Skip to main content

बाबा-अम्मी

धक..धक..धक..धकमौत का काउनडाउन शुरु हो चुका था।

मेरे बाबा(पिताजी) हम सब को छोडकर दुनिया को अलविदा कहने चले थे।

अभी सुबह ही तो मैं आईथी आपको छोडकरबाबा

मैं वापस आने ही वाली थी। और जीजाजी का फोन सुनकर आपके पास भी गई। आपके सीनेपर मशीनें लगी हुईं थीं।

आप को ओकसीजन की ज़रुरत थी शायद ईसीलिये। फ़िर भी आप इतने होश में थे कि हम तीनों बहनों और भाइ को पहचान रहे थे। आई.सी.यु में किसी को जाने कि ईजाज़त नहिं थी

….पर बाबाहमारा दिल रो रहा था कि अभी एक ही साल पहले तो मेरीअम्मी हमें छोडकर जहाँ से चली गई थीं आप हम सब होने के बावज़ुद तन्हा ही थे।

हम सब मिलकर आपको सारी खुशियों में शरीक करते …..

परबाबाआप !!हर तरफ मेरी अम्मीको ही ढूंढते रहते थे। आपको ये जहाँ से कोई लेना देना ही नहिं था मेरी अम्मीके जाने के बाद।

क्याबाबा ये रिश्ता इतना ग़हरा हो जाता है?

मुझे याद है आप दोनों ने हम तीनों बहनों को समाज और दुनिया कि परवा किये बिना ईतना पढाया लिखाया

लोग हम बेटीयों को पढाने पर ताने देते रहते थे आप दोनों को।

पर आप और अम्मी डटे रहे अपने मज़बूत ईरादों पर। यहाँ तक की आप ने हमारी जहाँ जहाँ नौकरी लगी साथ दिया। आपको तो था कि हमारी बेटीयाँ अपना मकाम बनायें।

औरबाबा आप दोनों कि महेनत रंग लाई। हम तीनों बहनों और भाई सरकारी नौकरी मे अव्वल दर्जे के मकाम पर गये। शादीयाँ भी अच्छे ख़ानदान में हो गईं।आप ने हमारे लिये ना धूप की परवा की ना बारिश की।

अपने आपको पीसते रहे जीवन की चक्की में।

आप दोनों ने हमारे लिये बहोत सी तकलीफ़ उठाई शायद हम भी इतनी अपने बच्चों के लिये नहिं उठा सकते।

समाज को आपका ये ज़ोरदार जवाब था। आप दोनों महेंदी कि तरहाँ अपने आपको घीसते रहे और हम पर अपना रंग बिखरते रहे अरे आप दोनों दिये कि तरहाँ जलते रहे |

औरहमारी ज़िन्दगीयों में उजाला भरते रहे। आप की ज़बान पर एक नाम बार बार आता रहामुन्ना ! हम तीनों बहनों का सब से छोटा भाई!बाबा हमारे छोटे भाईमुन्नाने भी आप को बचाने के लिये बहोत कोशिश की है।

बाबा हमें थोडी सी ठोकर लगती आप हमें संभाल लेते। आप पर लगी ये मशीनरी मेरी साँसों को जकड रही थी। और आप हमारा हाथ मज़बूती से पकडे हुए थे कि

हम एकदूसरे से बिछ्ड जायें। मौत आपको अपनी आग़ोश में लेना चाहती थी। हम आपको ख़ोना नहिं चाहते थे।बाबा आपकी उंगलीयों को पकड्कर अपना बचपन याद कर रही थी मैं। वही उंगलीयों को थामे हम आज इस राह पर ख़डे हैं। आप दोनों ने हमारे लिये बडी तकलीफ़ें झेली हैं। आप हमें अपनी छोटी सी तंन्ख़्वाह में भी महंगी से महंगी किताबें लाया करते थे।

आपकी भीगी आँखों में आज आंसु झलक रहे थे। बारबार हम आपकी आँखों को पोंछ्ते रहे। नर्स हमें बार बार कहती रही कि बाहर रहो डोकटर साहब आनेवाले हैं।

मुझे गुस्सा रहा था कि आपको डीस्चार्ज लेकर घर ले जाउं कम से कम आपको तन्हाई तो नहिं महसूस होगी। हम दो राहे पर थे या तो आपकी जान बचायें या फ़िर आपके पास रहें।

धक..धक..धक.. में आप खामोश हो गये थोडी देर आँखें खोलकर बंद कर लीं आपने। हमें लगा आप सो रहे हैं

पर…. डोकटर ने आकर कहा ” He is expired”

आप हमें छोडकर आख़िरअम्मी के पास पहोंच ही गये।बाबाआपकी तस्वीर जो पीछ्ले साल ली गई थी मेरे पास है आपअम्मीकी क़ब्र पर तन्हा बैठे हैं|

baabaa

आज आपको भी बिल्कुल अम्मी के पास ही दफन कर आये हैं हम।

आपकी यादें हैं हमारे लिये बाबा यह लिखते हुए मेरी आँख़ों के आगे आँसुओं कि चिलमन जा रही है।

छीप छीपकर पोंछ रही हुं ताकि कोई मुझे रोता हुआ देख ले।

ये कैसी विडंबना हैबाबा”!!!!

बाबा”मैं अब बहोत कम आपके घर जाती हुं ..

क्योकि आप और अम्मी की वो हर जगह याद आती है ….

और मैं जब भी जाती हुं आपदोनों को ढुंढती रहती हुं।

आप का बिस्तर,कुर्सी जिस पर बैठकर आप किताबों के पन्ने पलटाया करते थे।

क्या लिखुं बाबा !!! बहोत लिखना है पर लिख नहिं पाती। ये आँसु कुछ लिखने नहिं दे रहे।

बार बार पोंछ्ने पडते हैं इन्हें।

बाबा आपने तो हमारी ज़िन्दगी लिख दी है।

अल्लाह! आपदोनों को जन्नत नसीब करे। आमिन ।

Comments

Roshi said…
maa pita ki kami ko bahut hi marmik dhag se aapne likha hai iswar dono ko jannat bakshe
Pallavi saxena said…
मोहतरमा आप ने लिखा तो बहुत ही मार्मिक है मगर यदि आप बुरा ना माने तो ज़रा अपनी speallings पर ध्यान दें जैसे नहिं जबकि सही शब्द है (नहीं)भाइ का सही शब्द होगा (भाई)इत्यादि hope you don't mind keep writting..best wishes....
DR. ANWER JAMAL said…
‘इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन‘
यानि कि हम सब अल्लाह के हैं और उसी की और हमें लौटना है।
(अलक़ुरआन)
अल्लाह आपको सब्र ए जमील अता करे और जन्नत में आपको आपके वालिदैन के पास इकठ्ठा करे जब कि सब इकठ्ठा किए जाएं।
अल्लाह आपके वालिदैन की मग़फ़िरत करे और उनके दर्जात बुलंद करे, उनकी ख़ताएं बख्श दे और उनसे राज़ी हो।
आमीन !!!
चल खुसरो घर आपने रैन भई चहुं देस
जन्नत नसीब करे।
S.M.Masoom said…
पढ़ कर आँखें भर आई. अल्लाह आप के वालिदैन को अह्लेबय्त के चाहने वालों के साथ जगह दे.
‘इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन‘
shahroz
आपकी इस तकलीफ में हम आपके साथ हैं ! बेहद अफ़सोस हुआ ...
ankhe nam ho gayi ....dil bhar aaya .bahut bhavuk ho gayi hain aap likhte hue shayad apne mata-pita se itna hi pyar hota hai sabko .aabhar

Popular posts from this blog

माँ बाप की अहमियत और फ़ज़ीलत

मदर्स डे पर विशेष भेंट  इस्लाम में हुक़ूक़ुल ऐबाद की फ़ज़ीलत व अहमियत इंसानी मुआशरे में सबसे ज़्यादा अहम रुक्न ख़ानदान है और ख़ानदान में सबसे ज़्यादा अहमियत वालदैन की है। वालदैन के बाद उनसे मुताल्लिक़ अइज़्जा वा अक़रबा के हुक़ूक़ का दर्जा आता है डाक्टर मोहम्मद उमर फ़ारूक़ क़ुरैशी 1 जून, 2012 (उर्दू से तर्जुमा- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम) दुनिया के हर मज़हब व मिल्लत की तालीमात का ये मंशा रहा है कि इसके मानने वाले अमन व सलामती के साथ रहें ताकि इंसानी तरक़्क़ी के वसाइल को सही सिम्त में रख कर इंसानों की फ़लाहो बहबूद का काम यकसूई के साथ किया जाय। इस्लाम ने तमाम इंसानों के लिए ऐसे हुक़ूक़ का ताय्युन किया है जिनका अदा करना आसान है लेकिन उनकी अदायगी में ईसार व कुर्बानी ज़रूरी है। ये बात एक तरह का तर्बीयती निज़ाम है जिस पर अमल कर के एक इंसान ना सिर्फ ख़ुद ख़ुश रह सकता है बल्कि दूसरों के लिए भी बाइसे राहत बन सकता है। हुक़ूक़ की दो इक़्साम हैं । हुक़ूक़ुल्लाह और हुक़ूक़ुल ऐबाद। इस्लाम ने जिस क़दर ज़ोर हुक़ूक़ुल ऐबाद पर दिया है इससे ये अमर वाज़ेह हो जाता है कि इन हुक़ूक़ का कितना बुलंद मुक़ाम है और उन...

माँ तो माँ है...

कितना सुन्दर नाम है इस ब्लॉग का प्यारी माँ .हालाँकि प्यारी जोड़ने की कोई ज़रुरत ही नहीं है क्योंकि माँ शब्द में संसार का सारा प्यार भरा है.वह प्यार जिस के लिए संसार का हर प्राणी भूखा है .हर माँ की तरह मेरी माँ भी प्यार से भरी हैं,त्याग की मूर्ति हैं,हमारे लिए उन्होंने अपने सभी कार्य छोड़े और अपना सारा जीवन हमीं पर लगा दिया. शायद सभी माँ ऐसा करती हैं किन्तु शायद अपने प्यार के बदले में सम्मान को तरसती रह जाती हैं.हम अपने बारे में भी नहीं कह सकते कि हम अपनी माँ के प्यार,त्याग का कोई बदला चुका सकते है.शायद माँ बदला चाहती भी नहीं किन्तु ये तो हर माँ की इच्छा होती है कि उसके बच्चे उसे महत्व दें उसका सम्मान करें किन्तु अफ़सोस बच्चे अपनी आगे की सोचते हैं और अपना बचपन बिसार देते हैं.हर बच्चा बड़ा होकर अपने बच्चों को उतना ही या कहें खुद को मिले प्यार से कुछ ज्यादा ही देने की कोशिश करता है किन्तु भूल जाता है की उसका अपने माता-पिता की तरफ भी कोई फ़र्ज़ है.माँ का बच्चे के जीवन में सर्वाधिक महत्व है क्योंकि माँ की तो सारी ज़िन्दगी ही बच्चे के चारो ओर ही सिमटी होती है.माँ के लिए कितना भी हम करें वह माँ ...

"माँ ममता और बचपन"

माँ की ममता एक बच्चे के जीवन की अमूल्य धरोहर होती है । माँ की ममता वो नींव का पत्थर होती है जिस पर एक बच्चे के भविष्य की ईमारत खड़ी होती है । बच्चे की ज़िन्दगी का पहला अहसास ही माँ की ममता होती है । उसका माँ से सिर्फ़ जनम का ही नही सांसों का नाता होता है । पहली साँस वो माँ की कोख में जब लेता है तभी से उसके जीवन की डोर माँ से बंध जाती है । माँ बच्चे के जीवन के संपूर्ण वि़कास का केन्द्र बिन्दु होती है । जीजाबाई जैसी माएँ ही देश को शिवाजी जैसे सपूत देती हैं । जैसे बच्चा एक अमूल्य निधि होता है वैसे ही माँ बच्चे के लिए प्यार की , सुख की वो छाँव होती है जिसके तले बच्चा ख़ुद को सुरक्षित महसूस करता है । सारे जहान के दुःख तकलीफ एक पल में काफूर हो जाते हैं जैसे ही बच्चा माँ की गोद में सिर रखता है ।माँ भगवान का बनाया वो तोहफा है जिसे बनाकर वो ख़ुद उस ममत्व को पाने के लिए स्वयं बच्चा बनकर पृथ्वी पर अवतरित होता है । एक बच्चे के लिए माँ और उसकी ममता का उसके जीवन में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान होता है । मगर हर बच्चे को माँ या उसकी ममता नसीब नही हो पाती । कुछ बच्चे जिनके सिर से माँ का...