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पैसा, शोहरत और बेक़ैद आज़ादी का नाम कामयाबी नहीं है Success

ज़िया ख़ान मर गई. उसने 3 दिन पहले पंखे से लटक कर खुदकुशी कर ली थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में आया है कि मरने से पहले उसने शराब भी पी थी. मरने से पहले उसने सूरज पंचोली को फ़ोन किया था. अखबारों के मुताबिक़-   बॉलिवुड ऐक्ट्रेस जिया खान की खुदकुशी केस में सूरज पंचोली के अलावा एक नाम बार-बार आ रहा है और वह है नीलू। जुहू पुलिस ने बुधवार को इस नीलू के रहस्य से पर्दा उठाया। पहले शक किया जा रहा था कि यह नीलू सूरज और जिया की प्रेम कहानी का एक तीसरा कोण है, पर जुहू पुलिस के एक अधिकारी ने एनबीटी को बताया कि यह नीलू किसी कम उम्र की लड़की का नाम नहीं, एक महिला का है। यह नीलू पेश से जूलर है। शायद जूलरी की शॉपिंग के दौरान जिया और सूरज की नीलू से पहचान हुई होगी। पुलिस सूत्रों के मुताबिक, सोमवार रात को जब जिया ने सूरज को अपने घर मिलने के लिए एसएमएस किया, तो सूरज ने कहा कि उसे नीलू से 10 बजे मिलने जाना है। इसके कुछ घंटे बाद जब जिया ने नीलू को फोन किया कि क्या आपके यहां सूरज है, तो नीलू ने कहा कि नहीं, वह तो कल आनेवाला है। इस पर जिया ने मान लिया कि शायद सूरज किसी और लड़की के पास गया है। इसी को ल...

बाद इसके किसी भी दिन क्या माँ है याद फिर आती .-HAPPY MOTHER'S DAY

तरक्की इस जहाँ में है तमाशे खूब करवाती , मिला जिससे हमें जीवन उसे एक दिन में बंधवाती . महीनों गर्भ में रखती ,जनम दे करती रखवाली , उसे औलाद के हाथों है कुछ सौगात दिलवाती . सिरहाने बैठ माँ के एक पल भी दे नहीं सकते , दिखावे में उन्हीं से होटलों में मंच सजवाती . कहे माँ लाने को ऐनक ,नहीं दिखता बिना उसके , कुबेरों के खजाने में ठन-गोपाल बजवाती . बढ़ाये आगे जीवन में दिलाती कामयाबी है , उसी मैय्या को औलादें, हैं रोटी को भी तरसाती . महज एक दिन की चांदनी ,न चाहत है किसी माँ की , मुबारक उसका हर पल तब ,दिखे औलाद मुस्काती . याद करना ढूंढकर दिन ,सभ्यता नहीं हमारी है , हमारी मर्यादा ही रोज़ माँ के पैर पुजवाती . किया जाता याद उनको जिन्हें हम भूल जाते हैं , है धड़कन माँ ही जब अपनी कहाँ है उसकी सुध जाती . वजूद माँ से है अपना ,शरीर क्या बिना उसके , उसी की सांसों की ज्वाला हमारा जीवन चलवाती . शब्दों में नहीं बंधती ,भावों में नहीं बहती , कड़क चट्टान की मानिंद हौसले हममे भर जाती . करे कुर्बान खुद को माँ,सदा औलाद की ...

मदर्स डे पर सभी माओं को शुभकामनायें Mother's Day

मदर्स डे पर सभी माओं को शुभकामनायें. इस मौके पर पेश है यह उम्दा कलाम- 'माँ' The mother मौत की आग़ोश में जब थक के सो जाती है माँ तब कहीं जाकर ‘रज़ा‘ थोड़ा सुकूं पाती है माँ फ़िक्र में बच्चे की कुछ इस तरह घुल जाती है माँ नौजवाँ होते हुए बूढ़ी नज़र आती है माँ रूह के रिश्तों की गहराईयाँ तो देखिए चोट लगती है हमारे और चिल्लाती है माँ ओढ़ती है हसरतों का खुद तो बोसीदा कफ़न चाहतों का पैरहन बच्चे को पहनाती है माँ एक एक हसरत को अपने अज़्मो इस्तक़लाल से आँसुओं से गुस्ल देकर खुद ही दफ़नाती है माँ भूखा रहने ही नहीं देती यतीमों को कभी जाने किस किस से, कहाँ से माँग कर लाती है माँ हड्डियों का रस पिला कर अपने दिल के चैन को कितनी ही रातों में ख़ाली पेट सो जाती है माँ जाने कितनी बर्फ़ सी रातों में ऐसा भी हुआ बच्चा तो छाती पे है गीले में सो जाती है माँ जब खिलौने को मचलता है कोई गुरबत का फूल आँसुओं के साज़ पर बच्चे को बहलाती है माँ फ़िक्र के श्मशान में आखिर चिताओं की तरह जैसे सूखी लकड़ियाँ, इस तरह जल जाती है माँ भूख से ...

सौतेली माँ भी ले सकती है अपने पति के बच्चों से भरण पोषण का ख़र्च

दैनिक देशबन्धु, नई दिल्ली शनिवार, दिनांक 27 अप्रैल 2013 पृ. 7

सवा साल की बच्ची हवस का शिकार

संगरूर (पीटीआई)। पंजाब के संगरूर ज़िले में सवा साल की बच्ची को 14 साल के उसके फूफेरे भाई ने हैवानियत का शिकार बनाया। बच्ची की माँ मीना बाई ने महिला चौकी में दर्ज शिकायत में बताया कि उसके पति के सगे भान्जे जशन शर्मा ने कल रात उसकी मासूम बच्ची को हवस का शिकार बनाया। वह भटिन्डा से आया था। मुल्ज़िम के खि़लाफ़ छाजली थाना में मामला दर्ज कर लिया गया है। मीना ने बताया कि पहले तो उसने घर की इज़्ज़त रखने के लिए मामले को दबाने की कोशिश की लेकिन बच्ची की हालत ख़राब होने से परेशान हो कर उसने इसकी सूचना पुलिस को दे दी। बच्ची संगरूर के सिविल अस्पताल में दाखि़ल है और उसकी मेडिकल जांच कर ली गई है। जिस में अस्मत-दरी की तस्दीक़ हो गई है। इस सिलसिले में मुक़ददमा दर्ज करके नाबालिग़ मुल्ज़िम को गिरफ़्तार कर लिया गया है। रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा उर्दू दिनांक 24 अप्रैल 2013 पृ. 8 ................................................................ यह केस भी दिल्ली के गुड़िया रेप कांड जैसा ही संगीन है। बच्ची की उम्र को देखते हुए यह उससे भी ज़्यादा घिनौना है। इसके बावजूद इस केस पर दिल्ली में कोई आंदोलन नहीं हो...

क्या बूढ़े माँ बाप के लिए हमारे दिल में मुहब्बत बाक़ी नहीं बची ?

रेखा श्रीवास्तव जी ने अपनी पोस्ट ‘कुम्भ: एक पक्ष यह भी‘ में बताया है कि कुछ लोग अपने बूढ़े माँ-बाप को कुम्भ में छोड़कर चले गए। इनकी तादाद 50 से ज़्यादा है। ये सभी निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से हैं। वह पूछती हैं कि क्या उनके घर वाले गरीबी से त्रस्त होकर इन्हें यहाँ छोड़ गए ? क्या गरीबी के आगे हमारी संवेदनाएं मर चुकी हैं?  कभी उनहोने ये सोचा कि  क्या उनके माता -पिता इतने समर्थ होंगे कि उनको आराम से पाला  होगा फिर वे क्यों उन्हें कहीं छोड़ कर नहीं चले गये. ? अमीर माँ बाप ग़रीबों से ज़्यादा बदनसीब हैं। उनके बेटे उन्हें छोड़ने के लिए कुम्भ आने का इंतेज़ार नहीं करते। वृद्धाश्रम हर सकय उपलब्ध हैं।

एक फ़िलिस्तीनी माँ का दर्द कौन समझेगा ?

माँ जो बच्चे की खरोंच की तकलीफ़ भी ख़ुद पर महसूस करती है उस माँ को फ़िलिस्तीन में अपने बच्चों को अपनी ही गोद में तड़प तड़प कर मरते हुए देखना पड़ रहा है।