मेरी ख्वाइश है की मैं फिर से
फ़रिश्ता हो जाऊ |
माँ से इस तरह लिपटू की...
फिर से बच्चा हो जाऊ |
माँ से दूर मैं हो जाऊ
माँ से दूर मैं हो जाऊ
ये कैसे हो सकता है |
माँ का साया तो हरदम
पास मेरे ही रहता है |
माँ जब कभी भी मुझे
डांट कर चली जाती है |
मैं मुहं चिढाता हूँ
तो वो हंस के पास आती है |
माँ के डांटने मे भी
प्यारा सा एहसास होता है |
उसके उस एहसास में भी
प्यारा सा दुलार रहता है |
हर पल वो मेरे दर्द को
साथ ले के चलती है |
जब मैं परेशां होता हूँ तो
वो होंसला सा देने लगती है |
माँ न जाने मेरे हर गम में
कैसे शरीक लगती है |
जेसे वो हर पल मेरे ही
इर्द - गिर्द रहती है |
कितना नाजुक और
पाक सा ये रिश्ता है |
बिना किसी शर्त के
हर पल हमारे साथ रहता है |
ओर हमें प्यारा सा
उसका स्पर्श हरदम
मिलता ही रहता है |
Comments
देखकर चेहरे को हाले दिल समझ जाती है माँ
आपकी भावना और रचना हक़ीक़त के क़रीब है ।
बिना किसी शर्त के
हर पल हमारे साथ रहता है |
माँ ऐसी ही होती है। बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई।
हर पल हमारे साथ रहता है
बहुत खूबसूरती से लिखे हैं यह एहसास
बहुत बहुत बधाई .