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माँ ...


एक माँ
मन्नतों की सीढियां तय करती है
एक माँ
दुआओं के दीप जलाती है
एक माँ
अपनी सांस सांस में
मन्त्रों का जाप करती है
एक माँ
एक एक निवाले में
आशीष भरती है
एक माँ
जितनी कमज़ोर दिखती है
उससे कहीं ज्यादा
शक्ति स्तम्भ बनती है
एक एक हवाओं को उसे पार करना होता है
जब बात उसके जायों की होती है
एक माँ
प्रकृति के कण कण से उभरती है
निर्जीव भी सजीव हो जाये
जब माँ उसे छू जाती है
..............
मैं माँ हूँ
वह सुरक्षा कवच
जिसे तुम्हारे शरीर से कोई अलग नहीं कर सकता
....
हार भी जीत में बदल जाये
माँ वो स्पर्श होती है

तो फिर माथे पर बल क्यूँ
डर क्यूँ
आंसू क्यूँ
ऊँगली पकड़े रहो
विपदाओं की आग ठंडी हो जाएगी

Comments

Unknown said…
कितने भी बड़े हो जाये हम, माँ के लिए बच्चे ही होते है हम और हमेश एक कवच की भी, एक बेहद मर्मस्पर्शी कविता , हमेशा की तरह बेहतरीन कथ्य
सदा said…
तो फिर माथे पर बल क्यूँ
डर क्यूँ
आंसू क्यूँ
ऊँगली पकड़े रहो
विपदाओं की आग ठंडी हो जाएगी
अक्षरश: सत्‍य कहा है मां ने इन पंक्तियों में अपने जायों के लिये मां कण-कण में सजीव हो उठती है ...बेहतरीन ।
बहुत ही मर्म स्पर्शी कविता है ||
माँ तोह माँ है.. माँ का कोई जवाब नहीं ||
माँ तो जीवन का आधार है ...
बहुत सुन्दर कविता है !
DR. ANWER JAMAL said…
माँ ये कहती थी कि मोती हैं हमारे आँसू
इसलिए अश्कों का पीना भी बुरा लगता था
माँ बस माँ ही है उस जैसा कोई नही। बहुत अच्छी रचना। बधाई।
तो फिर माथे पर बल क्यूँ
डर क्यूँ
आंसू क्यूँ
ऊँगली पकड़े रहो
विपदाओं की आग ठंडी हो जाएगी
..sundar mamtamayee prastuti ke liye aabhar.. Maa jaisa bhala aur kaun ho sakta hai
एक माँ
जितनी कमज़ोर दिखती है
उससे कहीं ज्यादा
शक्ति स्तम्भ बनती है
.
Bahut khoob..
एक माँ जितनी कमजोर दिखती है , उससे कही ज्यादा शक्ति स्तम्भ बनती है ...
कई बार महसूस होता है ये ...उस माँ से इस माँ तक यही दास्ताँ है ...!
ρяєєтii said…
तेरी दुओं के दीप की रौशनी से ही मुझे पथ नज़र आते है ,
तेरे मंत्रो के जाप मुझे सुकून की नींद दे जाते है ,
तुझे चुके आते हवा के झोके मुझे तेरे आँचल का एह्स्सास दिलाते है ,

तेरा मेरे पास होने का एहसास -
मेरे आसू को ख़ुशी मे बदल देता है ,
तेरा हर शब्द मुझे कुछ करने की प्रेरणा दे जाता है ...

कैसे बताऊ क्या हो तुम ... बस मेरी "माँ" हो तुम ... ILu ..!

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