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सलाम आखरी !

'कल पेपर में कही पढ़ा की बच्चो ने अपनी बूढी  माँ को धर से निकाल दिया ' --कहा तेरा ख्याल कोन रखेगा ? ऐसा तो अक्सर सुनने को मिलता  ही हे--क्या मन स्थिति होती होगी उस समय उस दयनीय माँ की ---वही चित्रण करने की एक कोशीश ---    





एक बूढी माँ की दयनीय पुकार -----


आखरी वक्त हे साँस भी हे आखरी ,
जिन्दगी की हर बात हे आखरी ,
तोबा ! करती हु अब ,किसी को नही जनूंगी *
न अब किसी के सहारे अपनी जिन्दगी पूरी करुगी ,
जीते- जी मेरी इज्जत किसी ने नही की ,
मरकर करेगे ये एतबार नही करुँगी  ,
मुझ को मेरे अपनो ने नहलाकर कफ़न दे दिया ,
कुछ धड़ी भी मेरे साथ न बिताई की दफ्न कर दिया ,
दुनियां वालो ! मुबारक यह एह्साने -जहां तुमको ,
कर चले हम तो सलाम आखरी-आखरी !!! 


           
*जन्म देना |

Comments

कहते हैं जो सबसे करीबी होता है, वही घायल करता है ! एक माँ तो तब भी दुआएं देती है....यह दुखद नहीं, शर्मनाक बात है !
शर्मनाक बात है !
DR. ANWER JAMAL said…
दुनियां वालो ! मुबारक यह एह्साने -जहां तुमको
कर चले हम तो सलाम आखरी-आखरी !!!

आपकी रचना एक आला दर्जे की प्रेरणा देने वाली भी।
इस ब्लॉग के सभी रीडर्स के साथ मैं आपका शुक्रगुज़ार हूं।
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इसके अलावा अगर किसी के पास कोई बेहतर सलाह हो तो वह उसे भी ज़रूर दे ताकि इस ब्लाग की आवाज़ की तरफ़ ज़्यादा से ज़्यादा लोगों का ध्यान आकृष्ट किया जा सके।
Shalini kaushik said…
bahut sahi bat kahi hai aapne jo aaj ke hal hain usme shayad har maa ke man se yahi dukh pragat hota hai..
सदा said…
यह घटना दुखद होने के साथ - साथ शर्मनाक भी है ...।
आज ये बहुत आम बात हो चुकी है, घर से न निकाला तो घर में ही उसको परित्यक्ता की तरह से जीवन जीने को मजबूर कर दिया. अपनी दो रोटी खुद बना कर खा लेती है और अगर बीमार है तो ऐसी ही पडी रहती है.
हम पर लानत है.
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (12.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
POOJA... said…
सारा हादसा दर्दनाक था
वो भी सोचती होगी की "एक बार भी यदि प्रसव पीड़ा को सहने की जगह तुझे खो देने पीड़ा के बारे में सोचा भी होते तो तेरा इस दुनिया को देख पाना मुश्किल था"
पर वो माँ है न, इस सब के बावजूद वो दुआ ही देगी...
बहुत ही अच्छा चित्रण किया है दर्शन कौर जी आपने.
मां के ऊपर एक लेख लिखा था कभी देख लें
.
इस्लाम में भी अल्लाह के बाद अगर किसी की इज्ज़त की बात की गयी है तो वोह हैं वालदैन (माँ बाप).
Dr Varsha Singh said…
दुखद.... बेहद दुखद ....
अत्यंत मार्मिक .
तोबा ! करती हु अब ,किसी को नही जनूंगी *
न अब किसी के सहारे अपनी जिन्दगी पूरी करुगी ,
जीते- जी मेरी इज्जत किसी ने नही की ,
मरकर करेगे ये एतबार नही करुँगी ,.....

मार्मिक ....बहुत मार्मिक ....
Kunwar Kusumesh said…
दुखदाई,दर्दनाक.
ये दुनिया कब सुधरेगी ?

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