उसकी शिकायत का पिटारा
चार – छह दिनों में
खुल ही जाता
तुम तो बस छोटी से
प्यार करती हो ...
हर समय बस
काम ही काम करती रहती हो
मां मुस्करा के कहती नहीं ..
मैं तुम सबसे
बेहद प्यार करती हूं ..
मां उसकी शिकायतों को
नजरअंदाज कर
सिर पे हांथ रखती स्नेह से
क्या हुआ ...
काम भी तो जरूरी है,
यकीं मानो काम के वक्त भी
मेरी आंखों में तुम्हारी ही
अभिलाषा पूर्ति रहती है
तुम्हारे इस स्नेह से लिपटी मैं
पल- पल तुम्हारे हर विचार को
अपनाती हूं, सोच को
परिपक्व होने के लिए
दुनिया की भीड़ में छोड़ देती हूं
तुम भी मेरी तरह
एक मजबूत स्तंभ बनो
मां के लिये आसान नहीं होता
अपने बच्चे से दूर होना
वो हर बच्चे की पीड़ा में
एक समान दुखी होती है
वह यह भी जानती है किसे
उसकी ज्यादा जरूरत है
तुम्हारी शिकायतें
मुझे बुरी नहीं लगती
मैं तुम्हारा स्नेह
महसूस करती हूं इनमें
और इस बात पे हैरां होती हूं
कि जैसे तुम मुझसे झगड़ती हो
ठीक वैसे ही मैं भी
मां से झगड़ा किया करती हूं ...।
Comments
bahut sundar rachna...
यकीं मानो काम के वक्त भी
मेरी आंखों में तुम्हारी ही
अभिलाषा पूर्ति रहती है
bahut sundar bhavabhivyakti.
मां तो मां ही होती है।
sundar rachna.
-harminder singh
मुझे बुरी नहीं लगती
मैं तुम्हारा स्नेह
महसूस करती हूं इनमें
आपकी भावना और आपके शब्द दोनों अच्छे लगे .
मैं आपके लिए नेक ख्वाहिशात पेश करता हूँ और आपका स्वागत करता हूँ.
कभी मेरे ब्लॉग पे भी पधारिये में निचे अपने लिंक दे रहा हु
धन्यवाद्
http://santoshbihar.blogspot.com/
ठीक वैसे ही मैं भी
मां से झगड़ा किया करती हूं ...।
nice post.
http://pyarimaan.blogspot.com/2011/03/blog-post_28.html