इस आमिर का दर्द न पूछो
प्रतिरोध में सैयद फहद
दिल्ली के आमिर अब आजाद हैं। 14 साल जेल में बिताने के बाद उनको अपनी जिंदगी पटरी पर लाने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है, लेकिन वह घबराए नहीं हैं। हालांकि अपनी अम्मी की हालत उन्हें मायूसी की तरफ ले जाती है। वह कहते हैं कि मेरा केस अब्बू ही देखते थे। वह जल्द से जल्द मुझे रिहा करवाना चाहते थे, लेकिन मेरे केस के दौरान ही उनका इंतकाल हो गया। उसके बाद सारी जिम्मेदारी मेरी अम्मी ने ले ली। मुझे रिहा कराने के लिए उन्हें दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं। शायद यह सब बर्दाश्त नहीं कर पाईं वह, उन्हें ब्रेन हैमरेज हो गया, जिसके बाद उनकी जान तो बच गई, पर चेतना और आवाज, दोनों चली गई। आज वह इस हालत में भी नहीं कि मेरी रिहाई की खुशियां मना सकें। लोग कहते हैं कि इनका इलाज मुमकिन है। पर मेरे घर की सारी जमा-पूंजी मेरी रिहाई में ही खर्च हो गई।
यकीकन यह एक आमिर की कहानी नहीं है। देश के हजारों नौजवान जेलों में सड़ रहे हैं। हमारी जेलें ऐसे लोगों से भरी पड़ी हैं, जिन पर कभी मुकदमा नहीं चलाया गया। हमारी अदालतों के गलियारे ऐसे लोगों से अटे पड़े हैं, जिन्हें अपनी सफाई में कुछ कहने का कोई मौका नहीं मिला। हमारे आसपास ऐसे बेशुमार लोग हैं, जो आक्रोश और हिकारत से भरे हुए हैं। आमिर तो खुशकिस्मत हैं कि उनके मुकदमे की सुनवाई हुई और इंसाफ मिला, पर हजारों नौजवान अब भी इंसाफ की राह देख रहे हैं।
क्या इंसाफ कभी उनके मुकद्दर का दरवाजा भी खटखटाएगा?
Sorce : http://www.livehindustan.com/news/editorial/guestcolumn/article1-story-57-62-236553.html
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