Skip to main content

एक वचन जो माँ को दिया था

ज़िंदगी है अगर तो तुम जूझो मगर
क़र्ज़ माँ का चुकाने का वायदा करो
मूलचंद वशिष्ठ बिजनौर के राजेन्द्र नगर , नई बस्ती के रहने वाले हैं । सन् 1983 में उनकी माँ कलावती की मौत हो गई । सन्1982 में राजेन्द्र जी का लड़के विपिन मोहन का चयन एमबीबीएस में हो गया था। कलावती जी ने अपने बेटे मूलचंद से वचन लिया था कि पोते के डाक्टर बनने के बाद वह एक अस्पताल गरीबों के लिए बनवाएंगे , जिसमें गरीबों का पूरी तरह फ्री इलाज किया जाएगा। जिंदगी के उतार चढ़ाव से गुज़र कर अब वे अपने उस वचन को पूरा करने के क़ाबिल हो सके जो कि उन्होंने अपनी माँ को दिया था। उन्होंने अपनी माँ कलावती के नाम पर सिविल लाइन प्रथम पंचवटी कालोनी में एक अस्पताल का निर्माण कराया जिसमें ग़रीबों का इलाज भी मुफ्त होगा और उन्हें दवाइयाँ भी मुफ्त दी जाएँगी । अस्पताल के अलावा कलावती सामुदायिक केंद्र में ग़रीबों की बेटियों की शादी भी मुफ्त में कराई जाएँगी । अस्पताल में डा. रहमान सातों दिन मुफ़्त इलाज करेंगे जबकि डा. विपिन मोहन हफ्ते में एक दिन निःशुल्क उपचार करेंगे।
यह घटना हमारे समाज में ऐसे समय सामने आई है जबकि माँ के वचन को और ग़रीबों को तो क्या , ख़ुद माँ और बाप को ही नज़रअंदाज किया जा रहा है । यह सचमुच एक अच्छी ख़बर है और हम इस पूरे परिवार के भले के लिए दुआ करते हैं । हम सभी को इससे प्रेरणा लेने की ज़रूरत है ।

Comments

अच्‍छी और प्रेरणादायक खबर।
ऐसे बेटे को सलाम और उससे भी ज्‍यादा उस मां को जिसने बेटे को ऐसे संस्‍कार दिए।
DR. ANWER JAMAL said…
एक उम्दा मिसाल .
bashut prerak prasang hai| dhanyavaad|
होली की अपार शुभ कामनाएं...बहुत ही सुन्दर ब्लॉग है आपका....मनभावन रंगों से सजा...
कोई तो है जो माँ की भावनाए समझता है --
इस कलयुग मै कोई तो निकला श्रवण ! आभार---
vandana gupta said…
अच्‍छी और प्रेरणादायक खबर। आज के युग मे भी ऐसे बेटे हैं शायद तभी धरती टिकी है।
सदा said…
बहुत कम लोग ही ऐसे वचनों को निभा पाते हैं ...

प्रेरणात्‍मक प्रस्‍तुति ।
मैं चाहकर भी ज्यादा नहीं लिख पाता , लेकिन आपने इस ख़बर को जितना सराहा उसने मुझे और भी ज़्यादा लिखने के लिए प्रेरित किया।
मैँ एक हकीम हूँ और आए दिन अपने दवाख़ाने पर ऐसे रोगों से दुखी औरतों को देखता रहता हूँ जो माँ बेटी बहन और बहू हरेक को परेशान करते हैं ।
अगर आप सभी लेखिकाएं कुछ ऐसी जानकारी भी दें कि जब आप ख़ुद किसी स्त्री रोग से पीड़त हुईं या आपकी कोई परिचिता बीमार पड़ी तो उसे उस रोग से कैसे मुक्ति मिली ?
तो ये अनूभूत क़िस्से बहुत सी माँओं के लिए अपने कष्टों से निजात का ज़रिया बनेंगे बल्कि वे अपने परिवार की बहू बेटियों की देखभाल भी ठीक से कर पाएँगी और दूसरों को भी सही सलाह दे पाएँगी ।

जमाल भाई साहब से इस्तदआ है कि मेरे ब्लॉगों को इस ब्लॉग में HBFI में और BKK में जोड़ लें क्योंकि उन्हें अब तक कहीं भी नहीं जोड़ा गया है जबकि मैं तीनों ब्लॉग का एक्टिव मेंबर भी हूँ , चाहे एक्टिविटी कम हो ।

Popular posts from this blog

माँ बाप की अहमियत और फ़ज़ीलत

मदर्स डे पर विशेष भेंट  इस्लाम में हुक़ूक़ुल ऐबाद की फ़ज़ीलत व अहमियत इंसानी मुआशरे में सबसे ज़्यादा अहम रुक्न ख़ानदान है और ख़ानदान में सबसे ज़्यादा अहमियत वालदैन की है। वालदैन के बाद उनसे मुताल्लिक़ अइज़्जा वा अक़रबा के हुक़ूक़ का दर्जा आता है डाक्टर मोहम्मद उमर फ़ारूक़ क़ुरैशी 1 जून, 2012 (उर्दू से तर्जुमा- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम) दुनिया के हर मज़हब व मिल्लत की तालीमात का ये मंशा रहा है कि इसके मानने वाले अमन व सलामती के साथ रहें ताकि इंसानी तरक़्क़ी के वसाइल को सही सिम्त में रख कर इंसानों की फ़लाहो बहबूद का काम यकसूई के साथ किया जाय। इस्लाम ने तमाम इंसानों के लिए ऐसे हुक़ूक़ का ताय्युन किया है जिनका अदा करना आसान है लेकिन उनकी अदायगी में ईसार व कुर्बानी ज़रूरी है। ये बात एक तरह का तर्बीयती निज़ाम है जिस पर अमल कर के एक इंसान ना सिर्फ ख़ुद ख़ुश रह सकता है बल्कि दूसरों के लिए भी बाइसे राहत बन सकता है। हुक़ूक़ की दो इक़्साम हैं । हुक़ूक़ुल्लाह और हुक़ूक़ुल ऐबाद। इस्लाम ने जिस क़दर ज़ोर हुक़ूक़ुल ऐबाद पर दिया है इससे ये अमर वाज़ेह हो जाता है कि इन हुक़ूक़ का कितना बुलंद मुक़ाम है और उनकी अ

माँ की ममता

ईरान में सात साल पहले एक लड़ाई में अब्‍दुल्‍ला का हत्यारा बलाल को सरेआम फांसी देने की तैयारी पूरी हो चुकी थी. इस दर्दनाक मंजर का गवाह बनने के लिए सैकड़ों का हुजूम जुट गया था. बलाल की आंखों पर पट्टी बांधी जा चुकी थी. गले में फांसी का फंदा भी  लग चुका था. अब, अब्‍दुल्‍ला के परिवार वालों को दोषी के पैर के नीचे से कुर्सी हटाने का इंतजार था. तभी, अब्‍दुल्‍ला की मां बलाल के करीब गई और उसे एक थप्‍पड़ मारा. इसके साथ ही उन्‍होंने यह भी ऐलान कर दिया कि उन्‍होंने बलाल को माफ कर दिया है. इतना सुनते ही बलाल के घरवालों की आंखों में आंसू आ गए. बलाल और अब्‍दुल्‍ला की मां भी एक साथ फूट-फूटकर रोने लगीं.

माँ को घर से हटाने का अंजाम औलाद की तबाही

मिसालः‘आरूषि-हेमराज मर्डर केस’ आज दिनांक 26 नवंबर 2013 को विशेष सीबीाआई कोर्ट ने ‘आरूषि-हेमराज मर्डर केस’ में आरूषि के मां-बाप को ही उम्रक़ैद की सज़ा सुना दी है। फ़जऱ्ी एफ़आईआर दर्ज कराने के लिए डा. राजेश तलवार को एक साल की सज़ा और भुगतनी होगी। उन पर 17 हज़ार रूपये का और उनकी पत्नी डा. नुपुर तलवार पर 15 हज़ार रूपये का जुर्माना भी लगाया गया है। दोनों को ग़ाजि़याबाद की डासना जेल भेज दिया गया है। डा. नुपुर तलवार इससे पहले सन 2012 में जब इसी डासना जेल में बन्द थीं तो उन्होंने जेल प्रशासन से ‘द स्टोरी आॅफ़ एन अनफ़ार्चुनेट मदर’ शीर्षक से एक नाॅवेल लिखने की इजाज़त मांगी थी, जो उन्हें मिल गई थी। शायद अब वह इस नाॅवेल पर फिर से काम शुरू कर दें। जेल में दाखि़ले के वक्त उनके साथ 3 अंग्रेज़ी नाॅवेल देखे गए हैं।  आरूषि का बाप राकेश तलवार और मां नुपुर तलवार, दोनों ही पेशे से डाॅक्टर हैं। दोनों ने आरूषि और हेमराज के गले को सर्जिकल ब्लेड से काटा और आरूषि के गुप्तांग की सफ़ाई की। क्या डा. राजेश तलवार ने कभी सोचा था कि उन्हें अपनी मेडिकल की पढ़ाई का इस्तेमाल अपनी बेटी का गला काटने में करना पड़ेगा?