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विवाह पूर्व यौन सम्बंध की त्रासदी

बुद्धिजीवी का काम विचार करना होता है। एक बुद्धिजीवी ने अपने साथ काम करने वाली महिला को बड़ी उम्र तक कुंवारा देखा तो उन्होंने यह विचार किया कि आखि़र एक लड़की अविवाहित रहते हुए किसी पुरूष से यौन सम्बंध बना ले तो इसमें हर्ज ही क्या है ?
इंसान के अंदर बुद्धि के साथ एक चीज़ मन भी होती है। मन में विचार आते ही रहते हैं। इनमें से हरेक विचार का पालन नहीं किया जा सकता क्योंकि इंसान के अंदर विवेक भी होता है।
औरत और मर्द का आपसी ताल्लुक़ एक अनोखी लज़्ज़त देखा है। यह सही है। यह लज़्ज़त सबको नसीब हो, यह सोचना भी ग़लत नहीं है लेकिन इंसान को जानवर के स्तर पर उतार देना ठीक नहीं है। इंसान का विवेक जानवर से ज़्यादा विकसित होता है। इसीलिए वह सही और ग़लत की तमीज़ भी जानवरों से ज़्यादा रखता है। सही-ग़लत की यह तमीज़ ज़मीन के हरेक हिस्से में और हरेक इंसान में पाई जाती है।
पूर्व हो या पश्चिम, उत्तर हो या दक्षिण, देश हो या विदेश, औरत और मर्द के लिए यौन संबंध की व्यवस्था के लिए निकाह और विवाह की एक रस्म को अदा करना सभी जगह ज़रूरी समझा जाता है। इसके ज़रिये मस्ती के साथ हस्ती की ज़िम्मेदारी को भी बांटा जाता है। सेक्स में मज़ा भी है लेकिन अगर इसे नियमों की अनदेखी करके लिया जाए तो यह सज़ा भी है। जिन समाजों में ऐसा किया गया है, वहां अवैध संतानों, एकल और भग्न परिवारों की बाढ़ आ गई है।

यौन सम्बंध देखने में तो केवल दो व्यक्तियों का निजी सम्बंध लगता है लेकिन दरअसल यह एक तीसरे जीव की रचना का माध्यम भी है। अगर नर-नारी अपने अधिकार और अपने कर्तव्यों की बात नज़रअंदाज़ करके सेक्स कर लें तो उनके मिलन से पैदा होने वाले बच्चे के प्रति वे अपने कर्तव्यों को कैसे नज़रअंदाज़ कर पाएंगे ?
और अगर वे करना भी चाहें तो समाज और क़ानून उन्हें ऐसा करने की अनुमति कब देगा ?
कांग्रेसी नेता एन. डी. तिवारी और उज्जवला ने आपस की रज़ामंदी से बिना विवाह किए यौन सम्बंध बनाए। इसके नतीजे में रोहित जी पैदा हुए। रोहित ने कुछ भी नहीं किया लेकिन उसे कितनी मानसिक वेदना सहनी पड़ी है, इसका अंदाज़ा कोई नहीं कर सकता। अपने बेटे की पीड़ा ने उज्जवला की पीड़ा को भी दुगुना कर दिया होगा। इसमें कोई शक नहीं है। एन. डी. तिवारी को अपना राजनीतिक गुरू और अपना नेता मानने वालों की तादाद भी लाखों में है। बुढ़ापे में हुए एन. डी. तिवारी के अपमान की पीड़ा ने उन लाखों लोगों को भी पीड़ा के सिवाय कुछ न दिया।
 
इस तरह की बहुत सी घटनाएं हैं और हरेक घटना हमें यही सिखाती है कि बुराई के रास्ते पर चलने का अंजाम कभी अच्छा नहीं हो सकता।
कोई भी नर नारी अपनी प्राकृतिक इच्छाओं का दमन ख़ुशी से नहीं करता है। उसके पीछे कुछ मजबूरियां ज़रूर होती हैं और कभी कभी हद से बढ़ी हुई ख्वाहिशों की वजह से भी लोग अपनी क़ुदरती ख्वाहिशों को कुचलने पर मजबूर होते हैं।
इस का इलाज यही है कि बेलगाम ख्वाहिशों को क़ाबू में किया जाए और लोगों की मजबूरी को मिलकर दूर किया जाए। तब ऐसा समाज बनेगा कि जो भी लड़का-लड़की शादी के योग्य होगा और वह शादी करना चाहेगा तो वह शादी ज़रूर कर सकेगा। तब आपसी सम्बंध में भी आनंद, माधुर्य और स्थिरता होगी और इसके नतीजे में पैदा होने वाली औलाद को भी उचित देखभाल और सुरक्षा मिल पाएगी।
इंसान अपने लालच को क़ाबू करे और सादगी से जिए तो सबके विवाह का इंतेज़ाम हो सकता है और विवाह हो सकता है तो फिर अविवाहित रहने की वजह बाक़ी ही कहां रहती है ?
फिर भी जो अविवाहित रहना चाहें रहें और जो कुछ करना चाहें करें लेकिन इन ‘कुछ‘ लोगों के कारण पूरे समाज की सही-ग़लत की तमीज़ को विकृत नहीं किया जा सकता।

Comments

रचना ईश्वर ने रची, तन मन मति अति-भिन्न |
प्राकृत के विपरीत गर, करे खिन्न खुद खिन्न |
करे खिन्न खुद खिन्न, व्यवस्था खुद से करता |
करे भरे वह स्वयं, बुढापा बड़ा अखरता |
नाड़ी में है ताब, आबरू की क्या चिंता |
अंत घड़ी जब पास, शुरू की गलती गिनता ||
Zafar said…
बहुत ही अच्छा विशलेषण किया है आपने, इस के लिए बहुत बहुत बधाई
"इस तरह की बहुत सी घटनाएं हैं और हरेक घटना हमें यही सिखाती है कि बुराई के रास्ते पर चलने का अंजाम कभी अच्छा नहीं हो सकता।
इंसान अपने लालच को क़ाबू करे और सादगी से जिए तो यह समाज बहुत अच्छा बन सकता है!"
Zafar said…
Very nice, honest and accurate analysis of the subject. We must open our eyes to save our coming generations from social catastrophe.
Zafar said…
Results of too much azadi, and not respecting the religious and social values is before us. It has completely destroyed the family system in west, and everybody is suffering from it, women and children are most effected. Here I want to quote some lines from an interview of a western women I have read somewhere "Pretty women are always welcome in western society, and enjoy a good respect. But as soon as she crosses 35, she is ignored by the society in such a rude way that she feels humiliated beyond description." True Religious values are the best for human society in all respect.
इन ‘कुछ‘ लोगों के कारण पूरे समाज की सही-ग़लत की तमीज़ को विकृत नहीं किया जा सकता।

आज के समाज के लिये हर पहलू पर यही लागू कीजिये फिर देखिये घोड़े कैसे भागते हैं !

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