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खट्टे-मीठे सपने.....



छन न न से गिरा मन-सपनों की घाटी में,
बटोर लाया सपने
कुछ खट्टे,कुछ मीठे,
पारले की गोलियों जैसे...........
अपनी टोली बुलाई-
और सपने बांटने लगा.......
माँ सिखाती रही है,
मिलजुल बाँट के चलना,
कम होंगे
तो सपनों की घाटी है न !
छ न न से गिर जायेगा मन
बटोर लाएगा सपने
खट्टे-मीठे -
पारले जैसी !

Comments

POOJA... said…
मुझे भी चाहिए वो पार्ले की गोलियां...
सपनों वाली...
खट्टी-मीठी...
:-) theek hai phir...... hum to chale sapno ki ghati mein.... :-)
DR. ANWER JAMAL said…
शुक्रिया हो ही नहीं सकता कभी उसका अदा
मरते मरते भी दुआ जीने की दे जाती है माँ
Unknown said…
आदरणीय रश्मि जी आपकी कविताओं का सदा से ही कायल रहा हूँ, हमेशा पढ़ी है , हर रंगों में आपकी लेखनी को महारत हासिल है, सही अर्थो में काव्य की उत्पत्ति होती है आपके शब्दों से, जबसे लिखना शुरू क्या इस वेर्तुअल जगत में सही कहू तो आपके काव्य ने ही प्रेरित किया मुझे और कुछ अभिव्याक्तिया करता हूँ, हमेशा से ही आपकी उपस्थिति का, आपके शब्दों का इंतज़ार रहा अपनी कविताओ पर सच्ची टिप्पणी के लिए.- कुश्वंश
पार्ले की पौपिंस ....बहुत पसंद हैं आज तक ...बहुत खूबसूरत कल्पना
Shikha Kaushik said…
bahut sundar abhivyaki..
माँ ही सिखाती है मिलजुल कर बाँट कर चलना ...
मुझे भी चाहिए ये पार्ले वाली खट्टी मीठी गोलियां ...सपनों की दूकान तो खोलिए !
सपनों के लिए हाथ फैलाये हम भी तो हैं खड़े !
यह दुनिया परले की गोलियों की तरह ही खट्टी मीठी है और माँ हिदायत देती डेंटिस्ट की तरह---:)
aaj ke din kahin ye parle ki goliyan sirf mahilaon ke liye to nahi hai..:)

happy womens day!
नारी मनुष्य का निर्माण करती है.नारी समाज की प्रशिक्षक है और उसके लिए आवश्यक है कि सामाजिक मंच पर उसकी रचनात्मक उपस्थिति हो
सदा said…
अपनी टोली बुलाई-
और सपने बांटने लगा.......
माँ सिखाती रही है,
मिलजुल बाँट के चलना

बहुत खूब ...सुन्‍दर भावमय शब्‍दों का संगम ।
पार्लेजी की मीठी मीठी रंगीन टॉफी की तरह मीठी रचना, बधाई!
kavita verma said…
छ न न से गिर जायेगा मन
बटोर लाएगा सपने iski khanak goonj rahi hai kano me...
छ न न से गिर जायेगा मन
बटोर लाएगा सपने
खट्टे-मीठे -
पारले जैसी !
चलो फिर बटोरते हैं। सुन्दर रचना। शुभकामनायें।
Dinesh pareek said…
आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
http://vangaydinesh.blogspot.com/2011/03/blog-post_12.html

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