'औरत महज़ एक शरीर ही नहीं होती । आदमी शरीर के साथ सो तो सकता है लेकिन जाग नहीं सकता । अगर कलाकारों ने औरत को सचमुच जाना होता तो आज उनकी कला कुछ और ही होती ।'
मैंने आज रश्मि प्रभा जी की एक रचना में यह अद्भुत विचार पढ़ा और मेरे दिल पर फ़ौरन इसका असर हुआ क्योंकि मैं खुद भी यही विचार रखता हूँ और मैंने अपने लेख 'मर्द के लिए ईनामे ख़ुदा है औरत' में भी यही कहा है । मैंने अपनी टिप्पणी में कहा कि
'एक फ़नकार जाग रहा है इधर !'
एक अच्छी पोस्ट !
और फिर मैंने उन्हें आमंत्रित करते हुए कहा -
आदरणीया रश्मि जी ! यदि आप 'प्यारी मां' ब्लॉग के लेखिका मंडल की सम्मानित सदस्य बनना चाहती हैं तो
कृपया अपनी ईमेल आई डी भेज दीजिये और फिर आपको निमंत्रण भेजा जाएगा । जिसे स्वीकार करने के बाद आप इस ब्लाग के लिए लिखना शुरू
कर सकती हैं.
यह एक अभियान है मां के गौरव की रक्षा का .
मां बचाओ , मानवता बचाओ .
http://pyarimaan.blogspot.com/2011/02/blog-post_03.html
उनकी इस शानदार पोस्ट को पढ़ने के लिए देखें -
नज़्मों की सौगात...: पेंटिंग
औरत एक शरीर से ज़्यादा क्या है ?
उसकी फ़ितरत , उसकी सोच और उसकी हक़ीक़त क्या है ?
उसका रिश्ता और उसका रूतबा समाज में क्या है ?
उसकी मंज़िल क्या है और उसे वह कैसे पा सकती है ?
अपने रास्ते में वह कौन सी रूकावटें देखती है ?
एक औरत के रूप में वह अपने अतीत और वर्तमान को कैसे देखती है ?
बेटी , बहन , बीवी और माँ , इन रिश्तों के बारे में , ख़ास तौर पर माँ के रूप के बारे में एक औरत की सोच और उसका जज़्बा क्या होता है ?
अगर इन सब बातों को आज तक कलाकार नहीं जान पाए तो यह उनकी कमी तो है ही लेकिन औरत की भी कमी है कि आख़िर वह आज तक दुनिया को बता क्यों नहीं पाई कि वह महज़ एक शरीर नहीं है । अगर उसने बताया होता तो आज औरत का रूतबा हमारे समाज में कुछ और होता ।
औरत वास्तव में क्या है ?
इसे अगर सचमुच ठीक तौर पर कोई बता सकता है तो वह है ख़ुद औरत ।
औरत बताए और मर्द सुने और समझे ।
यह मंच इसीलिए बनाया गया है ।
माँ के रूतबे तक पहुंचने से पहले एक औरत जिन मुश्किल इम्तेहानों से गुज़रती है और जो कुछ भी वह महसूस करती है , वह सब अब हमारे सामने आ जाना चाहिए ताकि अगर पहले औरत को न जाना जा सका हो तो न सही लेकिन उस गलती को अब तो सुधार लिया जाए । अगर ऐसा हो गया तो यक़ीनन तब हमारा भविष्य वैसा भयानक और अंधेर न होगा जैसा कि अतीत में रह चुका है और वर्तमान चल ही रहा है ।
इस अभियान को मजबूती और गति देने के लिए अपने परिचय की महिला ब्लागर्स को इस ब्लाग में ज़्यादा से ज़्यादा जोड़ने की कोशिश करें ताकि इस मंच से एक समवेत स्वर दुनिया भर में गूंजे कि
औरत केवल एक शरीर नहीं होती ।
दुनिया को अगर बदलना है तो उसकी सोच को बदलना ही होगा और यह काम भी औरत को खुद ही करना होगा । नेक मर्द उसका साथ जरूर देंगे क्योंकि वे भी तो जानना चाहते हैं कि औरत आखिर है क्या ?
मैंने आज रश्मि प्रभा जी की एक रचना में यह अद्भुत विचार पढ़ा और मेरे दिल पर फ़ौरन इसका असर हुआ क्योंकि मैं खुद भी यही विचार रखता हूँ और मैंने अपने लेख 'मर्द के लिए ईनामे ख़ुदा है औरत' में भी यही कहा है । मैंने अपनी टिप्पणी में कहा कि
'एक फ़नकार जाग रहा है इधर !'
एक अच्छी पोस्ट !
और फिर मैंने उन्हें आमंत्रित करते हुए कहा -
आदरणीया रश्मि जी ! यदि आप 'प्यारी मां' ब्लॉग के लेखिका मंडल की सम्मानित सदस्य बनना चाहती हैं तो
कृपया अपनी ईमेल आई डी भेज दीजिये और फिर आपको निमंत्रण भेजा जाएगा । जिसे स्वीकार करने के बाद आप इस ब्लाग के लिए लिखना शुरू
कर सकती हैं.
यह एक अभियान है मां के गौरव की रक्षा का .
मां बचाओ , मानवता बचाओ .
http://pyarimaan.blogspot.com/2011/02/blog-post_03.html
उनकी इस शानदार पोस्ट को पढ़ने के लिए देखें -
नज़्मों की सौगात...: पेंटिंग
औरत एक शरीर से ज़्यादा क्या है ?
उसकी फ़ितरत , उसकी सोच और उसकी हक़ीक़त क्या है ?
उसका रिश्ता और उसका रूतबा समाज में क्या है ?
उसकी मंज़िल क्या है और उसे वह कैसे पा सकती है ?
अपने रास्ते में वह कौन सी रूकावटें देखती है ?
एक औरत के रूप में वह अपने अतीत और वर्तमान को कैसे देखती है ?
बेटी , बहन , बीवी और माँ , इन रिश्तों के बारे में , ख़ास तौर पर माँ के रूप के बारे में एक औरत की सोच और उसका जज़्बा क्या होता है ?
अगर इन सब बातों को आज तक कलाकार नहीं जान पाए तो यह उनकी कमी तो है ही लेकिन औरत की भी कमी है कि आख़िर वह आज तक दुनिया को बता क्यों नहीं पाई कि वह महज़ एक शरीर नहीं है । अगर उसने बताया होता तो आज औरत का रूतबा हमारे समाज में कुछ और होता ।
औरत वास्तव में क्या है ?
इसे अगर सचमुच ठीक तौर पर कोई बता सकता है तो वह है ख़ुद औरत ।
औरत बताए और मर्द सुने और समझे ।
यह मंच इसीलिए बनाया गया है ।
माँ के रूतबे तक पहुंचने से पहले एक औरत जिन मुश्किल इम्तेहानों से गुज़रती है और जो कुछ भी वह महसूस करती है , वह सब अब हमारे सामने आ जाना चाहिए ताकि अगर पहले औरत को न जाना जा सका हो तो न सही लेकिन उस गलती को अब तो सुधार लिया जाए । अगर ऐसा हो गया तो यक़ीनन तब हमारा भविष्य वैसा भयानक और अंधेर न होगा जैसा कि अतीत में रह चुका है और वर्तमान चल ही रहा है ।
इस अभियान को मजबूती और गति देने के लिए अपने परिचय की महिला ब्लागर्स को इस ब्लाग में ज़्यादा से ज़्यादा जोड़ने की कोशिश करें ताकि इस मंच से एक समवेत स्वर दुनिया भर में गूंजे कि
औरत केवल एक शरीर नहीं होती ।
दुनिया को अगर बदलना है तो उसकी सोच को बदलना ही होगा और यह काम भी औरत को खुद ही करना होगा । नेक मर्द उसका साथ जरूर देंगे क्योंकि वे भी तो जानना चाहते हैं कि औरत आखिर है क्या ?
Comments
बहुत बहुत धन्यवाद उनकी इस रचना से मिलवाने के लिए...
आपने जिस रचना का उल्लेख किया है , वह मेरी नहीं इमरोज़ जी की है... संभवतः आपने ब्लॉग को सही ढंग से
नहीं देखा है....
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (7/2/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com