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खुदा का नूर ''माँ''


बड़े तूफ़ान में फंसकर भी मैं बच जाती हूँ ;
दुआएं माँ की मेरे साथ साथ चलती हैं .
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तमाम जिन्दगी उसकी ही तो अमानत है  ;
सुबह होती है उसके साथ ;शाम ढलती है .
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खुदा का नूर है वो रौशनी है आँखों की ;
शमां बनकर वो दिल के दिए में जलती है 
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नहीं वजूद किसी का कभी उससे अलग ;
उसकी ही कोख में ये कायनात पलती है .
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उसके साये में गम के ओले नहीं आ सकते ;
दूर उससे हो तो ये बात बहुत खलती है .
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मेरे लबो पे सदा माँ ही माँ  रहता है ;
इसी के  डर से  बला अपने आप टलती है .
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  http://shikhakaushik666.blogspot.com/

Comments

Shalini kaushik said…
maa ki mahima aapne apne shabdon me bahut khoobsoorti se vyakt ki hai.
DR. ANWER JAMAL said…
दिल है , ख़ुशबू है रौशनी है माँ
अपने बच्चों की ज़िंदगी है माँ
नहीं वजूद किसी का कभी उससे अलग ;
उसकी ही कोख में ये कायनात पलती है .
sach hai...
सदा said…
वाह ...बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ।
vandana gupta said…
वाह …………बेहद भावप्रवण रचना।

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