तरक्की इस जहाँ में है तमाशे खूब करवाती , मिला जिससे हमें जीवन उसे एक दिन में बंधवाती . महीनों गर्भ में रखती ,जनम दे करती रखवाली , उसे औलाद के हाथों है कुछ सौगात दिलवाती . सिरहाने बैठ माँ के एक पल भी दे नहीं सकते , दिखावे में उन्हीं से होटलों में मंच सजवाती . कहे माँ लाने को ऐनक ,नहीं दिखता बिना उसके , कुबेरों के खजाने में ठन-गोपाल बजवाती . बढ़ाये आगे जीवन में दिलाती कामयाबी है , उसी मैय्या को औलादें, हैं रोटी को भी तरसाती . महज एक दिन की चांदनी ,न चाहत है किसी माँ की , मुबारक उसका हर पल तब ,दिखे औलाद मुस्काती . याद करना ढूंढकर दिन ,सभ्यता नहीं हमारी है , हमारी मर्यादा ही रोज़ माँ के पैर पुजवाती . किया जाता याद उनको जिन्हें हम भूल जाते हैं , है धड़कन माँ ही जब अपनी कहाँ है उसकी सुध जाती . वजूद माँ से है अपना ,शरीर क्या बिना उसके , उसी की सांसों की ज्वाला हमारा जीवन चलवाती . शब्दों में नहीं बंधती ,भावों में नहीं बहती , कड़क चट्टान की मानिंद हौसले हममे भर जाती . करे कुर्बान खुद को माँ,सदा औलाद की
बस एक माँ है जो मुझ से कभी ख़फ़ा नहीं होती