Skip to main content

क्या अपाहिज भ्रूणों को मार देने के बाद भी डाक्टर को मसीहा कहा जा सकता है ? 'Spina Bifida'

मेरी बेटी अनम का नाम हिंदी ब्लॉग जगत के लिए एक जाना पहचाना नाम है। हिंदी ब्लॉग जगत में उसकी उम्र के किसी बच्चे का  इतना चर्चा नहीं हुआ, जितना कि उसका हुआ है।
यह ठीक वही वक्त है जब हमने अपनी प्यारी अनम को उसके झूले में मृत पाया था। आज से ठीक एक साल पहले 21 और 22 जुलाई की दरम्यानी रात को जब वह सोई तो हम नहीं जानते थे कि सुबह को उसके पालने से जब हम उसे उठाएंगे तो वह हमें एक बेजान लाश की शक्ल में मिलेगी। महज़ 22 दिन इस दुनिया में रहकर वह चल बसी और अच्छा ही हुआ कि वह चल बसी।
'Spina Bifida' की वजह से वह पैदाइशी तौर पर एक अपाहिज बच्ची थी। उसकी दोनों टांगें बेकार थीं। उसके सिर की हड्डियों के बनने में भी कुछ कमी रह गई थी और उसकी रीढ़ की हड्डी भी तिरछी थी। उसकी पैदाइश से पहले जब लेडी डाक्टर मीनाक्षी राना ने उसकी सेहत को जांचने के लिए अल्ट्रा साउंड करवाया तो ये सब बातें उसकी रिपोर्ट में सामने आ गईं।
डाक्टर मीनाक्षी ने कहा कि इस बच्ची को पैदा नहीं होने देना है, यह अपाहिज है और आपके किसी काम की नहीं है।
हमने पूछा कि यह ज़िंदा तो है न ?
उन्होंने कहा कि हां ज़िंदा तो है।
तब हमने कहा कि वह ज़िंदा है तो हम उसे मार नहीं सकते। ज़िंदगी और मौत के फ़ैसले करने वाला ख़ुदा है और बच्चे को मां के पेट में मार देना भी उसकी नज़र में क़त्ल है। हम अपाहिज बच्चे को पाल सकते हैं लेकिन ख़ुदा को नाराज़ नहीं कर सकते।
उन्होंने ज़बर्दस्त तरीक़े से हमारे फ़ैसले की मुख़ालिफ़त की और पर्चे पर उसे टर्मिनेट करने की सलाह तहरीर कर दी।
ऐसा करते हुए उन्हें बिल्कुल भी डर न लगा, न तो एक औरत की हैसियत से और न ही एक डाक्टर की हैसियत से क्योंकि उन्हें मेडिकल कॉलिजेज़ में यही सिखाया जाता है और क़ानून भी इसे जायज़ क़रार देता है। ऐसे ही औंधे फ़ैसले लिये जाते हैं जब कोई सभ्यता ख़ुदा को भूल जाती है और ख़ुद वह काम करने की कोशिश करती है जो कि केवल ख़ुदा, रब, ईश्वर, अल्लाह, गॉड या इक निरंकार का काम है। जिस काम को अल्लाह ने हराम ठहराया है उसे हमारी सभ्यता ने हलाल और जायज़ कर लिया है। मासूम अपाहिज बच्चों को उनकी मांओं के पेट में मार डालने को जायज़ करने वाले हाइली क्वालिफ़ाईड लोग हैं। ख़ुदा से कटने  के बाद शिक्षा भी सही मार्ग नहीं दिखा पाती।
क्या वाक़ई अपाहिज बच्चों को उनकी मांओं के पेट में ही मार डालना उचित है ?
आखि़र किस ख़ता और किस जुर्म के बदले ?
अनम की पैदाइश ने दुनिया के सामने यही सवाल खड़ा कर दिया। इस सवाल को हमने हिंदी ब्लॉगिंग के ज़रिये दुनिया के बुद्धिजीवियों के सामने रखा और उनके ज़मीर को झिंझोड़ा कि देखिए आपकी दुनिया में यह क्या हो रहा है ?
मिलकर आवाज़ उठाइये और अपाहिज भ्रूणों की जान बचाइये।
हर साल जाने कितने लाख भ्रूण हमारे देश में क़त्ल कर दिए जाते हैं और दुनिया भर में क़त्ल कर दिए जाने वाले भ्रूणों की तादाद तो और भी ज़्यादा है और यह तब तक रूकेगा भी नहीं जब तक कि लोग जीवन के बारे में जीवनकार की योजना को सही तौर नहीं जान लेंगे।
जब अनम पैदा हुई तो हमें पता चला कि हमारे घर में लड़की पैदा हुई है। इस तरह एक कन्या भ्रूण की जान बच गई। लोग केवल कन्या भ्रूण को बचाने की बात करते हैं। यह एक अधूरी बात है। सही और पूरी बात यह है कि हरेक भ्रूण को बचाने की बात करनी चाहिए, चाहे वह भ्रूण कन्या हो या नर, चाहे वह सेहतमंद हो या फिर बीमार और अपाहिज ।
अनम हमारे दरम्यान आई और 22 दिन रहकर चली गई लेकिन वह ऐसे सवाल हमारे सामने छोड़ गई है जिन्हें हल किया जाना अभी बाक़ी है।
जितने भी दिन वह हमारे बीच रही, वह एक अच्छी बच्ची की तरह पेश आई। उसके अंदर ज़बर्दस्त सब्र था। वह मासूम थी। वह इस दुनिया से चली गई। वह इस दुनिया की सख्तियों से बच गई। उसके हक़ में उसका जाना अच्छा ही हुआ। ऐसा हमारे उस्ताद जनाब सय्यद साहब ने फ़रमाया। उनके ख़ुद दो-दो अपाहिज बच्चियां हैं। एक का इन्तेक़ाल तब हुआ जबकि वह 22 साल की हो गई थी। वह अपने बल से हिल भी नहीं सकती थी और न ही वह देख और सुन सकती थी और न ही वह बोल कर अपनी तकलीफ़ ही किसी को बता सकती थी। इसी तरह की एक और बच्ची उनके घर में अभी भी है। अपाहिज बच्चों को पालने में जो व्यवहारिक दिक्क़तें हैं, उन्हें वे ख़ूब जानते हैं। उनकी बातों ने दिल को सुकून दिया।
अनम की मौत पर हिंदी ब्लॉग जगत में भी ज़बर्दस्त दुख मनाया गया। अनगिनत ब्लॉग पर उस मासूम को याद किया गया, उसके लिए दुआ और प्रार्थना की गई। हिंदी ब्लॉगर्स के इस उम्दा बर्ताव ने साबित कर दिया कि हिंदी ब्लॉग जगत से हमदर्दी का जज़्बा अभी रूख़सत नहीं हुआ है।
बहरहाल, वक्त तेज़ी से गुज़र गया और आज फिर वही रात आ पहुंची है जिसकी सुबह हमारे लिए नाख़ुशगवार थी।
...लेकिन अनम तो ख़ुदा की थी, उसने दी थी और उसी ने ले ली। चीज़ जिसकी है हुक्म भी उसी का चलेगा। हम उसके हुक्म पर राज़ी हैं और उस मालिक से दुआ करते हैं कि वह हमें उससे मिलाए, बेहतर हाल में, अपनी रज़ा के साथ और इस तरह कि फिर कभी उससे बिछड़ना न हो।

आमीन ,
या रब्बल आलमीन !

जिन आर्टिकल्स में अनम का ज़िक्र किया गया, उनमें से कुछ ख़ास आर्टिकल्स यहां दिए जा रहे हैं ताकि जो लोग नहीं जानते वे भी इस आंदोलन को जानें, समझें और वे भी अपाहिज भ्रूणों की रक्षा के लिए आवाज़ उठायें और उन लोगों की हिम्मत बढ़ाएं, जो कि किसी अपाहिज बच्चे की परवरिश कर रहे हैं।

Comments

एक दुखद समाचार पढकर आघात लगा.अनवर साहब ने सही कहा कि-मासूम अपाहिज बच्चों को उनकी मांओं के पेट में मार डालने को जायज़ करने वाले उच्च शिक्षित लोग ही हैं।

मैंने सुना है कि-उस मालिक से जब दुआ दूसरों के लिए करों तो जरुर पूरी करता हैं. मैं भगवान महावीर स्वामी जी से प्रार्थना करूँगा कि-वह अनवर जमाल खान साहब को अगले दो साल में उनकी बेटी से मिलाए,बेहतर हाल में,अपनी रज़ा के साथ और इस तरह कि फिर कभी उससे निकाह से पहले जुदा न हो।
Bharat Bhushan said…
इंसानियत के कई आयाम हैं. सबसे बड़ा आयाम है कि संसार में आए हुए को जीवन देखने देना और उसकी खुशी की हिफाज़त करना. इसकी कीमत चुकाना इंसानियत का काम है.
DR. ANWER JAMAL said…
मैं आप तीनों ही भाईयों का शुक्रगुज़ार हूं कि आपने मेरे दुख को समझा और मेरे लिए हमदर्दी ज़ाहिर की लेकिन बात एक अनम की नहीं है और न ही सिर्फ़ मेरे जज़्बात की है बल्कि बात यह है कि मां-बाप को डाक्टर कहता है कि आप इस अपंग बच्चे को क़त्ल कर दीजिए और हर साल लाखों भ्रूण क़त्ल कर दिए जाते हैं। इस विषय पर ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है। अनम तो एक प्रतिनिधि और प्रतीक है उन लाखों अजन्मे बच्चों का जिनका क़त्ल क़ानून की हिमायत से और बाप के ख़र्चे पर मां की मदद से हो रहा है। जितने भी बच्चे के रक्षक थे वही उसकी जान ले लेते हैं। इन परिस्थितियों से कैसे निपटा जाए ?
यह सोचा जाना चाहिए।
तीन दिनों में किसी एक बहन का भी न आना मुझे हैरत में डाल रहा है।
क्या वाक़ई हम इंसानों की दुनिया में ही आबाद हैं ?
Anwar bhai, main do baar aai, aapka likha pada aur Anam ka chehra dekhti reh gayi par kuch keh na saki.. is gham mein aapke saath hoon...
prerna argal said…
maine aaj hi ye post padi aur is dukhau hadase ke baare main jaanaa.padhkar hirdaya dukh se bhar gayaa.bhagwaan use aapse jaladi milaaye yahi kamanaa hai.kokh main kanyaa hatyaa ke jimmedaar log to hai hi per hamaare samaaj ki kuritiyaan,,ladkiyon ko logon ki buri sochon se bachaane ki jimmedari.jaise aajkal ke halaat hain.aur kuch baaten jo maine apni post "ye kaisi neerali reet" main daali hai.ke karan bhi ladkiyon ko kokh main maarne ke kesh badh rahe hain.saare samaaj ko hi apni soch,apni banaai hui kuritiyon aur andhwiswaason ko hi badalne ki jarurat hai.thanks ,
Sadhana Vaid said…
अनवर भाई , अनम के माध्यम से आपने जिस मुद्दे को उठाया है उस पर दर्दमंद होकर, फिक्रमंद होकर गहराई से सोचने की सख्त ज़रूरत है ! हम किसी भी बच्चे के साथ नाइंसाफी नहीं कर सकते ! ईश्वर की मर्जी की मुखालफत करना मैं भी गुनाह समझती हूँ ! बच्ची की तस्वीर देख मन इतना भर आया है कि कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हूँ ! ईश्वर उसे अपनी पनाह में लें और उसकी हिफाज़त करें यही दुआ है !
अनवर जी ,

अनम को विनम्र श्रद्धांजलि ... उसके माध्यम से आपने एक सार्थक मुद्दा उठाया है ... ईश्वर आपको असीम खुशियाँ दे ..
upendra shukla said…
ऐसा काम करने के बाद किसी भी डॉक्टर को मसीहा नहीं कहा जा सकता
बहुत ही सही विषय पर् आपने अपनी प्रस्तुति दी है
anvar ji, ye blog pehli baar padha ...khud se juda laga ..aaj se lagbhag 26 baras pehle mere janam se poorv , maa pita ji bhi yhi sab dekh chuke ....maine aise hee batche k baad janmi thhi ....antar sirf itna tha ki wo beta tha...mujhe khuda k uss farishte k hisse ka pyar bhi mila hai ..wo jaha bhi ho agle janam mein mere hee bade bhai ban kar aaye bass yhi chahti hu.

Popular posts from this blog

माँ बाप की अहमियत और फ़ज़ीलत

मदर्स डे पर विशेष भेंट  इस्लाम में हुक़ूक़ुल ऐबाद की फ़ज़ीलत व अहमियत इंसानी मुआशरे में सबसे ज़्यादा अहम रुक्न ख़ानदान है और ख़ानदान में सबसे ज़्यादा अहमियत वालदैन की है। वालदैन के बाद उनसे मुताल्लिक़ अइज़्जा वा अक़रबा के हुक़ूक़ का दर्जा आता है डाक्टर मोहम्मद उमर फ़ारूक़ क़ुरैशी 1 जून, 2012 (उर्दू से तर्जुमा- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम) दुनिया के हर मज़हब व मिल्लत की तालीमात का ये मंशा रहा है कि इसके मानने वाले अमन व सलामती के साथ रहें ताकि इंसानी तरक़्क़ी के वसाइल को सही सिम्त में रख कर इंसानों की फ़लाहो बहबूद का काम यकसूई के साथ किया जाय। इस्लाम ने तमाम इंसानों के लिए ऐसे हुक़ूक़ का ताय्युन किया है जिनका अदा करना आसान है लेकिन उनकी अदायगी में ईसार व कुर्बानी ज़रूरी है। ये बात एक तरह का तर्बीयती निज़ाम है जिस पर अमल कर के एक इंसान ना सिर्फ ख़ुद ख़ुश रह सकता है बल्कि दूसरों के लिए भी बाइसे राहत बन सकता है। हुक़ूक़ की दो इक़्साम हैं । हुक़ूक़ुल्लाह और हुक़ूक़ुल ऐबाद। इस्लाम ने जिस क़दर ज़ोर हुक़ूक़ुल ऐबाद पर दिया है इससे ये अमर वाज़ेह हो जाता है कि इन हुक़ूक़ का कितना बुलंद मुक़ाम है और उनकी अ

माँ की ममता

ईरान में सात साल पहले एक लड़ाई में अब्‍दुल्‍ला का हत्यारा बलाल को सरेआम फांसी देने की तैयारी पूरी हो चुकी थी. इस दर्दनाक मंजर का गवाह बनने के लिए सैकड़ों का हुजूम जुट गया था. बलाल की आंखों पर पट्टी बांधी जा चुकी थी. गले में फांसी का फंदा भी  लग चुका था. अब, अब्‍दुल्‍ला के परिवार वालों को दोषी के पैर के नीचे से कुर्सी हटाने का इंतजार था. तभी, अब्‍दुल्‍ला की मां बलाल के करीब गई और उसे एक थप्‍पड़ मारा. इसके साथ ही उन्‍होंने यह भी ऐलान कर दिया कि उन्‍होंने बलाल को माफ कर दिया है. इतना सुनते ही बलाल के घरवालों की आंखों में आंसू आ गए. बलाल और अब्‍दुल्‍ला की मां भी एक साथ फूट-फूटकर रोने लगीं.

माँ को घर से हटाने का अंजाम औलाद की तबाही

मिसालः‘आरूषि-हेमराज मर्डर केस’ आज दिनांक 26 नवंबर 2013 को विशेष सीबीाआई कोर्ट ने ‘आरूषि-हेमराज मर्डर केस’ में आरूषि के मां-बाप को ही उम्रक़ैद की सज़ा सुना दी है। फ़जऱ्ी एफ़आईआर दर्ज कराने के लिए डा. राजेश तलवार को एक साल की सज़ा और भुगतनी होगी। उन पर 17 हज़ार रूपये का और उनकी पत्नी डा. नुपुर तलवार पर 15 हज़ार रूपये का जुर्माना भी लगाया गया है। दोनों को ग़ाजि़याबाद की डासना जेल भेज दिया गया है। डा. नुपुर तलवार इससे पहले सन 2012 में जब इसी डासना जेल में बन्द थीं तो उन्होंने जेल प्रशासन से ‘द स्टोरी आॅफ़ एन अनफ़ार्चुनेट मदर’ शीर्षक से एक नाॅवेल लिखने की इजाज़त मांगी थी, जो उन्हें मिल गई थी। शायद अब वह इस नाॅवेल पर फिर से काम शुरू कर दें। जेल में दाखि़ले के वक्त उनके साथ 3 अंग्रेज़ी नाॅवेल देखे गए हैं।  आरूषि का बाप राकेश तलवार और मां नुपुर तलवार, दोनों ही पेशे से डाॅक्टर हैं। दोनों ने आरूषि और हेमराज के गले को सर्जिकल ब्लेड से काटा और आरूषि के गुप्तांग की सफ़ाई की। क्या डा. राजेश तलवार ने कभी सोचा था कि उन्हें अपनी मेडिकल की पढ़ाई का इस्तेमाल अपनी बेटी का गला काटने में करना पड़ेगा?