Skip to main content

बातचीत


'माँ...हमारा घर कहाँ है'
................
'मेरी गोद तुम्हारी धरती
मेरी बाहों का घेरा कमरा
मेरी आँखें खिड़कियाँ
मेरी दुआएं आकाश ...'

'माँ माँ
ये घर हमेशा होगा न ...'

'हमेशा रहता तो है
पर- अदृश्य सा
कभी कभी हो जाता है
तब इन दीवारों का सामर्थ्य ले
एक एक घर तुम बनाना ...'

'माँ , हम कैसे बनायेंगे
हमें तो वही रंग अच्छे लगते हैं
जो तुम लाती हो
हमें तो पता ही नहीं और कुछ ...'

'मुझे कहाँ पता था !
मुझे इन रंगों की भाषा मेरी माँ ने सिखाया
... यही तो क्रम है ............
वरना
सच पूछो तो रंग सात हैं
आठवां रंग - प्यार का
उनको अदभुत बनाता है
बिना आठवें रंग के सारे रंग बदरंग हैं
दीवारों पे ठहरते नहीं....'

' माँ
हम तो इससे अलग होंगे ही नहीं
क्योंकि हमें पता है -
ये आठवां रंग तुम हो...
विश्वास रखो माँ
हम भी आठवां रंग बनेंगे
बिल्कुल तुम्हारी तरह !'


Comments

vandana gupta said…
वाह रश्मि जी बहुत सुन्दर रंग दिया है।
रश्मि जी जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें।
बहुत ही प्यारी कविता.

आदरणीया रश्मी जी को जन्म दिन की हार्दिक शुभ कामनाएं.

सादर
DR. ANWER JAMAL said…
शक है जिन्हें भी दोस्तो हक़ की ज़ात में
माँ की नज़ीर ला न सके कायनात में

हक़ = सत्य , ईश्वर
ज़ात = अस्तित्व
नज़ीर = मिसाल

आदरणीया रश्मी जी को जन्म दिन की हार्दिक
शुभ कामनाएं.

Nice post.
Please see and follow
http://pyarimaan.blogspot.com
DR. ANWER JAMAL said…
आदरणीया रश्मी जी को जन्म दिन की हार्दिक
शुभ कामनाएं.
देखें तीन पोस्ट्स-
आदरणीया रश्मी जी को जन्म दिन की हार्दिक शुभ कामनाएं.

माँ की नज़ीर ला न सके कायनात में Pyari maa

शक है जिन्हें भी दोस्तो हक़ की ज़ात में माँ की नज़ीर ला न सके कायनात में


इसी ब्लॉग में दिए गए लिंक्स में भी यह तीनों पोस्ट्स चमक रही हैं.
रश्मि जी जन्म दिन मुबारक हो --इस मुबारक दिन पर आपने क्या सुंदर आठंवा रंग दिखाया हे --धन्यवाद |
सच पूछो तो रंग सात हैं
आठवां रंग - प्यार का
उनको अदभुत बनाता है
बिना आठवें रंग के सारे रंग बदरंग हैं
दीवारों पे ठहरते नहीं....'

बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ ....जन्मदिन की बधाई
bahut sundar likha hai, maan hi vo saya hai jise ghar kahen ya chhatrachhaya jeevan bhar mile to saubhagya.

janma din ki agrim shubhkamanayen.
बस एक माँ जो मुझसे खफा नहीं होती ...
बहुत प्यारी रचना ...

जन्मदिन की बहुत शुभकामनाये !
सबसे पहले अनवर जमाल साहब का शुक्रिया रश्मि प्रभा जैसी बेहतरीन लेखिका को यहाँ प्यारी माँ पे लाने का. रश्मि प्रभा जी को जन्म दिन की बहुत बहुत बधाई
bahut pyaari kavita, janmdin ki badhai rashmi ji.
आठवां रंग सबसे प्यारा रंग है ... बहुत सुन्दर !
सदा said…
'माँ , हम कैसे बनायेंगे
हमें तो वही रंग अच्छे लगते हैं
जो तुम लाती हो
हमें तो पता ही नहीं और कुछ ...'

इन नाजुक ख्‍यालों के साथ मां की लेखनी ने सच में इसमें आठवां रंग बिखेर दिया है ...बहुत-बहुत बधाई के साथ आभार इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये ।

Popular posts from this blog

माँ बाप की अहमियत और फ़ज़ीलत

मदर्स डे पर विशेष भेंट  इस्लाम में हुक़ूक़ुल ऐबाद की फ़ज़ीलत व अहमियत इंसानी मुआशरे में सबसे ज़्यादा अहम रुक्न ख़ानदान है और ख़ानदान में सबसे ज़्यादा अहमियत वालदैन की है। वालदैन के बाद उनसे मुताल्लिक़ अइज़्जा वा अक़रबा के हुक़ूक़ का दर्जा आता है डाक्टर मोहम्मद उमर फ़ारूक़ क़ुरैशी 1 जून, 2012 (उर्दू से तर्जुमा- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम) दुनिया के हर मज़हब व मिल्लत की तालीमात का ये मंशा रहा है कि इसके मानने वाले अमन व सलामती के साथ रहें ताकि इंसानी तरक़्क़ी के वसाइल को सही सिम्त में रख कर इंसानों की फ़लाहो बहबूद का काम यकसूई के साथ किया जाय। इस्लाम ने तमाम इंसानों के लिए ऐसे हुक़ूक़ का ताय्युन किया है जिनका अदा करना आसान है लेकिन उनकी अदायगी में ईसार व कुर्बानी ज़रूरी है। ये बात एक तरह का तर्बीयती निज़ाम है जिस पर अमल कर के एक इंसान ना सिर्फ ख़ुद ख़ुश रह सकता है बल्कि दूसरों के लिए भी बाइसे राहत बन सकता है। हुक़ूक़ की दो इक़्साम हैं । हुक़ूक़ुल्लाह और हुक़ूक़ुल ऐबाद। इस्लाम ने जिस क़दर ज़ोर हुक़ूक़ुल ऐबाद पर दिया है इससे ये अमर वाज़ेह हो जाता है कि इन हुक़ूक़ का कितना बुलंद मुक़ाम है और उनकी अ

माँ की ममता

ईरान में सात साल पहले एक लड़ाई में अब्‍दुल्‍ला का हत्यारा बलाल को सरेआम फांसी देने की तैयारी पूरी हो चुकी थी. इस दर्दनाक मंजर का गवाह बनने के लिए सैकड़ों का हुजूम जुट गया था. बलाल की आंखों पर पट्टी बांधी जा चुकी थी. गले में फांसी का फंदा भी  लग चुका था. अब, अब्‍दुल्‍ला के परिवार वालों को दोषी के पैर के नीचे से कुर्सी हटाने का इंतजार था. तभी, अब्‍दुल्‍ला की मां बलाल के करीब गई और उसे एक थप्‍पड़ मारा. इसके साथ ही उन्‍होंने यह भी ऐलान कर दिया कि उन्‍होंने बलाल को माफ कर दिया है. इतना सुनते ही बलाल के घरवालों की आंखों में आंसू आ गए. बलाल और अब्‍दुल्‍ला की मां भी एक साथ फूट-फूटकर रोने लगीं.

माँ को घर से हटाने का अंजाम औलाद की तबाही

मिसालः‘आरूषि-हेमराज मर्डर केस’ आज दिनांक 26 नवंबर 2013 को विशेष सीबीाआई कोर्ट ने ‘आरूषि-हेमराज मर्डर केस’ में आरूषि के मां-बाप को ही उम्रक़ैद की सज़ा सुना दी है। फ़जऱ्ी एफ़आईआर दर्ज कराने के लिए डा. राजेश तलवार को एक साल की सज़ा और भुगतनी होगी। उन पर 17 हज़ार रूपये का और उनकी पत्नी डा. नुपुर तलवार पर 15 हज़ार रूपये का जुर्माना भी लगाया गया है। दोनों को ग़ाजि़याबाद की डासना जेल भेज दिया गया है। डा. नुपुर तलवार इससे पहले सन 2012 में जब इसी डासना जेल में बन्द थीं तो उन्होंने जेल प्रशासन से ‘द स्टोरी आॅफ़ एन अनफ़ार्चुनेट मदर’ शीर्षक से एक नाॅवेल लिखने की इजाज़त मांगी थी, जो उन्हें मिल गई थी। शायद अब वह इस नाॅवेल पर फिर से काम शुरू कर दें। जेल में दाखि़ले के वक्त उनके साथ 3 अंग्रेज़ी नाॅवेल देखे गए हैं।  आरूषि का बाप राकेश तलवार और मां नुपुर तलवार, दोनों ही पेशे से डाॅक्टर हैं। दोनों ने आरूषि और हेमराज के गले को सर्जिकल ब्लेड से काटा और आरूषि के गुप्तांग की सफ़ाई की। क्या डा. राजेश तलवार ने कभी सोचा था कि उन्हें अपनी मेडिकल की पढ़ाई का इस्तेमाल अपनी बेटी का गला काटने में करना पड़ेगा?