रेखा श्रीवास्तव जी ने अपनी पोस्ट
‘कुम्भ: एक पक्ष यह भी‘ में बताया है कि
कुछ लोग अपने बूढ़े माँ-बाप को कुम्भ में छोड़कर चले गए। इनकी तादाद 50 से ज़्यादा है। ये सभी निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से हैं। वह पूछती हैं कि
क्या उनके घर वाले गरीबी से त्रस्त होकर इन्हें यहाँ छोड़ गए ?
क्या गरीबी के आगे हमारी संवेदनाएं मर चुकी हैं?
कभी उनहोने ये सोचा कि क्या उनके माता -पिता इतने समर्थ होंगे कि उनको आराम से पाला होगा फिर वे क्यों उन्हें कहीं छोड़ कर नहीं चले गये. ?
अमीर माँ बाप ग़रीबों से ज़्यादा बदनसीब हैं। उनके बेटे उन्हें छोड़ने के लिए कुम्भ आने का इंतेज़ार नहीं करते। वृद्धाश्रम हर सकय उपलब्ध हैं।
‘कुम्भ: एक पक्ष यह भी‘ में बताया है कि
कुछ लोग अपने बूढ़े माँ-बाप को कुम्भ में छोड़कर चले गए। इनकी तादाद 50 से ज़्यादा है। ये सभी निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से हैं। वह पूछती हैं कि
क्या उनके घर वाले गरीबी से त्रस्त होकर इन्हें यहाँ छोड़ गए ?
क्या गरीबी के आगे हमारी संवेदनाएं मर चुकी हैं?
कभी उनहोने ये सोचा कि क्या उनके माता -पिता इतने समर्थ होंगे कि उनको आराम से पाला होगा फिर वे क्यों उन्हें कहीं छोड़ कर नहीं चले गये. ?
अमीर माँ बाप ग़रीबों से ज़्यादा बदनसीब हैं। उनके बेटे उन्हें छोड़ने के लिए कुम्भ आने का इंतेज़ार नहीं करते। वृद्धाश्रम हर सकय उपलब्ध हैं।
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