माँ ,
वह सेतु है,
जिस पर चढ़ कर
बच्चे विपत्तियों के सागर
पार कर जाते हैं औ'
माँ उनकी सलामती के लिए
ईश्वर से दुआ और सिर्फ दुआ माँगा करती है.
माँ वह सीढ़ी है,
जिस पर चढ़ कर
उसके बच्चे
जमीन से आसमां तक
चलते चले जाते हैं.
ऊपर पहुँच कर
उस सीढ़ी को
पैर से धकेल कर
आगे और आगे बढ़ जाते हैं.
नीचे आने की सोचते भी नहीं है.
वो तो नीचे ही रहती है
क्योंकि अब उसकी जरूरत
किसी बच्चे को नहीं है.
अपने पैरों पर खड़े हो कर
वे औरों के लिए सीढ़ी बनने को तैयार हैं.
उन्हें नहीं मालूम
या फिर याद नहीं
कि वे भी कभी किसी को सीढ़ी बनाकर
आसमां छूने निकले थे
औ' आसमां छूते ही
वे चाँद पर पहुँच गए
जमीन से नाता तोड़ कर
फिर जमीन पर नहीं आ सकते
क्योंकि वो जमीन
अब उनको स्वीकार नहीं करेगी.
माँ के तिरस्कार की कीमत
आज नहीं तो कल
हर औलाद भुगतती है.
और माँ वो दरिया है
जिसके प्यार में ऐसी बातें
टिकती ही नहीं है.
बेटे की सूरत जब भी देखी
आंसुओं से भरी आँखें
गले लगाने को आतुर रहती हैं.
कहती है --
सुबह का भूला
शाम को घर लौटा है,
ऐसे ही माँ का दिल होता है.
वह सेतु है,
जिस पर चढ़ कर
बच्चे विपत्तियों के सागर
पार कर जाते हैं औ'
माँ उनकी सलामती के लिए
ईश्वर से दुआ और सिर्फ दुआ माँगा करती है.
माँ वह सीढ़ी है,
जिस पर चढ़ कर
उसके बच्चे
जमीन से आसमां तक
चलते चले जाते हैं.
ऊपर पहुँच कर
उस सीढ़ी को
पैर से धकेल कर
आगे और आगे बढ़ जाते हैं.
नीचे आने की सोचते भी नहीं है.
वो तो नीचे ही रहती है
क्योंकि अब उसकी जरूरत
किसी बच्चे को नहीं है.
अपने पैरों पर खड़े हो कर
वे औरों के लिए सीढ़ी बनने को तैयार हैं.
उन्हें नहीं मालूम
या फिर याद नहीं
कि वे भी कभी किसी को सीढ़ी बनाकर
आसमां छूने निकले थे
औ' आसमां छूते ही
वे चाँद पर पहुँच गए
जमीन से नाता तोड़ कर
फिर जमीन पर नहीं आ सकते
क्योंकि वो जमीन
अब उनको स्वीकार नहीं करेगी.
माँ के तिरस्कार की कीमत
आज नहीं तो कल
हर औलाद भुगतती है.
और माँ वो दरिया है
जिसके प्यार में ऐसी बातें
टिकती ही नहीं है.
बेटे की सूरत जब भी देखी
आंसुओं से भरी आँखें
गले लगाने को आतुर रहती हैं.
कहती है --
सुबह का भूला
शाम को घर लौटा है,
ऐसे ही माँ का दिल होता है.
Comments
किसी का हाथ अभी मेरे सर के नीचे है
आपने हक़ीक़त बयान की है।
बहुत ही सुन्दर...
अच्छी और भावभरी रचना।
क्या दें प्रतिक्रिया
बहुत सुन्दर व सार्थक रचना
आभार
शुभ कामनाएं
आज हम जिन हालातों में जी रहे हैं, उनमें किसी भी जनहित या राष्ट्रहित या मानव उत्थान से जुड़े मुद्दे पर या मानवीय संवेदना तथा सरोकारों के बारे में सार्वजनिक मंच पर लिखना, बात करना या सामग्री प्रस्तुत या प्रकाशित करना ही अपने आप में बड़ा और उल्लेखनीय कार्य है|
ऐसे में हर संवेदनशील व्यक्ति का अनिवार्य दायित्व बनता है कि नेक कार्यों और नेक लोगों को सहमर्थन एवं प्रोत्साहन दिया जाये|
आशा है कि आप उत्तरोत्तर अपने सकारात्मक प्रयास जारी रहेंगे|
शुभकामनाओं सहित!
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
सम्पादक (जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र ‘प्रेसपालिका’) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
(देश के सत्रह राज्यों में सेवारत और 1994 से दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन, जिसमें 4650 से अधिक आजीवन कार्यकर्ता सेवारत हैं)
फोन : 0141-2222225 (सायं सात से आठ बजे के बीच)
मोबाइल : 098285-02666