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जब भी मां ....











टूटी खाट पर

जब भी मां

मैं तेरा बिस्‍तर लगाता हूं

मेरी पीठ

दर्द से दुहरी हो जाती है ।

मैं समेटता हूं

सपनों को बन्‍द करके आंखों को

जब भी

गरम आंसुओं की

कुछ बूंदे

तेरा दामन भिगो जाती हैं ।

एक सिहरन पूरे शरीर में होती है,

जब तेरी झुकी कमर

टेककर लाठी

मेरे लिये खेतों पे रोटी लाती है ।

Comments

एक सिहरन पूरे शरीर में होती है,
जब तेरी झुकी कमर
टेककर लाठी
मेरे लिये खेतों पे रोटी लाती है...
tera yahi pyaar meri himmat ban jati hai , kai sapne de jati hai
vandana gupta said…
बेहद मर्मस्पर्शी।
DR. ANWER JAMAL said…
एक सच्चाई बिल्कुल सादा ज़ुबान में ।
शुक्रिया !
Roshi said…
kya khoob likha hai 'maa ka mukablo koi nahi kar sakta hai

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