Skip to main content

पानी से ."पानी" लिखना पानी पर

रिश्ते बनाना उतना ही आसान है जितना कि ...
मिटटी पर ..- मिटटी से ...- "मिटटी " लिख देना ,,
और रिश्ते निभाना उतना ही कठिन, जितना कि ....
पानी पर ...-पानी से ...- "पानी" लिख पाना !!

Comments

Unknown said…
बेहतरीन प्रस्तुति
sangita said…
माँ की इससे स्तुति नहीं हो सकती है |
मुन्नवर राणा ने कहा भी है की "मैं जब बाहर निकलता हूँ,मेरी माँ सजदे में होती है,माँ के सामने कभी रोना नहीं ,जहाँ बुनियाद हो वहां इतनी नमी अच्छी नहीं होती" |
Sanju said…
बहुत ही बेहतरीन.........
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
http://sandeshpoint.blogspot.com
vidya said…
बहुत बढ़िया...
कुंवर बैचेन जी कि पंक्तियाँ हैं...
बढ़िया शेयरिंग.
..बेजोड़ भावाभियक्ति....
Pallavi saxena said…
सत्य वचन ...

Popular posts from this blog

माँ बाप की अहमियत और फ़ज़ीलत

मदर्स डे पर विशेष भेंट  इस्लाम में हुक़ूक़ुल ऐबाद की फ़ज़ीलत व अहमियत इंसानी मुआशरे में सबसे ज़्यादा अहम रुक्न ख़ानदान है और ख़ानदान में सबसे ज़्यादा अहमियत वालदैन की है। वालदैन के बाद उनसे मुताल्लिक़ अइज़्जा वा अक़रबा के हुक़ूक़ का दर्जा आता है डाक्टर मोहम्मद उमर फ़ारूक़ क़ुरैशी 1 जून, 2012 (उर्दू से तर्जुमा- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम) दुनिया के हर मज़हब व मिल्लत की तालीमात का ये मंशा रहा है कि इसके मानने वाले अमन व सलामती के साथ रहें ताकि इंसानी तरक़्क़ी के वसाइल को सही सिम्त में रख कर इंसानों की फ़लाहो बहबूद का काम यकसूई के साथ किया जाय। इस्लाम ने तमाम इंसानों के लिए ऐसे हुक़ूक़ का ताय्युन किया है जिनका अदा करना आसान है लेकिन उनकी अदायगी में ईसार व कुर्बानी ज़रूरी है। ये बात एक तरह का तर्बीयती निज़ाम है जिस पर अमल कर के एक इंसान ना सिर्फ ख़ुद ख़ुश रह सकता है बल्कि दूसरों के लिए भी बाइसे राहत बन सकता है। हुक़ूक़ की दो इक़्साम हैं । हुक़ूक़ुल्लाह और हुक़ूक़ुल ऐबाद। इस्लाम ने जिस क़दर ज़ोर हुक़ूक़ुल ऐबाद पर दिया है इससे ये अमर वाज़ेह हो जाता है कि इन हुक़ूक़ का कितना बुलंद मुक़ाम है और उन...

माँ The mother (Urdu Poetry Part 2)

हम  बलाओं में कहीं घिरते हैं तो बेइख्तियार ‘ख़ैर हो बच्चे की‘ कहकर दर पे आ जाती है माँ दूर हो जाता है जब आँखों से गोदी का पला दिल को हाथों से पकड़कर घर को आ जाती है माँ दूसरे ही दिन से फिर रहती है ख़त की मुन्तज़िर दर पे आहट हो हवा से भी तो आ जाती है माँ चाहे हम खुशियों में माँ को भूल जाएँ दोस्तो ! जब मुसीबत सर पे आती है तो याद आती है माँ दूर हो जाती है सारी उम्र की उस दम थकन ब्याह कर बेटे की जब घर में बहू लाती है माँ छीन लेती है वही अक्सर सुकूने ज़िंदगी प्यार से दुल्हन बनाकर जिसको घर लाती है माँ हमने यह भी तो नहीं सोचा अलग होने के बाद जब दिया ही कुछ नहीं हमने तो क्या खाती है माँ ज़ब्त तो देखो कि इतनी बेरूख़ी के बावुजूद बद्-दुआ देती है हरगिज़ और न पछताती है माँ अल्लाह अल्लाह, भूलकर हर इक सितम को रात दिन पोती पोते से शिकस्ता दिल को बहलाती है माँ बेटा कितना ही बुरा हो, पर पड़ोसन के हुज़ूर रोक कर जज़्बात को बेटे के गुन गाती है माँ शादियाँ कर करके बच्चे जा बसे परदेस में दिल ख़तों से और तस्वीरों से बहलाती है माँ अपने सीने पर रखे है कायनाते ज़िंदगी ये ज़मीं इस वास्ते ऐ दोस्त कहलाती है...

Maa...

MAA क्या होती है माँ   हजारों दर्द और तकलीफ़ें सह कर अपने बच्चे की एक मासूम मुस्कुराहट को देख कर अपने सारे गम भूला देने वाली होती है माँ , या फिर अपने बच्चे की खुशी के लिए कुछ भी त्याग करने को तत्पर रहने वाली होती है माँ , या फिर अपने बच्चे के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए दिल पर पत्थर रख कर निर्णय लेने वाली होती है माँ , माँ एक ऐसा शब्द है जिसके नाम में ही सुकून छुपा होता है प्यार छुपा होता है। जिसका नाम लेते ही हर दर्द जैसे कम हो जाता है , है ना , J कि सी ने कितना सुंदर कहा है ना की “ हाथों की लकीरें बादल जाएगी गम की यह जंज़ीरे पिघल जाएगी हो खुदा पर भी असर तू दुआओं का है ”   कितना कुछ जुड़ा होता है हमारे इस जीवन में इस “ माँ ” शब्द के नाम के साथ जैसे प्यार , डांट यादें एक बच्चे के बचपन की यादें और एक माँ की खुद के बचपन और अपने बच्चे के बचपन दोनों की यादें, कुछ खट्टी कुछ मिट्ठी यादें। जब कोई माँ  एक बच्चे को जन्म देती है तब वह उसके बचपन में अपना खुद का बचपन देख कर जीती है। उस नन्हे से पौधे को अपनी ममता और संस्कारों से पाल पोस कर बड़ा करती है इसलिए ...