रात की अलस उनींदी आँखों में
एक स्वप्न सा चुभ गया है ,
कहीं कोई बेहद नर्म बेहद नाज़ुक ख़याल
चीख कर रोया होगा ।
सुबह के निष्कलुष ज्योतिर्मय आलोक में
अचानक कालिमा घिर आयी है ,
कहीं कोई चहचहाता कुलाँचे भरता मन
सहम कर अवसाद के अँधेरे में घिर गया होगा ।
दिन के प्रखर प्रकाश को परास्त कर
मटियाली धूसर आँधी घिर आई है ,
कहीं किसी उत्साह से छलछलाते हृदय पर
कुण्ठा और हताशा का क़हर बरपा होगा ।
शिथिल शाम की अवश छलकती आँखों में
आँसू का सैलाब उमड़ता जाता है ,
कहीं किसी बेहाल भटकते बालक को
माँ के आँचल की छाँव अवश्य मिली होगी ।
साधना वैद
एक स्वप्न सा चुभ गया है ,
कहीं कोई बेहद नर्म बेहद नाज़ुक ख़याल
चीख कर रोया होगा ।
सुबह के निष्कलुष ज्योतिर्मय आलोक में
अचानक कालिमा घिर आयी है ,
कहीं कोई चहचहाता कुलाँचे भरता मन
सहम कर अवसाद के अँधेरे में घिर गया होगा ।
दिन के प्रखर प्रकाश को परास्त कर
मटियाली धूसर आँधी घिर आई है ,
कहीं किसी उत्साह से छलछलाते हृदय पर
कुण्ठा और हताशा का क़हर बरपा होगा ।
शिथिल शाम की अवश छलकती आँखों में
आँसू का सैलाब उमड़ता जाता है ,
कहीं किसी बेहाल भटकते बालक को
माँ के आँचल की छाँव अवश्य मिली होगी ।
साधना वैद
Comments
माँ के आँचल की छाँव अवश्य मिली होगी ।
काश कि कोई भी मां के आंचल की छांव से महरूम न हो.....
बहुत सुंदर रचना....
दुनिया की रस्मों से अनजान
मैं हूँ पागल , मैं हूँ नादान .
बंदिशें इस कद्र भारी पड़ी
दिल में दफन हो गए सब अरमान.
कर्जदार हूँ , बकाया हैं मुझ पर
कुछ इसके , कुछ उसके अहसान .