जन्म देने वाली माँ और फिर जीवनसाथी के साथ मिलने वाली दूसरी माँ दोनों ही सम्मानीय हैं। दोनों का ही हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
इस मदर्स डे पर 'अम्मा' नहीं है - पिछली बार मदर्स डे पर उनके कहे बगैर ही ऑफिस जाने से पहले उनकी पसंदीदा डिश बना कर दी तो बोली आज क्या है? शतायु होने कि तरफ उनके बड़ते कदमों ने isश्रवण शक्ति छीन ली थी।इशारे से ही बात कर लेते थे। रोज तो उनको जो नाश्ता बनाया वही दे दिया और चल दिए ऑफिस।
वे अपनी बहुओं के लिए सही अर्थों में माँ बनी। उनके बेटे काफी उम्र में हुए तो आँखों के तारे थे और जब बहुएँ आयीं तो वे बेटियाँ हो गयीं। अगर हम उन्हें माँ न कहें तो हमारी कृतघ्नता होगी। वे दोनों बहुओं को बेटी ही मानती थीं।
मैं अपने जीवन की बात करती हूँ। जब मेरी बड़ी बेटी हुई तभी मेरा बी एड में एडमिशन हो गया। मेरा घरऔर कॉलेज में बहुत दूरी थी । ६-८ घंटे लग जाते थे। कुछ दिन तो गयी लेकिन यह संभव नहीं हो पा रहा था। कालेज के पास घर देखा लेकिन मिलना मुश्किल था। किसी तरह से एक कमरा और बरामदे का घर मिला जिसमें न खिड़की थी और न रोशनदान लेकिन मरता क्या न करता? मेरी अम्मा ने विश्वविद्यालय की सारी सुख सुविधा वाले घर को छोड़कर मेरे साथ जाना तय कर लिया क्योंकि बच्ची को कौन देखेगा?
कालेज से लंच में घर आती और जितनी देर में बच्ची का पेट भरती वे कुछ न कुछ बनाकर रखे होती और मेरे सामने रख देती कि तू भी जल्दी से कुछ खाले और फिर दोनों काम साथ साथ करके मैं कॉलेज के लिए भागती। बेटी को सुला कर ही कुछ खाती और कभी कभी तो अगर वह नहीं सोती तो मुझे शाम को ऐसे ही गोद में लिए हुए मिलती . मैं सिर्फ पढ़ाई और बच्ची को देख पाती ।
मैं सिर्फ पढ़ाई और बच्ची को देख पाती थी । घर की सारी व्यवस्था मेरे कॉलेज से वापस आने के बाद कर लेती थी। मुझे कुछ भी पता नहीं लगता था कि घर में क्या लाना है? क्या करना है? वह समय भी गुजर गया। मेरी छोटी बेटी ६ माह की थी जब मैंने आई आई टी में नौकरी शुरू की। ८ घंटे होते थे काम के और इस बीच में इतनी छोटी बच्ची को रखना कितना मुश्किल होता है एक माँ के लिए शायद आसान हो लेकिन इस उम्र में उनके लिए आसान न था लेकिन कभी कुछ कहा नहीं। ऑफिस के लिए निकलती तो बेटी उन्हें थमा कर और लौटती तो उनकी गोद से लेती।
मैं आज इस दिन जब वो नहीं है फिर भी दिए गए प्यार और मेरे प्रति किये गए त्याग से इस जन्म में हम उरिण नहीं हो सकते हैं । मेरे सम्पूर्ण श्रद्धा सुमन उन्हें अर्पित हैं।
Comments
यहाँ तक के अल्लाह और रसूल के बाद माँ का दर्जा रख्खा गया है :
अल्लाह हम सब को माँ कि खिदमत करने कि तौफीक अता करे आमीन :
नौकरी पेशा औरतों के लिए अपने सिर पर मां का साया बहुत सी दिक्क़तें और बहुत सी उलझनें दूर कर देता है। बच्चा बहरहाल ख़ुशनसीब है कि मां न सही लेकिन मां की मां तो है। जो प्यार एक मां दे सकती है, वह कोई नौकर-आया या कोई बेबी सिटर नहीं दे सकता। यह अंतर रिश्ते की वजह से ही तो है।
बच्चे को अपने सिर पर मां चाहिए और इसकी क़द्र वही जानते हैं जिन्हें यह दौलत नसीब नहीं है या फिर जिनकी मां इस दुनिया से रूख़सत हो चुकी है।
मां को सलाम !