बड़े तूफ़ान में फंसकर भी मैं बच जाती हूँ ;
दुआएं माँ की मेरे साथ साथ चलती हैं .
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तमाम जिन्दगी उसकी ही तो अमानत है ;
सुबह होती है उसके साथ ;शाम ढलती है .
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खुदा का नूर है वो रौशनी है आँखों की ;
शमां बनकर वो दिल के दिए में जलती है
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नहीं वजूद किसी का कभी उससे अलग ;
उसकी ही कोख में ये कायनात पलती है .
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उसके साये में गम के ओले नहीं आ सकते ;
दूर उससे हो तो ये बात बहुत खलती है .
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मेरे लबो पे सदा माँ ही माँ रहता है ;
इसी के डर से बला अपने आप टलती है .
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अपने बच्चों की ज़िंदगी है माँ
उसकी ही कोख में ये कायनात पलती है .
sach hai...