Skip to main content

बेसहारा होते मां-बाप

‘‘दुनिया से मिली न वफाएं तो क्या गम था,
हसरतें रही अधूरी तो क्या गम था,
रूसवाईयां तो तब हुई जब अपनों ने ही ठुकरा दिया,
वरना कभी हम भी खुशनसीब थे,
हमें भी क्या गम था।’’
आंखों में आंसू, चेहरे में बेबसी लिये कुछ यूं ही अपने दिल का दर्द बयां कर रहे हैं आज के बुजुर्ग। जिन्हें वक्त की मार ने तो कम बल्कि अपनों के तिरस्कार ने ज़्यादा रूलाया है। ये बूढ़े मां-बाप जिन्होंने कभी अपने बच्चों में बुढ़ापे की लाठी तलाशी थी, आज इन्हीं बच्चों ने उन्हें दर-दर की ठोकरें खाने के लिए बेसहारा छोड़ दिया है।
वैसे कहते है माता-पिता का दर्जा भगवान से भी बढ़कर होता हैं। शायद तभी किसी ने कहा भी है,‘‘धरती पर रहने वाले भगवान यानि माता-पिता को खुश कर लिया तो स्वर्ग में बैठे भगवान अपने आप ही खुश हो जायेंगे।’’ जब माता-पिता ईश्वर से भी बढ़कर है फिर क्यों हमें ऐसे असहाय बुजुर्ग देखने को मिलते हैं जिन्हें उनके बच्चों ने ही धुतकार दिया? क्या इन बच्चों को याद नहीं जब वो छोटे थे तो किसने उन्हें उंगली पकड़कर चलना सिखाया था? और किसने उनके मुंह में निवाला डाला था? हां ये वहीं मां-बाप है जिन्होंने तुम्हारी खुशियों के लिए अपने गम को भुला दिया। तुम्हारी एक मुस्कुराहट के लिए अपना सारा दर्द छिपा लिया। तुम्हारी ख्वाहिषें अधूरी न रह जायें, उन्होंने अपनी हसरतों का गला घोंट दिया। महज़ इस उम्मींद में के जब वो बूढ़े होंगे तब तुम उनका सहारा बनोगे।
याद है बचपन में तुम जब मेले में खिलौना लेने की जिद करते थे और बाबू जी अपनी शर्ट के जेब में हाथ डाल कर देखते थे कि अरे, इसमें तो सिर्फ बीस का नोट पड़ा हुआ हैं। और इसी रूपये से उन्हें घर के लिए सब्जी भी ले जानी है। मगर तुम्हारी उस छोटी सी जिद को पूरा करने के लिए उन्होंने अपनी जरूरतों से समझौता कर लिया और तुम्हें वो खिलौना खरीद कर दे दिया। पता है उस वक्त तुम्हारी उस मीठी-सी मुस्कान को देख बाबू जी अपने सारे दुख भूल गये थे। लेकिन आज तुम जब महीने में दस हजार रूपये कमा रहे हो फिर भी क्या तुम्हारे लिए बाबू जी का एक टूटा चश्मा बनवाना इतना मंहगा हो गया? क्या उनका ये चश्मा तुम्हारे उस खिलौने से ज़्यादा कीमती है? हाय रे ये ज़ालिम दुनिया, जिसमें पैसों की खातिर एक बेटे ने अपने पिता के अरमानों को रौंद दिया।
ये तो दुर्दशा उस पिता की थी जिसकी भावनाओं के सामने उनके बेटे का अड़ियल रव्वैया भारी पड़ गया। मगर उस मां की ऐसी दशा सुनने से तो आपका कलेजा ही छलनी हो जायेगा। वही मां जिसने निस्वार्थ भाव से तेरी देखभाल की। रात-रात जाग कर तुझे सुलाया। खुद भूखी रह कर तुझे खिलाया। तेरी आंखों में आंसू न हो इसलिए तुझे हंसाया। लेकिन उस मां को क्या पता था कि जिस कलेजे के टुकड़े को वो अपनी जान से भी ज़्यादा चाहती हैं आज वही उसे यूं बेसहारा छोड़ देगा। उस मां को छोड़ देगा जिसने न जाने तेरी कितनी फरमाईषों को पलक झपकते पूरा किया होगा। आज उस मां ने बुढ़ापे की दहलीज़ पर कदम क्या रखा वो तेरे लिए बोझ बन गयी? क्या अब वो तेरे लिए एक बेकार की कोने में पड़ी रहने वाली चीज़ हो गयी है? माना आज तेरा अपना रूतबा है, शान-शौकत है, मगर ये तुझे मिली कैसे? इन्हीं मां-बाप के आशीर्वाद से। उनके त्याग से। ये आज भी तेरे माता-पिता है और तू उनकी आंखों का तारा। समय के साथ उनका प्यार तेरे लिए कभी कम नहीं हुआ है। लेकिन वक्त के साथ शायद तू बहुत बदल गया हैं। अपनी झूठी इज्ज़त के सामने आज तुझे अपने माता-पिता बोझ लगने लगे हैं जिसे तू अब और नहीं ढ़ोना चाहता। इसलिए तूने उन्हें वृृद्धाश्रम में रहने को मजबूर कर दिया न?
ये वाक्या महज़ कुछ बुजुर्गों का नहीं हैं बल्कि आजकल ऐसे बूढ़े मां-बाप की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है जिन्हें उनके बच्चों ने ही घर से बाहर निकाल दिया। शायद आज इन बच्चों के लिए माता-पिता की भावनाओं से ज़्यादा उनका रूतबा प्यारा हैं।
शुक्रिया के साथ, मुआशरे में सही रुझान को बढ़ावा देने के लिए  

Comments

"आजकल ऐसे बूढ़े मां-बाप की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है जिन्हें उनके बच्चों ने ही घर से बाहर निकाल दिया। शायद आज इन बच्चों के लिए माता-पिता की भावनाओं से ज़्यादा उनका रूतबा प्यारा हैं।"

आपने ठीक फरमाया जनाब !आज इनकी संख्या में रोज बढोतरी होती जा रही है --बड़े शहरों में ये तादाद कुछ ज्यादा ही है --
क्यों नही समझते की कल जिन्होंने हमे हाथ पकड़कर चलना सिखाया --आज उन्हीको हम बेसहारा छोड़ रहे है --ऐसे मामले ज्यादातर लड़के की शादी के बाद ही सामने आते है --क्यों एक लड़की अपना घर छोड़ कर जब दुसरे घर में आती है तो पति के साथ -साथ उसके माँ -बाप को अपना नही पाती --जहां यह समस्या नही होती ,वहाँ सारा परिवार हंसी ख़ुशी से रहता है --

हम माँ की यह नैतिक जुमेदारी है की वो अपनी बेटी को यह संस्कार दे की आज से वो घर तेरा है और आज से वही तेरे माता -पिता है --
हो सकता है की इस कारण इस समस्या का हल मिल जाए --ताकि कोई बुजुर्ग फिर अपने घर से यु निष्कासित न हो --
एक सार्थक पोस्ट के लिए धन्यवाद सर !
KRATI AARAMBH said…
कड़वा पर सच |
DR. ANWER JAMAL said…
@ Krati ji ! Thanks for your comming.
आपके ब्लॉग का लिंक 'मुशायरा' पर लगाया गया .
आप चाहें तो आप भी इसमें शामिल हो सकती हैं .
http://mushayera.blogspot.com/
DR. ANWER JAMAL said…
बहुत अफसोसनाक हालात हैं .
http://pyarimaan.blogspot.com/2011/04/226.html

Popular posts from this blog

माँ बाप की अहमियत और फ़ज़ीलत

मदर्स डे पर विशेष भेंट  इस्लाम में हुक़ूक़ुल ऐबाद की फ़ज़ीलत व अहमियत इंसानी मुआशरे में सबसे ज़्यादा अहम रुक्न ख़ानदान है और ख़ानदान में सबसे ज़्यादा अहमियत वालदैन की है। वालदैन के बाद उनसे मुताल्लिक़ अइज़्जा वा अक़रबा के हुक़ूक़ का दर्जा आता है डाक्टर मोहम्मद उमर फ़ारूक़ क़ुरैशी 1 जून, 2012 (उर्दू से तर्जुमा- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम) दुनिया के हर मज़हब व मिल्लत की तालीमात का ये मंशा रहा है कि इसके मानने वाले अमन व सलामती के साथ रहें ताकि इंसानी तरक़्क़ी के वसाइल को सही सिम्त में रख कर इंसानों की फ़लाहो बहबूद का काम यकसूई के साथ किया जाय। इस्लाम ने तमाम इंसानों के लिए ऐसे हुक़ूक़ का ताय्युन किया है जिनका अदा करना आसान है लेकिन उनकी अदायगी में ईसार व कुर्बानी ज़रूरी है। ये बात एक तरह का तर्बीयती निज़ाम है जिस पर अमल कर के एक इंसान ना सिर्फ ख़ुद ख़ुश रह सकता है बल्कि दूसरों के लिए भी बाइसे राहत बन सकता है। हुक़ूक़ की दो इक़्साम हैं । हुक़ूक़ुल्लाह और हुक़ूक़ुल ऐबाद। इस्लाम ने जिस क़दर ज़ोर हुक़ूक़ुल ऐबाद पर दिया है इससे ये अमर वाज़ेह हो जाता है कि इन हुक़ूक़ का कितना बुलंद मुक़ाम है और उन...

माँ तो माँ है...

कितना सुन्दर नाम है इस ब्लॉग का प्यारी माँ .हालाँकि प्यारी जोड़ने की कोई ज़रुरत ही नहीं है क्योंकि माँ शब्द में संसार का सारा प्यार भरा है.वह प्यार जिस के लिए संसार का हर प्राणी भूखा है .हर माँ की तरह मेरी माँ भी प्यार से भरी हैं,त्याग की मूर्ति हैं,हमारे लिए उन्होंने अपने सभी कार्य छोड़े और अपना सारा जीवन हमीं पर लगा दिया. शायद सभी माँ ऐसा करती हैं किन्तु शायद अपने प्यार के बदले में सम्मान को तरसती रह जाती हैं.हम अपने बारे में भी नहीं कह सकते कि हम अपनी माँ के प्यार,त्याग का कोई बदला चुका सकते है.शायद माँ बदला चाहती भी नहीं किन्तु ये तो हर माँ की इच्छा होती है कि उसके बच्चे उसे महत्व दें उसका सम्मान करें किन्तु अफ़सोस बच्चे अपनी आगे की सोचते हैं और अपना बचपन बिसार देते हैं.हर बच्चा बड़ा होकर अपने बच्चों को उतना ही या कहें खुद को मिले प्यार से कुछ ज्यादा ही देने की कोशिश करता है किन्तु भूल जाता है की उसका अपने माता-पिता की तरफ भी कोई फ़र्ज़ है.माँ का बच्चे के जीवन में सर्वाधिक महत्व है क्योंकि माँ की तो सारी ज़िन्दगी ही बच्चे के चारो ओर ही सिमटी होती है.माँ के लिए कितना भी हम करें वह माँ ...

"माँ ममता और बचपन"

माँ की ममता एक बच्चे के जीवन की अमूल्य धरोहर होती है । माँ की ममता वो नींव का पत्थर होती है जिस पर एक बच्चे के भविष्य की ईमारत खड़ी होती है । बच्चे की ज़िन्दगी का पहला अहसास ही माँ की ममता होती है । उसका माँ से सिर्फ़ जनम का ही नही सांसों का नाता होता है । पहली साँस वो माँ की कोख में जब लेता है तभी से उसके जीवन की डोर माँ से बंध जाती है । माँ बच्चे के जीवन के संपूर्ण वि़कास का केन्द्र बिन्दु होती है । जीजाबाई जैसी माएँ ही देश को शिवाजी जैसे सपूत देती हैं । जैसे बच्चा एक अमूल्य निधि होता है वैसे ही माँ बच्चे के लिए प्यार की , सुख की वो छाँव होती है जिसके तले बच्चा ख़ुद को सुरक्षित महसूस करता है । सारे जहान के दुःख तकलीफ एक पल में काफूर हो जाते हैं जैसे ही बच्चा माँ की गोद में सिर रखता है ।माँ भगवान का बनाया वो तोहफा है जिसे बनाकर वो ख़ुद उस ममत्व को पाने के लिए स्वयं बच्चा बनकर पृथ्वी पर अवतरित होता है । एक बच्चे के लिए माँ और उसकी ममता का उसके जीवन में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान होता है । मगर हर बच्चे को माँ या उसकी ममता नसीब नही हो पाती । कुछ बच्चे जिनके सिर से माँ का...