या अपने आपको
मिटा दूंगी
मैं सोचती
मां की यह उलझन
खत्म हो पाएगी कब
मैं खत्म हो जाऊंगी
या
मां नहीं रहेगी तब
दुनिया ये कब समझ पाएगी ।
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यदि अल्लाह तुम्हारी मदद करेगा तो कोई तुम से जीत नहीं सकता और यदि वह तुम्हारी मदद न करे तो फिर ऐसा कौन है जो उसके बाद तुम्हारी मदद कर सके ? और आस्थावान लोगों को तो अल्लाह पर ही भरोसा करना चाहिए। -कुरआन, 3, 160
http://quranse.blogspot.com/2011/04/secret-of-victory.html